खबर लहरिया Blog मध्य प्रदेश में सियासी हलचल: भाजपा ज्वाइन करने के बाद पहली बार भोपाल पहुंचे सिंधिया, तारीफ और तंज़ शुरू

मध्य प्रदेश में सियासी हलचल: भाजपा ज्वाइन करने के बाद पहली बार भोपाल पहुंचे सिंधिया, तारीफ और तंज़ शुरू

कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए मध्यप्रदेश की सियासत के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया 12 मार्च को पहली बार भोपाल पहुंचे। इस दौरान भगवा पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने राजा भोज एयरपोर्ट पर उनका भव्य स्वागत किया। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने एयरपोर्ट से प्रदेश बीजेपी कार्यालय तक रैली निकाली।

 

एयरपोर्ट पर आने के बाद सिंधिया को एक बड़ी रैली के रुप में भोपाल के नए शहर में स्थित प्रदेश बीजेपी कार्यालय में लाया गया। सिंधिया के साथ विशेष विमान से केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर भी यहां आए हैं। हवाई अड्डे पर बड़ी संख्या में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पार्टी के झंडों के साथ सिंधिया का स्वागत किया। हवाई अड्डे पर सिंधिया की बुआ और प्रदेश की पूर्व मंत्री यशोधराराजे सिंधिया भी उनके स्वागत लिए विशेष तौर पर उपस्थित थीं।

स्वागत समारोह में भाजपा नेताओं ने एक सुर में ज्योतिरादित्य सिंधिया की तारीफ में पुल बांधे लेकिन इसी स्वागत समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान कमलनाथ सरकार पर हमला बोलते बोलते  सिधिंया को विभीषण बता बैठे। शिवराज के सिंधिया को विभीषण बताए जाने के लिए सूबे की सियासत में बवाल मच गया है।

 

 

इस बीच एमपी कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एक पुराना विडियो शेयर किया गया। विडियो शेयर करते हुए एमपी कांग्रेस ने लिखा, ‘सिंधिया जी का स्वागत करते शिवराज, सुनिए! बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी सिंधिया परिवार के बारे में जिन शब्दों का उपयोग कर रहे हैं, उन्हें हम लिखना तक उचित नहीं समझते। उसूल और सम्मान की रक्षा के लिए कहां पहुंच गए..?’

जो विडियो एमपी कांग्रेस ने शेयर किया, उसमें शिवराज सिंधिया पर निजी हमला करते नजर आ रहे हैं। इस विडियो में शिवराज कहते हैं, ‘क्रांति की ज्वाला पूरे देश में फैल गई.. लेकिन महारानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर के किले पर अधिकार करने में सफल हुईं.. अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी.. ये लड़ाई जारी रही लेकिन अपनों की गद्दारी के कारण 1857 का हमारा स्वतंत्रता संग्राम था, पूरी तरह सफल नहीं हुआ।’

बीजेपी ज्वाइन करने के बाद ज्योतिरादित्य सिंह ने कहा, ‘मेरे लिए आज भावुक दिन है। जिस संगठन और जिस परिवार में मैंने 20 साल बिताए, मेरी मेहनत लगन, मेरे संकल्प जिनके लिए खर्च किया, उन सबको छोड़कर मैं अपने आपको आपके हवाले करता हूं।’

 

 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कुछ लोगों का मकसद राजनीति होती है, माध्यम जनसेवा होती है। लेकिन यह मैं दावे से कह सकता हूं कि अटल बिहारी वाजपेयी हों, नरेंद्र मोदी हों, राजमाता रही हों, या सिंधिया परिवार का वर्तमान मुखिया होने के नाते मैं, हमारा मकसद हमेशा जनसेवा रही है।’

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, ‘आज मेरा सौभाग्य है कि जिस दल को अपने पसीने और पूंजी के साथ मेरी दादी ने स्थापित किया। जिस दल में 26 साल की उम्र में पहली बार जनसेवा का पथ अपनाकर मेरे पूज्य पिता जी चले आज उसी दल में ज्योतिरादित्य सिंधिया प्यार लेकर उसी दल में आया है। विश्वास रखना मैं केवल एक चीज अपने साथ लेकर आया हूं वो चीज है मेरी मेहनत। मेरा लक्ष्य आपके दिल में स्थान पाना है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि जहां आपका एक बूंद पसीना टपकेगा, वहां ज्योतिरादित्य का 100 बूंद पसीना टपकाएंगे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी में शामिल होने पर वसुंधरा राजे ने कहा कि आज यदि राजमाता साहब हमारे बीच होतीं तो आपके इस निर्णय पर जरूर गर्व करती। ज्योतिरादित्य ने राजमाता जी द्वारा विरासत में मिले उच्च आदर्शों का अनुसरण करते हुए देशहित में यह फैसला लिया है, जिसका मैं व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों ही तौर पर स्वागत करती हूं।

 

ज्योतिरादित्य संधिया के भाजपा में शामिल होने पर जेपी नड्डा ने कहा कि आज हम सबके लिए बहुत खुशी का विषय है और आज मैं हमारी वरिष्ठतम नेता स्वर्गीय राजमाता सिंधिया जी को याद कर रहा हूं। भारतीय जनसंघ और भाजपा दोनों पार्टी की स्थापना और स्थापना से लेकर विचारधारा को बढ़ाने में एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। ज्योतिरादित्य जी आज अपने परिवार में शामिल हो रहे हैं, मैं इनका स्वागत करता हूं और हार्दिक अभिनन्दन भी करता हूं।

ज्योतिरादित्य की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपनी राजनीति कि शुरुआत कांग्रेस से की थी। 1957 में वो गुना से लोकसभा सीट जीतकर संसद पहुंची थीं। दस साल कांग्रेस में रहने के बाद 1967 में वो जनसंघ में चली गईं। विजयराजे की वजह से ही उनके क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ।

ज्योतिरादित्य के पिता माधव राव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में ही सांसद बन गए थे। वो भी जनसंघ में ही थे लेकिन 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में ज्योतिरादित्य के पिता ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और वो केंद्रीय मंत्री भी बने। 2001 में एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई थी।

2001 में पिता की मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में पिता की जगह ली। 2002 में जब गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। पहली जीत के बाद से 2019 तक ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने उन्हें हरा दिया।