भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, “चूंकि मामला इस न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि, हालांकि नए मुकदमे दायर किए जा सकते हैं, लेकिन इस न्यायालय के अगले आदेश तक कोई मुकदमा पंजीकृत नहीं किया जाएगा और न ही कोई कार्यवाही की जाएगी।”
सुप्रीम कोर्ट में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 / Places of Worship Act की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर कल गुरुवार 12 दिसंबर 2024 को सुनवाई हुई थी। इस याचिका में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ 6 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान पीठ ने यह आदेश दिया कि जब तक पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम की याचिका पर सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक इस तरह के मामले जो धार्मिक स्थल के सर्वे से जुड़ें है, उन लंबित याचिकाओं को पारित नहीं किया जायेगा और न ही नए मुकदमों को दर्ज किया जायेगा। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 17 फरवरी, 2025 को करेगी।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, “चूंकि मामला इस न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है, इसलिए हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि, हालांकि नए मुकदमे दायर किए जा सकते हैं, लेकिन इस न्यायालय के अगले आदेश तक कोई मुकदमा पंजीकृत नहीं किया जाएगा और न ही कोई कार्यवाही की जाएगी। इसके अलावा, लंबित मुकदमों में, कोई भी न्यायालय इस न्यायालय की अगली सुनवाई/आगे के आदेशों तक सर्वेक्षण आदि के निर्देश देने वाले आदेशों सहित कोई भी प्रभावी अंतरिम आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेगा।”
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लंबित मामलों में अंतरिम सुनवाई पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा जो मामले में कोर्ट में लंबित ((जैसे वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर मथुरा में शाही ईदगाह और संभल में जामा मस्जिद) है। यानी काफी समय से रुके हुए हैं, उनपर किसी भी तरह का अंतरिम या अंतिम फैसला न सुनाया जाए। निचली अदालतें किसी भी धार्मिक स्थल से जुड़े सर्वे का आदेश न दें।
कई तारीखों के बावजूद भारत सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 4 हफ़्तों में जवाब देने को कहा है।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 / Places of Worship Act क्या है?
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक यह कानून 15 अगस्त, 1947 के बाद जो भी धार्मिक स्थलों का स्वरुप है। फिर से वापस बदलने के लिए दायर किए गए मुकदमें पर रोक लगाता है।
अब इस आदेश को लेकर लोगों के बीच चर्चा का बाजार गर्म है…”बिल्ली सौ चूहे खाकर हज को चली” यह कहावत उन हालातों पर सटीक बैठती है जब गलतियां या अनदेखी लंबे समय तक जारी रहती हैं और सुधार का विचार काफी देर से आता है। कई बार फैसले तब लिए जाते हैं, जब परिस्थितियां बिगड़ चुकी होती हैं या उन पर पहले ध्यान न देने का खामियाजा भुगतना पड़ता है। काश, इन मुद्दों पर समय रहते सोच-विचार किया गया होता तो नुकसान को टाला जा सकता था। फिर भी यह कहावत हमें याद दिलाती है कि सुधार कभी भी शुरू हो उसे अपनाना जरूरी है। देर से सही सही दिशा में बढ़ना हमेशा बेहतर होता है।
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