खबर लहरिया Blog तमनार में बढ़ती कोयला खदानों से बिना स्वास्थ्य सुविधा कौन रहेगा जीवित? | रायगढ़,छत्तीसगढ़

तमनार में बढ़ती कोयला खदानों से बिना स्वास्थ्य सुविधा कौन रहेगा जीवित? | रायगढ़,छत्तीसगढ़

“खदान से इतना ज़्यादा प्रदूषण हो रहा है कि जिन्हें बीमारी नहीं है, जिसकी ज़्यादा उम्र नहीं है, वह भी प्रदूषण की वजह से बहुत जल्दी मर रहे हैं। इससे लोगों में बीमारी भी फ़ैल रही है”- तमनार,नगर मुंडा गांव की कार्यकर्ता जानकी ने बताया।

                                                                                              रायगढ़ के एक कोयला खदान के बाहर की तस्वीर (फोटो – खबर लहरिया)

रिपोर्ट – गीता देवीसंध्या 

रायगढ़, तमनार, नगर मुंडा गांव के नेतराम बताते हैं कि रायपुर के डॉक्टर ने जब उनसे पूछा था कि क्या उनके इलाके में फ्लाई ऐश है। उनके हाँ कहने पर डॉक्टर का जवाब था कि उनके नाक,कान, गले की खरास ठीक न होने की वजह ये ऐश ही है।

‘फ्लाई ऐश’ एक महीन राख होती है जो कोयला जलाने के दौरान पैदा होती है। जब कोयला जलाकर बिजली बनाई जाती है तो कोयले में मौजूद खनिज जलने के बाद राख के रूप में उड़कर बाहर निकलते हैं।

तमनार क्षेत्र,छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र को प्रदूषण जनरेटर का केंद्र बना दिया गया है। जहां जिधर देखो, उधर सिर्फ प्रदूषण ही नज़र आता है। यहां की जिंदल-अडानी, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड इत्यादि जैसी बड़ी कंपनियों के खदानों में काम करने वाले लोग दैनिक तौर पर कोयले से निकलने वाले धुएं और ज़हरीली हवा को भरते हैं, जो लोगों में टीबी व कई तरह की बीमारियां होने की वजह है।

इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि, ‘तमनार में जो टीबी का आंकड़ा है, वह राष्ट्रीय आंकड़े से भी ज़्यादा है’ जिसका ज़िक्र यहां की सामाजिक कार्यकर्ता रिनचिन ने भी खबर लहरिया से बातचीत के दौरान किया।

पर्यावरण विशेषज्ञ, बजरंग अग्रवाल ने बताया कि सभी उद्योगों और पावर प्लांट से एक साल में लगभग 1 करोड़ 51 लाख टन फ्लाई ऐश निकलती है। यह भी कहा कि यहां से निकलने वाले पदार्थ को जंगल व नदी में डाल दिया जाता है। इसका सही तरह से निपटारा नहीं किया जाता।

प्रदूषण से लोगों की जीवन आयु हुई कम

“खदान से इतना ज़्यादा प्रदूषण हो रहा है कि जिन्हें बीमारी नहीं है, जिसकी ज़्यादा उम्र नहीं है, वह भी प्रदूषण की वजह से बहुत जल्दी मर रहे हैं। इससे लोगों में बीमारी भी फ़ैल रही है”– तमनार,नगर मुंडा गांव की कार्यकर्ता जानकी ने बताया।

डाउन टू अर्थ की अगस्त 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, जो लोग सबसे अधिक प्रदूषित इलाकों में रहते हैं, वे सबसे साफ इलाकों में रहने वाले लोगों के मुकाबले छह गुना अधिक प्रदूषित हवा सांस में लेते हैं, जिससे उनकी जीवन प्रत्याशा औसतन 2.7 साल कम हो जाती है।

जीवन प्रत्याशा का मतलब है किसी व्यक्ति के जन्म के समय से लेकर उसकी अनुमानित उम्र तक जीने का औसत समय। यह आंकड़ा बताता है कि एक सामान्य व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी में औसतन कितने साल जी सकता है।

जानकी आगे बताती हैं कि खनन ने पानी को भी कोयला कर दिया है। बहता पानी भी कोयला हो गया है और लोग उसी पानी को पी रहे हैं और बीमार हो रहे हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि खनन से फैलने वाला प्रदूषण उनके पूरे क्षेत्र में है और उसका असर पेड़-पौधे,जल-जंगल,ज़मीन हर कहीं देखा जा सकता है। क्षेत्र कोई भी हिस्सा प्रदूषण रहित नहीं है बल्कि बीमारियों से खतरनाक पदार्थों से भरा हुआ है।

खनन से बढ़ती बीमारियों के बाद भी खनन में काम करने वाले कर्मचारियों और गांव के लोगों के लिए विशेष स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं। रिनचिन बताती हैं,’नगर मुंडा गांव में साधारण सरकारी स्वास्थ्य मितानिन हैं लेकिन टीबी या फेफड़ों से जुड़ी समस्या के लिए उपयुक्त डॉक्टर या सुविधाएं नहीं हैं।’

गांव में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है, जो है वह तमनार और लिबरा में है जिनकी दूरी लगभग 20 और 10 किलोमीटर है। यहां पहुंचने के लिए बस या यातायात की सुविधा भी कम है क्योंकि साधन गांव के अंदर नहीं आते। ऐसे में लोगों की स्वास्थ्य सुविधा तक पहुंच और भी सीमित हो जाती है।

तमनार में एक फोर्टिस ओपी जिंदल अस्पताल है जो एक खनन कंपनी द्वारा चलाया जाता है और उनके द्वारा दावा किया जाता है कि वह अपने कर्मचारियों को मुफ्त दवाइयां देते हैं। कंपनी का कहना है कि वह सिर्फ उन कर्मचारियों को स्वास्थ्य सुविधा देगी जो उनके खनन से प्रभावित हैं। रिनचिन कहती हैं, यह कहा जाना गलत है क्योंकि हवा तो हर जगह जायेगी।

इसे लेकर कलेक्टर ने एक चिट्ठी भी लिखी थी जिसमें यह कहा गया था कि जितने भी खनन प्रभावित गांव है, उन सब गांवो में कंपनियों को मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा देनी होगी। इसके बाद भी जब लोग इन अस्पतालों में जाते हैं तो उनसे पैसे लिए जाते हैं। साथ ही मौजूदा अस्पतालों में टीबी,सिलिकोसिस इत्यादि बीमारियों के इलाज के लिए विशेष सुविधाएं भी नहीं है जो एक खनन प्रभावित क्षेत्र या जिले होने के नाते होनी चाहिए।

प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो की साल 2024 की रिपोर्ट बताती है कि साल 2022-2024 में सरकार का स्वास्थ्य खर्च लगभग 845 अरब भारतीय रुपये था। वहीं साल 2024-2025 के लिए, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को 90,958.63 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले साल की तुलना में 12.9% का ज़्यादा है।

खबर लहरिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि खदानों से लगातार फ्लाई ऐश निकलती है जिससे वायु प्रदूषण होता है। इसके साथ ही तमनार ब्लॉक के निवासियों को हर दिन 5000 से अधिक भारी कोयला ले जाने वाले वाहनों के चलते का भी सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से कई सांस की बीमारियां लोगों में हो रही है। ब्लास्टिंग,चलती गाड़ियां कभी यहां के लोगों को बिना किसी पदार्थ के सांस लेने का मौका ही नहीं देती।
पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) छोटे-छोटे कण होते हैं जो हवा में मिलकर प्रदूषण फैलाते हैं। इसमें धूल, राख, कालिख और कई हानिकारक रसायन शामिल होते हैं, जो सांस के जरिए शरीर के अंदर जाते हैं और स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं। ये कण कारों, फैक्ट्रियों, और अन्य जलने वाली चीजों से निकलते हैं।

जानकी ने बताया कि उन्होंने प्रदूषण को लेकर कई जनसुनवाई में अपनी बात रखी लेकिन इस पर उतना गौर नहीं किया गया।

खनन से होने वाले प्रदूषण से अमूमन सिलिकोसिस,अस्थमा, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (खनन में उठने वाली धूल, गैस और प्रदूषकों के कारण होती है),पल्मोनरी हाइपरटेंशन (फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं में उच्च दबाव की स्थिति को कहा जाता है, जो खनन प्रदूषण के कारण होती है) , सीसा विषाक्तता (सीसा एक खतरनाक धातु है, जो पानी, हवा, मिट्टी, और कुछ पुरानी वस्तुओं (जैसे रंग, बर्तन, और बैटरी) से शरीर में प्रवेश कर सकता है) इत्यादि बीमारियां हो सकती हैं।

खबर लहरिया की रिपोर्ट में बताया गया कि यहां रायगढ़ जिले के तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक में 13 कोयला खदानें और 12 बिजली घर हैं। खबर लहरिया की रिपोर्ट बताती है कि यहां खनन कंपनियों द्वारा और भी खदानें खोले जाने की बात की जा रही है। अगर खदानों की संख्या बड़ी तो प्रदूषण में पहले के मुकाबले अत्याधिक बढ़ोतरी होगी। पेड़ों की कटाई होने से मिट्टी का कटाव होगा। कोयला जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ेगी और इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ने की आशंका रहेगी।

खदान कंपनियों के खिलाफ स्थानीय लोगों की लड़ाई

रायगढ़ जिले का तमनार क्षेत्र आदिवासी इलाका है। यहां के लोग हमेशा से अपने जल,जंगल,ज़मीन की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। उनकी लड़ाई यहां की खदान कंपनियों और उससे निकलने वाले प्रदूषण से भी ज़ारी है।

उनकी जाइंट (बड़ी) कंपनियों से चल रही है इस लड़ाई में कुछ चीज़ें उनके पक्ष में गईं तो कुछ फैसलों को बाद में पलट दिया गया। खबर लहरिया की इस क्षेत्र में गई रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2020 में, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने जिंदल स्टील और पावर लिमिटेड (JSPL) और साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) को तमनार तहसील के Gare IV-2/3 कोल माइंस में पर्यावरण और स्वास्थ्य उल्लंघनों के लिए कुल 160 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। इन कंपनियों पर यह आरोप लगाए गए थे:-

– जरूरी अनुमतियों की कमी
– अत्यधिक खनन
– पर्यावरण को नुकसान
– पर्यावरणीय शर्तों का पालन न करना
– आसपास रहने वाले लोगों का सही से ध्यान न रखना

इसके साथ ही एनजीटी ने छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड (CECB) को 12 ऐसे हवा गुणवत्ता वाले मॉनिटर स्थापित करने को कहा था जो वास्तविक समय में हवा की गुणवत्ता की जांच करे। इस साल जनवरी 2024 में एनजीटी ने अडानी ग्रुप के कोयला खदान प्रोजेक्ट की पर्यावरण मंज़ूरी को भी रद्द कर दिया था।

जानकारी के अनुसार, यह मंज़ूरी मोदी सरकार द्वारा बिना पर्याप्त जनसंवाद के और लोगों के स्वास्थ्य पर असर का सही विश्लेषण किये बिना दी गई थी।

लेकिन 13 अगस्त को मोदी सरकार ने अडानी प्रोजेक्ट की मंज़ूरी को फिर से बहाल कर दिया था।

तमनार क्षेत्र के निवासियों का कहना है कि ‘गाड़ियां चलती हैं तो इतनी धूल उड़ती है कि लगता है कि कोई तूफान आ रहा हो।” इसलिए यहां लोगों की लड़ाई, उनका विरोध आज भी ज़ारी है, उन सभी बड़ी कंपनियों के खिलाफ जो उन्हें कथित रोज़गार देने के नाम पर उनसे स्वच्छ हवा में सांस लेना और स्वस्थ रहने का सुख छीन रहे हैं।

नेतराम यह भी कहते हैं कि, “गर्मी में सांस लेने में उन्हें और भी ज़्यादा दिक्कत होती है। अगर कोई बाहर का सही आदमी यहां आ जाए तो वही देखेगा कि यहां के लोग गाय-भैंस की तरह जी रहे हैं।”

 

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