बिहार के पटना से लगभग 25 किलोमीटर नौबतपुर ब्लॉक अंतर्गत आने वाला रामपुर गांव फूलों की खेती के नाम से प्रसिद्ध है। यहां का माली समुदाय फूलों की खेती से सालाना लगभग 2 से ढाई लाख रुपये आमदनी कमा रहा है। इसी खेती से अपने परिवार का जीवन यापन करता है लेकिन बढ़ते तापमान का असर इस समय उनकी खेती में भी पड़ रहा है जिससे उनको नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट – सुमन, लेखन – गीता
यहां लगभग 30 माली समुदाय के परिवार हैं। वह फूलों की खेती कर अपना जीवन-यापन करते हैं। इतना ही नहीं यह अपने जीवन-यापन के साथ-साथ गांव के लोगों को भी रोजगार देते हैं। फूलों की खेती माली समाज का पुश्तैनी काम है। माली पारंपरिक रूप से बागवानी और फूल उगाने के लिए जाने जाते हैं। माली और फूलों के बीच एक बहुत ही खूबसूरत रिश्ता होता है। वह है देखभाल और एकजुट होकर लगन के साथ काम करने का। माली पौधों को अपने बच्चे की तरह पालता है, पोषण और सुरक्षा देता है। जिससे बागवानी में लगे रंग – बिरंगे फूल, स्वस्थ और खिलने में सक्षम होते हैं। फूल बदले में माली की आर्थिक आय बढ़ाने में मदद करते हैं और अपनी सुंदरता और रंगीनता से माली को खुशी देते हैं।
फूलों की खेती में अन्य लोगों को भी मिलता है रोजगार
किसान शंकर लाल बताते हैं कि वह अपने उगाए हुए फूल पटना की मंडी में बेंचते हैं। उनका गांव छोटा भले है लेकिन फूलों की खेती के लिए ही जाना जाता है। यहां का फूल दूर-दूर तक जाता है और इसमें लोगों को रोजगार भी मिलता हैं।
कड़ी मेहनत से तैयार होती है यह फसल
खेत में खडे शशांक शेखर कहते हैं कि उन्होंने एक बीघा 20 कट्ठा में गेंदा के फूलों की खेती की है। इस गांव में लगभग 30 परिवार ऐसे हैं। खेती करने में कड़ी मेहनत लगती है और 3 पूरे 3 महीने जब तक फूल निकलने नहीं लगता रात तो दिन खेतों की देखभाल निराई गुड़ाई में लगे रहते हैं यहां तक की खाना पीना भी खेतों में ही करना पड़ता है।
इस फसल में है गर्मी का असर
फूल को करीब से दिखाते हुए धर्मेश माली कहते हैं कि इसमें कीड़ा लगा हुआ है। इस कारण पत्तियों में छेद हो गए हैं। फूल पनप नहीं रहा इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है कि धूप तेज हो रही है जो फूलों के लिए हानिकारक है। धूप और गर्मी के कारण फूलों में रोग लग जाता है और फूल पनप नहीं पता पत्तियां फटने लगती हैं और पैदावार कम हो जाती है।अगर बीच-बीच बारिश हो जाती तो फूलों को राहत मिलती लेकिन अप्रैल और मई में बारिश नहीं धूप तेज होती है जिससे हर साल इन दिनों उनके फूलों की खेती बर्बाद हो जाती है।
गेंदें की खेती के समय हो रहा नुकसान
मुंशी मलाकर बताते हैं कि इस समय शादी का सीजन चल रहा है। फूलों की बहुत मांग होती है सजावट और माला बनाने के लिए पर तेज धूप के कारण खेत का कुछ हिस्सा तो पूरी तरह से जल गया है। जो दूसरे खेत में फूल दिख रहे हैं वो भी ना के बराबर हैं। जब की इस समय काफी सहालक होती हैं और फूलों की डिमांड भी बहुत होती है लेकिन जो फूल फरवरी- मार्च में निकलता है वह इस मौसम में नहीं निकलता।
धर्मेश मालकार फूल तोड़ते हुए बताते हैं कि मुझे फूल इसलिए तोड़ना पड़ रहा है। यह तो अच्छा है कि कुछ बहुत फूल हो गया वरना मैं भी मुंशी जी की तरह बर्बाद हो जाता। खेती को करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। पहले खेत की 4 बार जोताई करनी पड़ती है फिर बीज डालो,निराई- गोडाई और समय-समय पर पानी देना दवा का छिड़काव और खाद डालना जैसे बहुत से काम 3 महीने की मेहनत में आते हैं। तब फूल तोड़ने और बाजार में बेंचने के लिए निकल आता है। जब 3 महीने खून पसीना एक करते हैं तब कमाई दिखती है। इस बार अप्रैल से ही धूप इतनी हुई कि लोगों की खेती बर्बाद हो गई।
तापमान को देखते हुए एक दिन का बीच करके लगाया जा रहा है पानी
वैसे तो खेतों में हफ्ते में दो बार पानी देना होता है लेकिन अब एक दिन का बीच करके पानी देते हैं क्योंकि गर्मी ज्यादा पड़ने लगी है। ताकि फूल जिंदा रहे। गेंदे का फूल बहुत कोमल होता है। इसको ना ज्यादा गर्मी और धूप सहन होती है और ना ज्यादा ठंड लेकिन यह अपने हाथ में नहीं होता पर कोशिश होती है कि जितना भी वह मेहनत करके बचा सके उतना बचाव करें। इस बार उसके खेत में ज्यादा फूल न होने के कारण दूसरे के खेत में तोड़ाई करनी पड़ रही है।
दूर-दूर तक महकती है फूलों की खुशबू
जैतीपुर गांव से फूल तोड़ने आई केसर देव,निशु कुमारी और पूनम देवी कहती हैं कि फूल तोड़ने के लिए वह अपने गांव से रामपुर आती है। माली सामुदाय के खेतों पर उन्हीं के साथ फूल तोड़ती हैं। वह कहती हैं कि आपस में एक दूसरे की मदद करते हैं जिसके खेत में ज्यादा फूल होते हैं वह एक दूसरे के साथ मिलकर तोड़वा देते हैं। इस गांव में सिर्फ गेंदे के फूल नहीं और भी कई तरह के रंग-बिरंगे फूलों की खेती होती है। जैसे मोगरा लाल पीला गेंदा गुलदाउदी और अड़हुल जैसे कई तरह के फूलों से यह गांव लहराता है और उन फूलों की खुशबू दूर-दूर तक महकती है।
महिलाओं को मिल रहा रोजगार
खेतों पर फूलों की तुड़ाई कर रही महिलाएं कहती हैं कि वह रामपुर गांव की ही रहने वाली है और हर दिन खेतों में फूलों की तुड़ाई करने के लिए खेत मालिक उनको बुलाते हैं। वह सुबह आती है लगभग तीन से चार घंटे काम करती हैं। हर दिन की मजदूरी उनको ₹80 रु एक महिला को दी जाती है। रोज़गार बचाने के लिए अब तोड़े गए फूलों को पानी में डालकर ताज़ा रखा जाता है और अगली सुबह 4 बजे पटना रेलवे स्टेशन के पास मंडी में भेजा जाता है। वहीं से शादी-ब्याह और पूजा के लिए लोग फूल खरीदते हैं। इस बार फूलों की खेती में भारी नुकसान हुआ है। एक गट्ठा या बीघा जमीन में खेती करने पर ₹40,000 तक खर्च आता है, लेकिन फूलों की कम पैदावार के कारण कमाई इस बार नहीं होती बहुत घाटा हो रहा है। कई किसानों का नुकसान ₹1 लाख से ज़्यादा तक हो गया है। जिससे किसानों के हौसले टूट गए हैं।
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