खबर लहरिया Blog “जो सबके लिए करता है, उसके पास ही वह नहीं”- समाज में निम्न माने जाने वाले लोगों की कविता

“जो सबके लिए करता है, उसके पास ही वह नहीं”- समाज में निम्न माने जाने वाले लोगों की कविता

कविता, हृदय में स्वर की तरह बहता और सुर की तरह उच्चारण करता है। यह मनुष्य के भावों को शब्दों के साथ बांध लोगों को उन्हें पकड़ने और एहसास करने का अवसर देता है। आज हम आपकी मुलाकात कवयित्री गायत्री सारथी से करा रहे हैं। जिनकी कविता ने समाज, उसकी सोच और उसकी दृष्टि को भली-भाँती अपनी कविता में पिरोया है। उनके द्वारा लिखित कविता कुछ इस प्रकार है:-

POEM IMAGE

साभार- संध्या / खबर लहरिया

“जब तक रहेगी जिंदगी, फुर्सत ना होगी काम से
कभी शाम रात तक, कभी सुबह की धूप से

माटी का शरीर है, बोझ है बड़ा मगर
कब तक सहेगा बोझ ये, आह! निकल पड़ी है मुंह से

माटी के इस तन को, धर्म के नाम पर गुलाम मत बनाओ तुम
धर्म के ठेकेदार बन कर, जाति का पाठ मत पढ़ाओ तुम

सूरज दिन भर जले मगर, कभी थके नहीं
चांद देर रात तक कभी बुझे नहीं

पर केवल जलना और थकना यही हमारा काम नहीं
सोच को बढ़ाकर सवाल करते जाओ तुम

खेत जो है जो जोतता, अन्न जो उगाता है, भूखा क्यों वह सोता है
ईंट जो बनाता है मेहनत करके, घर क्यों उसके पास नहीं

कुम्हार के हाथों से बनाए मटके का पानी पीते हो,
लेकिन उसी के हाथ का पानी क्यों नहीं सुहाता है?

इस समाज की कुरीतियों के पन्नों को हमें चलाना है
डरो नहीं डटे रहो, इस भ्रष्ट समाज को बताना है

जो जाति धर्म के नाम पर हमें है लूटते
ऐसे समाज को हमें दुनिया से मिटाना है

चाहे जितना हो अंधेरा, अंधेरे को तुम चीर कर
हाथ में लिए मशाल ,आगे बढ़ते जाओ तुम।।”

– गायत्री सारथी

वह लिखती हैं, “मेरे इस कविता लिखने के पीछे एक ही वजह है, जो कि हम सब जानते हैं और मानते भी हैं। समाज में अलग-अलग जाति और धर्म के लोग अलग-अलग तरीके से भगवान को मानते हैं। मूर्ति की पूजा करते हैं। अगर खुद का मंदिर हो या कोई अन्य पूजा स्थल हो तो उसमें अन्य जाति या धर्म के लोगों को घुसने नहीं देते हैं। खासकर मैं अपने दलित समाज की बात कह रही हूँ। जिन्हें लोग जानवरों की तरह मजदूरी तो करवाते हैं। लेकिन उनसे इतनी घृणा करते हैं और दूरी बनाते हैं जैसे हम इंसान नहीं बल्कि निरंतर काम करने वाले जानवर हैं, अछूत है। अपने धर्म जात को महत्व देकर दलित को अछूत और नीचा दिखाते हैं धर्म का पाठ पढ़ाते हैं। जो मजदूर किसान मेहनत करके उन्हीं बड़े जात वालों के लिए अन्न उगाता है, मेहनत करके घर बनाता है। लेकिन उन्हें उनके मेहनत के बराबर रोजी नहीं दी जाती है। हमने अपने आसपास जाति के भेदभाव को देखा है और झेला भी है। लोग हमसे किस तरह सलूख करते हैं। हमने खुद सहा है यह सब, लेकिन अब हम यह कब तक सहेंगे। अपने अधिकार के लिए लड़ेंगे ओर आगे बढ़ेंगे। जैसे भीमराव आंबेडकर ने लड़ा ओर संविधान रचा है। हम उन्हीं से प्रेरित हुए हैं और अब हम रुकने वाले नहीं है,अपने हक के लिए संघर्ष करेंगे।”

(इस लेख को सिर्फ खबर लहरिया द्वारा संपादित किया गया है।)