अक्सर हम सड़क किनारे लगे होटलों को नजरअंदाज कर देते हैं। वजह साफ-सफाई को लेकर मन में बैठा हुआ एक संदेह होता है कि खुली सड़क, धूल-मिट्टी और भीड़ भाड़ के बीच बना खाना सेहत के लिए ठीक नहीं होगा पर क्या वाकई हर सड़क किनारे होटल एक जैसे होते हैं। क्या खुले में खाना परोसने का मतलब हमेशा गंदगी और बीमारी है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – कुमकुम
पटना के सचिवालय गेट नंबर 4 के सामने कुछ ऐसे ही होटल खामोशी से इन सोच को चुनौती दे रहे हैं। आज हम आपको पटना सचिवालय गेट नंबर 4 के बाहर लगे उन्हीं होटलों की एक झलक दिखाएंगे जहां रोज़ हजारों लोग खाना खाते हैं और हां उनमें सरकारी नौकरी वाले भी होते हैं और आम जनता भी।
सुबह जागते ही आती स्वाद की महक
अगर आप सचिवालय के पास रात में गुजरेंगे तो लगेगा जैसे यहां कुछ भी नहीं है। चुपचाप सड़क, सन्नाटा और बंद दरवाज़े लेकिन सुबह होते ही सब्जियों के तड़के और चूल्हे की आंच से शुश्बू शुरू हो जाता है। इन होटलों में कुछ के नाम हैं तो कुछ बिना नाम के ही सालों से चल रहे हैं लेकिन ग्राहकों की तादाद देख कर आप समझ जाएंगे यहां सिर्फ पेट नहीं दिल भी भरता है।
स्वादिष्ट नॉनवेज की पहचान
सचिवालय गेट नंबर 4 के थोड़ा सा आगे बैठेंगे तो स्पेशल ब्रांच है और उसी ब्रांच के बगल पर ही एक होटल लगता है जिसका कोई नाम नहीं है लेकिन वह नॉनवेज देते हैं। मछली की कम से कम 5 किस्म हैं जो मछली के ज्यादा शौकीन है वह लोग इस होटल में खाना खाने के लिए आते हैं। होटल के मालिक किशोर कुमार ने बताया कि 1974 में उन्होंने यह दुकान खोली और तब से लेकर अभी तक उनकी दुकान चलती है। उनके यहां पर चार हेल्पर हैं और अब उनका बेटा भी साथ में काम करता है। वह बताते हैं कि नॉनवेज है इसलिए उन्हें सुबह 4:00 बजे से ही आकर के तैयारी करनी पड़ती है। सुबह 10:00 बजे से भीड़ लगना शुरू होती है सबसे ज्यादा जो समय होता है लंच के समय का होता है जिस समय खड़े होना तो मुश्किल पड़ता है। लोगों को यहां का नॉनवेज सबसे ज्यादा अच्छा लगता है।
अफसर भी यहाँ का चखते हैं स्वाद
अधिकारी भी यहां पर बैठकर खाना खाना पसंद करते हैं लेकिन जब वह व्यस्त होते हैं तो अपने नौकर को भेज करके खाना पैक कराके मंगवाते हैं। अधिकारियों में से अगर उनके यहां पर कोई खाना खाने के लिए आता है तो वह हैं नगर निगम और सचिवालय के लोग आते हैं जिनको नॉनवेज ज्यादा पसंद है।
शुद्ध मिथिला भोजनालय
अब चलिए गेट नंबर 4 के सामने की तरफ़। यहां है शुद्ध मिथिला भोजनालय। नाम से ही समझ जाइए यहां सिर्फ शाकाहारी खाना मिलता है लेकिन ऐसा नहीं कि सिर्फ सब्जी-भात। यहां है भरपूर स्वाद और सफाई का विशेष ध्यान। राजेश बाबू इस होटल को 40 साल से चला रहे हैं। हम तो सुबह 8 बजे से ही लग जाते हैं। दो महिलाएं और पांच पुरूष हैं जो होटल का सारा खाना बनाते हैं। दोपहर होते-होते पूरा खाना खत्म हो जाता है। कई लोग दूर-दराज से खाना खाने आते हैं जैसे कंकड़बाग, बोरिंग रोड, किदवईपुर। शाकाहारी थाली सत्तर रुपये में दाल, चावल, दो तरह की सब्जी, भुजिया, पापड़, अचार और सलाद और दूध दही अलग से पच्चीस रूपये में। यहां पर पैकिंग की भी सुविधा है इसलिए पैक कराकर घर या दफ्तर में खाते हैं।
कर्मचारी लोग नहीं लाते हैं टिफिन
जय राम सिंह जो कि वित्त शिक्षा निगम विभाग में कार्यरत हैं। बताते हैं कि वह अक्सर यहां खाना खाते हैं और घर से टिफिन नहीं लाते हैं । जब इतना अच्छा खाना बाहर ही मिल जाए तो टिफिन लाने की क्या जरूरत। हमारा एक ग्रुप है जो साथ में यहां खाना खाता है और फिर काम पर लौटता है। यहां सफाई रहती है, टेबल बार-बार साफ होते हैं और बर्तन साबुन से धोए जाते हैं।
कुसुम जिनकी नई-नई पोस्टिंग सचिवालय में हुई है। वह बताती हैं कि उन्होंने तीसरी बार यहां खाना खाया है। वह शुद्ध शाकाहारी हैं और यहां की सफाई देखकर ही खाना खाया। खाना बिल्कुल घर जैसा है, स्वादिष्ट है और ढंग से बैठने की जगह भी है। मक्खी नहीं है, धूल नहीं है और डस्टबिन की सुविधा भी है।
एक नगर निगम कर्मचारी ने नाम नहीं बताया लेकिन बताया कि वह रोज यहीं खाना खाते हैं। खाने का स्वाद अच्छा है। सफाई भी है और यही सबसे जरूरी है। पत्रकार, अधिकारी, पुलिस विभाग के लोग भी यहां खाना खाने आते हैं। क्योंकि यहां का स्वाद घर के जैसा है।
सड़क किनारे बने इन होटलों को लेकर जो लोगों के मन में सोच बनी हुई है वह हर जगह सही नहीं है। सचिवालय गेट के पास मौजूद होटलों ने यह साबित किया है कि अगर सफाई और स्वाद का ध्यान रखा जाए तो सड़क किनारे भी बेहतरीन स्वस्थ और स्वादिष्ट खाना मिल सकता है।
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