खबर लहरिया Hindi PATNA: डायन बताकर महिला को बेहरमी से पीटा, महिला अस्पताल में भर्ती

PATNA: डायन बताकर महिला को बेहरमी से पीटा, महिला अस्पताल में भर्ती

अलका की बहू पूजा ने बताया, “करीब 3–4 साल से हमारी जेठानी पायल (बदला हुआ नाम) मेरी सास को ‘डायन’ कहती रही है। जब भी उसके पति सुधीर की तबीयत बिगड़ती, तो वह हमें आकर कहती थी कि मेरी सास ही डायन है।”

Picture of the board at the station

स्टेशन पर लगे बोर्ड की तस्वीर (फोटो साभार: सुमन)

लेखन – सुमन

हाल ही में पटना जिले के बल मंडल बाढ़ अनुमंडल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव शहरी पर एक महिला को डायन कहकर उसको मारा जिसकी वजह से उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह घटना सोमवार, 16 जून 2025 की रात की है जब गांव के कुछ लोगों ने उसके साथ मारपीट की महिला को बचाने आए उसके पति और बेटे को भी मारा। इतना सब होने के बाद पुलिस प्रशासन ने घायल पति और बेटे को जेल में बंद कर दिया, जबकि महिला जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही है।

पूरा मामला

जिस महिला के साथ मारपीट हुई उसका नाम अलका है। अलका की बहू पूजा ने बताया, “करीब 3–4 साल से हमारी जेठानी पायल (बदला हुआ नाम) मेरी सास को ‘डायन’ कहती रही है। जब भी उसके पति सुधीर की तबीयत बिगड़ती, तो वह हमें आकर कहती थी कि मेरी सास ही डायन है, इसी कारण उनकी तबीयत खराब हुई है। जब-जब उनके घर में कोई बीमार होता, वे लोग हमसे झगड़ा करने आ जाते थे और बार-बार यही आरोप लगाते थे कि मेरी सास डायन है। इसी बात को लेकर कई सालों से तनाव बना हुआ था।”

सोमवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ। हमारी सास, शायद बर्तन धो रही होंगी या कोई और घरेलू काम कर रही होंगी—हमें यह ठीक से नहीं पता। तभी अचानक मारपीट की खबर मिली। जब हम पहुंचे तो देखा कि हमारी सास, ससुर और देवर को गंभीर चोटें आई हैं। इसके बाद हम उन्हें थाने लेकर गए और फिर अस्पताल ले गए। वहां प्राथमिक उपचार हुआ, मरहम-पट्टी की गई। फिर हम अपनी सास को अगले दिन घर ले आए। लेकिन हमारे ससुर राम अवतार पासवान और देवर धीरज को पुलिस ने जेल भेज दिया।

पूजा भावुक होकर कहती हैं “बताइए, ये कहां का न्याय है? हमारे ससुर को गंभीर चोटें आई हैं, देवर को 12 टांके लगे हैं और तीनों के सिर पर गहरी चोटें हैं। इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें जेल भेज दिया, न कि अस्पताल में भर्ती कराया।”

आज भी अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित करना और उनके साथ हिंसा करना एक आम बात बन चुकी है। डायन अधिकतर ऐसी महिलाओं को बताया जाता है जो विधवा हो, मानसिक तौर पर बीमार हो, या फिर जो माँ नहीं बन सकती है।

अन्धविश्वास का नाम डायन

जब घर के आस-पास या फिर घर परिवार में कुछ बुरा हो जाए जैसे तबीयत खराब होना, किसी की मौत होना और हरी-भरी फसलों का बर्बाद हो तो सारा दोष उस महिला का बता दिया जाता है और उसे डायन कह दिया जाता है। इसके बाद उस महिला से दूरी बना ली जाती है यानी उनका समाज से बहिष्कार कर दिया जाता है। जाति के आधार पर भी महिला को डायन माना जाता है जैसे जो महिलाएँ डोम समुदाय से आती हैं उन्हें भी कथित तौर पर डायन माना जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनका काम शवों का जलाना हुआ करता था, वे घाट पर काम करते थे।

महिला डायन को लेकर लोगों की तर्कसंगत बातें

वहां अलका को देखने आए कुछ लोगों में से दो-तीन महिलाएं भी थीं। उन्होंने मुझसे कहा, “मैडम, आप ही बताइए, अगर वह सच में डायन होती, तो क्या मार खा जाती? डायन होती, तो खुद को बचा न लेती। आज के समय में भी लोग डायन जैसी बातें कर रहे हैं, जबकि डायन वगैरह कुछ नहीं होता। उन्हें सिर्फ मारना था, इसलिए उन्हें डायन कहा गया।”

महिलाओं ने आगे कहा, “मैडम, डायन होती हैं, ऐसा कहा जाता है, लेकिन इस तरह की नहीं होतीं। अगर वह सच में डायन होती, तो इतना कुछ क्यों सहती? कहते हैं जो डायन होती हैं, वे बहुत ताकतवर होती हैं, तंत्र-मंत्र जानती हैं और किसी को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं लेकिन इस महिला को तो खुद ही गंभीर चोटें आई हैं।”

पड़ोस के परिवार ने किया हमला

वहीं मौजूद अलका का दूसरा बेटा, जो मेहनत-मजदूरी करता है। उसने बताया, “जब मैं शाम करीब 7:30 बजे घर लौटा, तो गांव वालों ने बताया कि हमारे घर में झगड़ा हुआ है। जब घर पहुंचा, तो पता चला कि पापा-मम्मी पर पास में ही रहने वाले भैया-भाभी ने हमला कर दिया है।”

उसने कहा, “अब हम लोग इस मामले को नहीं बढ़ाना चाहते। हम आपस में सुलह करना चाहते हैं। मामला थाने तक पहुंच गया है और रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है, तो अब सुलह कोर्ट से ही होगी। लेकिन हमारे मुखिया जी हमारा पूरा सहयोग कर रहे हैं। हम नहीं चाहते कि यह मामला और आगे बढ़े, वरना लोग तरह-तरह की बातें बनाएंगे। हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम बार-बार कोर्ट के चक्कर काट सकें।”

हमले के बाद अलका की स्थिति

मैंने देखा कि अलका एक तख्त पर लेटी हुई थीं। उनके सिर पर गहरी चोट थी, जिस पर पट्टी बंधी हुई थी। पास ही उनकी चौथे नंबर की बहू शिवानी बैठी थी और जोर-जोर से रो रही थी। उसका पति जेल भेज दिया गया था। अब उसकी सास की हालत इतनी गंभीर थी कि वह किसी से कुछ भी नहीं बोल रही थीं, आंखें बंद थीं, किसी को पहचान नहीं पा रही थीं। वह कुछ खा-पी भी नहीं रही थीं। काफी देर बाद उन्होंने बहुत मुश्किल से सिर्फ इतना कहा कि उन्हें पानी चाहिए। एक महिला उठी और गर्म पानी करके उन्हें पिलाया।

उसका कहना था कि झगड़ा आपसी था, लेकिन पुलिस ने हमारी तरफ के लोगों पर ज्यादा कार्रवाई की और दोनों पक्षों के लोगों को जेल भेज दिया। घर में माहौल बहुत तनावपूर्ण था। हर कोई रो रहा था। यहां तक कि वह महिला, जो मुझे अलका के पास लेकर गई थी, वह भी रोने लगी।

दूसरा पक्ष

पायल से हुई बातचीत में सामने आई सच्चाई

जब हमारी पायल से फोन पर बात हुई (क्योंकि घर पर उनसे मुलाकात नहीं हो सकी), तो उन्होंने बताया कि वह विशाल (बदला हुआ नाम)की पत्नी हैं और उनके पति को पुलिस ने जेल भेज दिया है। पायल ने बताया कि वह जेल में अपने पति से मिलने भी गई थीं।

पानी को लेकर हुआ था झगड़ा

पायल ने बताया, “अलका मेरी सास लगती हैं, हम रिश्ते में चचेरे ससुराल वाले हैं। मैं उनकी बहू हूं। सोमवार शाम करीब 7 बजे मैं अपनी बेटी को लेकर नाली के पास कुछ काम कर रही थी, तभी पानी को लेकर हमारा झगड़ा हो गया। अलका और मेरे बीच पहले बहस हुई, फिर उनका बेटा और पति भी वहां आ गए। मामला बढ़ गया और झगड़ा शुरू हो गया। कब लाठी-डंडे चलने लगे, यह पता ही नहीं चला। अलका को धक्का लगने से उनके सिर पर चोट आ गई, लेकिन हमने उन्हें मारा नहीं।”

पायल का कहना है कि, “यह सब लोग झूठ बोल रहे हैं। हमने कभी भी उन्हें डायन नहीं कहा और न ही हम ऐसा मानते हैं लेकिन हमारे खिलाफ यही आरोप लिखवा दिया गया। हमें समझ नहीं आया कि क्या करना चाहिए इसलिए हम पहले थाने गए और अपनी बात रखने की कोशिश की। वहां मौजूद पुलिस कर्मियों ने हमारे साथ ठीक से बात नहीं की और हमारी बात दर्ज करने से भी इनकार कर दिया।”

“हमें लिखना भी नहीं आता था, फिर भी किसी तरह एप्लिकेशन लिखवाकर हमने थाने में दी और वहां से वापस आ गए। सोमवार की रात मेरे पति को थाने में रखा गया और मंगलवार शाम उन्हें जेल भेज दिया गया। अब हम उनसे मिलने जा रहे हैं। हमने मुखिया जी से भी बात की है। वह हमारा पूरा सहयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि लड़ाई-झगड़े से कुछ नहीं होता, हमें सुलह कर लेनी चाहिए।”

पायल ने कहा, “हम अब यह मामला और नहीं बढ़ाना चाहते। हम दोनों पक्ष आपसी समझौते के पक्ष में हैं लेकिन थाना वाले सुलह करवाने के लिए तैयार नहीं हैं। लगता है कि शायद वे किसी से पैसे की उम्मीद कर रहे हैं, हमें ठीक से पता नहीं। जब हमने यह बात मुखिया जी को बताई कि बार-बार थाना से फोन आ रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वह कोर्ट से या जैसे भी हो, समझौता करवाने की कोशिश करेंगे। क्योंकि अब मामला रजिस्टर्ड हो चुका है इसलिए समझौता कोर्ट के ज़रिए ही होगा लेकिन हम लोग पूरी तरह से सुलह चाहते हैं।”

गांव के लोगों का कहना

वहां के लोगों ने कहा, “हां, यह घटना तो हुई है और हम सब जानते हैं कि विशाल नाम का व्यक्ति अगर कभी बीमार पड़ता था, तो वह अक्सर अलका नाम की महिला पर शक करता था। वह उससे मारपीट करता था। गाली-गलौज भी करता था लेकिन यह नहीं सोचा था कि बात इतनी बढ़ जाएगी। सुनने में आया है कि उसी ने मारा-पीटा और अब वह जेल भी गया है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह बात भी गलत है कि एक ही पक्ष से एक व्यक्ति और दूसरे पक्ष से दो लोगों को जेल भेज दिया गया। यह न्यायसंगत नहीं है। विशाल का एक दोस्त हमेशा अलका को डायन मानता था। बताइए, आज के ज़माने में भी लोग डायन जैसी बातें करते हैं। ये सब अंधविश्वास है और अनपढ़ता की निशानी।”

शिक्षा की वजह से अंधविश्वास भारी

गांव के लोगों ने बताया कि “हमारे गांव में पासवान समाज के लोग रहते हैं। यहां पढ़ाई-लिखाई का अभाव है। जागरूकता की बहुत कमी है। सरकार की कई योजनाएं आती हैं लेकिन इन लोगों तक न तो जानकारी पहुंचती है, न ही उन्हें उसका लाभ मिल पाता है। अगर पैसा आता भी है तो उसका सही इस्तेमाल नहीं हो पाता। यही समस्याएं हैं जो समाज को पीछे धकेल रही हैं।”

मुखिया से बातचीत

इस घटना के बारे में मुखिया ने बताया, “मुझे इस घटना की जानकारी रात करीब 10–11 बजे के आसपास मिली थी। तब तक दोनों पक्षों ने थाने में जाकर अपनी-अपनी रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी। उसके बाद मैंने दोनों पक्षों को बुलाया और उन्हें समझाया कि लड़ाई-झगड़े से कुछ नहीं होता, आपस में समझौता कर लेना चाहिए। मैंने उनसे यह भी पूछा कि इतनी बड़ी बात हो गई तो पहले क्यों नहीं बताया गया?”

मुखिया ने बताया, “झगड़ा असल में नाली को लेकर हुआ था। गांव में नाली की समस्या है जहां मन होता है, वहां लोग पानी बहा देते हैं, कचरा डाल देते हैं। इसी बात को लेकर महिलाओं में झगड़ा हुआ, जो बाद में इतना बढ़ गया कि पुरुष भी उसमें शामिल हो गए।”

मुखिया जी ने बताया, “अब मामला कोर्ट तक पहुंच चुका है इसलिए पंचायत स्तर पर इसे निपटाना संभव नहीं है। मैं प्रयास कर रहा हूं कि दोनों पक्षों का कोर्ट से सुलह करवाया जाए और दोनों को वापस घर भेजा जाए। यह मेरा दायित्व है कि गांव में शांति बनी रहे और लोगों को सही दिशा मिले।”

मुखिया जी ने गांव की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, “मुझे कभी-कभी गांव जाने का मन नहीं करता क्योंकि यहां के लोग बात नहीं सुनते, पढ़ते-लिखते नहीं हैं। मैं चाहता हूं कि ये लोग पढ़ें, आगे बढ़ें। मैं देखता हूं कि दूसरे गांवों में दलित समाज के लोग सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं, आरक्षण के ज़रिए नौकरी पाते हैं। लेकिन हमारे गांव के लोग पढ़ाई ही नहीं करते। आप जाकर देख लीजिए, मुश्किल से कोई दसवीं से ऊपर पढ़ा हुआ मिलेगा। यही वजह है कि आज भी लोग डायन जैसी बातें करते हैं।”

मुखिया जी ने यह भी बताया, “मैंने अपने गांव में ही एक कमरा निशुल्क उपलब्ध कराया है ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें, लेकिन वहां भी पढ़ाई नहीं हो रही। मैंने कई सुविधाएं दी हैं, कोशिश की है, पर सुधार धीरे-धीरे ही संभव है।”

दोनों पक्षों ने थाने में दिया आवेदन

थाना प्रभारी बृजेश कुमार, जो उस समय थाने पर मौजूद नहीं थे और किसी सरकारी कार्य से बाहर गए हुए थे, से कॉल पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि दोनों पक्षों ने थाने में आकर अपनी-अपनी ओर से आवेदन दिए थे। हमने दोनों ही पक्षों की रिपोर्ट दर्ज की है। इन आवेदनों के आधार पर एक पक्ष से एक व्यक्ति और दूसरे पक्ष से दो व्यक्तियों को जेल भेजा गया है।”

उन्होंने आगे कहा, “आवेदनों के अनुसार संबंधित धाराएं लगाई गई हैं। यदि ‘डायन’ कहने का उल्लेख आवेदन में किया गया है तो ‘डायन प्रथा उन्मूलन अधिनियम’ की धाराएं भी जोड़ी गई होंगी। इसके साथ ही मारपीट और गाली-गलौज की धाराएं भी लगाई गई होंगी। अपराधियों को कानून के अनुसार जेल भेजा गया है।”

थाना प्रभारी ने यह भी स्पष्ट किया, “सटीक जानकारी के लिए मुझे फाइल मंगवाकर देखनी पड़ेगी, लेकिन आप यह लिख सकते हैं कि दोनों पक्षों ने थाने में आवेदन दिया था, और उन्हीं के आधार पर तीन लोगों को जेल भेजा गया है। यदि वे सुलह करना चाहते हैं तो अब यह प्रक्रिया केवल कोर्ट के माध्यम से ही संभव है। आगे की कार्रवाई अदालत के आदेश और साक्ष्यों के आधार पर की जाएगी।”

रिपोर्टर से की बदसलूकी

इस खबर की रिपोर्टिंग करते हुए काफी समस्या का सामना करना पड़ा। अलका के बड़े बेटे जो कि पहले ही मेरे से गुस्से में बात कर रहे थे। उन्होंने कहा “जा निकल जाओ, भाग जाओ यहां से कोई काम नहीं है। मीडिया लोगों का हमें कुछ नहीं चाहिए।” मुझे काफी दूर तक गलियों तक भेज दिया।

जब मैंने पूछा, “अलका कहां है? हम उनसे मिलना चाहते हैं। आप लोग बात नहीं करना चाहते, कोई बात नहीं।” तो वहां मौजूद लोगों ने जवाब दिया कि अलका अब यहां नहीं हैं, उन्हें बिहार शरीफ भेज दिया गया है। बताया गया कि वहां उनके कुछ रिश्तेदार हैं जो उनकी देखभाल करेंगे और उन्हें सही इलाज मिल सकेगा।

काफी बातचीत के बाद भी जब वे लोग बात टालते रहे, तो मुझे बहुत गुस्सा आया, लेकिन मैं शांत रही। मैंने उनकी हर बात सुनी, अपमान भी सहा और वहीं खड़ी रही। कुछ देर बाद मैंने अलका की बहू से बात की। तभी सामने खड़ी एक महिला ने मुझसे कहा, “मैडम, अगर आप वीडियो रिकॉर्ड नहीं करेंगी और उसे चलाएंगी नहीं, तो मैं आपको अपनी सास से मिलवा सकती हूं।”

जैसे ही उसने यह कहा, अलका के बड़े बेटे, जो अब तक कह रहे थे कि अलका यहां नहीं हैं और उन्हें अस्पताल भेज दिया गया है, अचानक टोकने लगे। उन्होंने गुस्से में कहा, “अरे, क्यों दिखा रही हो? ये लोग भरोसेमंद नहीं हैं, बोलो इन्हें कि अलका यहां नहीं है।” यह सुनते ही वह महिला अपने जेठ (अलका के बड़े बेटे) से झगड़ने लगी और मुझे अलका के पास ले गई।

डायन सिर्फ काल्पनिक और अन्धविश्वास का रूप है जिसे के रूप में सिर्फ महिलाओं को देखा जाता है।

 

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