बिहार में एक ग्राम पंचायत को चलाने के लिए 5 पद की जरूरत होती है जिसमें से एक पद सरपंच का भी होता है। जिसका काम होता है कि गांव में किसी भी तरह का कोई भी विवाद होता है तो उसको लेकर के दोनों पक्षों में एक कचहरी लगाई जाती है और दोनों की बातों को सुनकर उन्हें सुलह करवा के उनके घर पर भेज दिया जाता है इस पर दो तरह की कचहरी लगती है दीवाने आम और दीवाने खास .यह कोई सुनिश्चित नहीं है कि दीवाने आम कौन से शनिवार को लगेगी और दीवाने खास कौन से शनिवार को लगेगी, दोनों एक ही शनिवार को लग जाती हैं ।
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लेकिन अमूमन देखने को मिलता है कि सरपंच होने के बावजूद भी गांव में कोई पंचायती नहीं बैठती है। गांव में विवाद होते हैं जिनका कोई नहीं सुनता ना कचहरी लगती है ना सरपंच बैठता है, ना ही उनकी बातों को सुना जाता है जिसकी वजह से उनके जो विवाद हैं वे बढ़ते जाते हैं। थाने पर जाकर उनकी शिकायत होती है और उनका कोई निर्णय भी जल्दी नहीं निकल पाता है। हमने देखा कि पटना जिले के पुनपुन ब्लाक के अंतर्गत आने वाला ग्राम पंचायत चिरौरा के गांव गोपालपुर में एक ग्राम पंचायत बना है जिसमें सरपंच शंभू हर शनिवार को एक कचहरी लगाते हैं और गांव के पंच आकर सबहि मिलकर गांव में जो विवाद होते हैं उनका निपटारा करवाते हैं। वहां पर आए हुए विवादित पीड़ित गांव निवासी के दोनों पक्ष आते हैं और अपनी-अपनी बातों को रखते हैं। फिर सरपंच दोनों की बात सुनते हुए एक अलग नई डेट देते हैं और जब तक निपटारा नहीं हो जाता तब तक दोनों को समझाते रहते हैं और नई डेट देते रहते हैं।
वहां पर आए हुए लोगों से बातचीत से पता चला कि किसी का निपटारा 8 हफ्तों में हुआ किसी का 4 हफ्तों में हुआ तो किसी का 11 हफ्तों में हुआ और किसी-किसी का तो अभी विवादित पक्ष चल ही रहा था। उन्होंने बताया कि जब यहीं पर हम लोगों का निपटारा हो जाता है तो हमको थाने जाने की ज़रूरत क्या है। वह बात अलग है कि बहुत से लोग सरपंच की बात नहीं मानते हैं तो वह लोग थाने जाते हैं। हमने वहां पर यह भी देखा कि थाने में गया हुआ विवाद भी उन्हीं के पास आया था और वह लेकर के थाने से आए थे ताकि गांव के बात बाहर न जाए। गांव वालों ने कहा कि 20% ही व्यक्ति होंगे जो बाहर थाने में जाकर के अपनी शिकायत दर्ज करते होंगे नहीं तो हर हफ्ते जब यहां पर कचहरी बैठी है तो यहीं पर हम अपनी बात को रखते हैं। यहीं पर ही हमारी बात खत्म हो जाती है।
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सरपंच ने बताया कि हमारे यहां की जो कचहरी होती है वह हर हफ्ते शनिवार को लगती है। अगर मैं किसी काम से बाहर चला जाता हूं तो मेरे नीचे उप सरपंच हैं जो कि इस काम को देखते हैं और आगे बढ़ाते हैं लेकिन निपटारा तभी होता है जब मैं आता हूं। यह कार्य करते हुए उनका दूसरा पंचवर्षीय चल आ रहा है। अभी तक में गांव वालों ने उनका खूब सपोर्ट किया है और उनकी बातों को माना है। गांव वालों के बीच उनकी जो इज़्ज़त है वह काफी अच्छी बन रही है। उनका कहना है कि हां मैं जानता हूं कि बिहार में 60% ऐसे ग्राम पंचायत हैं जिनमें अभी भी पंचायती नहीं बैठती है सिर्फ 40 परसेंट ही पंचायती बैठती है। हर ग्राम पंचायत में कचहरी लगती है। शायद वह लोग अपने कार्य को सही तरीके से कर नहीं पा रहे हैं या उनके निर्णय को गांव के लोग सपोर्ट नहीं करते हैं। इसी वजह से 60% ग्राम पंचायत में पंचायती यानी की कचहरी नहीं लगती है।
उन्होंने बताया कि पंचायती करने से पहले लोगों को यहां पर एक फॉर्म भरना पड़ता है। अपनी शिकायत दर्ज करानी पड़ती है फिर हम निर्णय देते हैं वह होता है। हमारे यहां से जो भी निर्णय जाता है वह कोर्ट को मंजूर होता है और यह एक सरकारी नियम या कार्य है जो नियमित रूप से यहां पर होता है।
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