खबर लहरिया Hindi PATNA : बाढ़ का पानी स्कूलों तक पंहुचा, बच्चें स्कूल से बाहर पढ़ने को मजबूर

PATNA : बाढ़ का पानी स्कूलों तक पंहुचा, बच्चें स्कूल से बाहर पढ़ने को मजबूर

मंदिर के बाहर कुछ चप्पलें पड़ी थीं, जिनकी संख्या करीब 10–12 थी। लेकिन जब अंदर देखा गया तो वहां उससे कहीं अधिक बच्चे पढ़ाई में मग्न नजर आए। दरअसल, बच्चों को उम्मीद थी कि शायद स्कूल का पानी उतर गया होगा। इसलिए कई बच्चे बिना चप्पल के ही निकले थे ताकि अगर थोड़ा पानी भी हो, तो आसानी से स्कूल के अंदर जा सकें। मगर जब देखा कि पानी कम नहीं हुआ, तो वे वहीं मंदिर परिसर में बैठकर पढ़ाई करने लगे। उनका यह साहस और समर्पण यह दिखाता है कि हालात चाहे जैसे भी हों, पढ़ाई को रोका नहीं जा सकता।

                                                                                                                                                    स्कूल के बच्चों की चप्पलें (फोटो साभार: सुमन)

रिपोर्ट – सुमन, लेखन – सुचित्रा 

जब देश डिजिटल शिक्षा और स्मार्ट क्लास की ओर बढ़ रहा है, तो वहीं पटना जिले के गांव में सरकारी स्कूलों की हालत एक अलग ही सच्चाई बताती है। जहां शिक्षा के लिए बच्चों और शिक्षकों के लिए बाढ़ के समय में गंदे पानी में से होकर स्कूल तक पहुंचना चुनौती से कम से नहीं है। जब सरकार शिक्षा को लेकर नई योजनाएं बनाती और घोषणाएं करती हैं, यहां तक कि करोड़ों रुपए का बजट भी पास करती है। तो फिर सरकार इन स्कूल की स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाती है? क्या बच्चों का भविष्य इस तरह के स्कूलों में बनाया जायेगा जहां की दीवारें जर्जर हो या फिर जहां लगातार बारिश की वजह से स्कूल ही जलमग्न हो जाये और बच्चों का भविष्य भी इन स्कूल की तरह डूब जाए?

पटना जिले के बैरिया पंचायत स्थित कई सरकारी स्कूल इन दिनों भारी जलजमाव की चपेट में हैं। हालात इतने खराब हैं कि शिक्षक और छात्र दोनों को गंदे पानी से होकर स्कूल तक पहुंचना पड़ रहा है। कई स्कूलों में क्लासरूम तक पानी भर चुका है, जिससे पढ़ाई नहीं हो पा रही है।

सिद्धचेचक गांव के प्राथमिक विद्यालय में 5 फीट तक पानी

खबर लहिरया की रिपोर्टिंग की जमीनी स्तर की जाँच में सबसे गंभीर स्थिति संपतचक प्रखंड के अंतर्गत आने वाले सिद्धचेचक गांव के प्राथमिक विद्यालय की है, जो बैरिया पंचायत के अंतर्गत आता है। इस स्कूल में जलजमाव की स्थिति इतनी भयावह है कि परिसर में करीब 5 फीट से अधिक पानी भरा हुआ है। स्कूल भवन पूरी तरह डूब चुका है और अंदर प्रवेश करना असंभव हो गया है।

सिद्धचेचक गांव के प्राथमिक विद्यालय में 5 फीट तक पानी

मंदिर के खुले स्थान पर पढ़ने को मजबूर

स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 15 अगस्त जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व पर भी स्कूल परिसर में झंडा नहीं फहराया जा सका। मजबूरी में शिक्षक और छात्रों को पास ही स्थित एक मंदिर परिसर में झंडारोहण करना पड़ा। अब बच्चे पढ़ाई भी इसी मंदिर के खुले स्थान पर कर रहे हैं।

स्थानीय लोगों और शिक्षकों के अनुसार, यह समस्या हर साल बरसात में सामने आती है, लेकिन अब तक स्थायी समाधान नहीं किया गया है। नालियों की साफ-सफाई, जल निकासी व्यवस्था और उचित स्कूल भवन की ऊंचाई जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान न दिए जाने से ग्रामीण इलाकों के ये स्कूल लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं।

हर साल डूबता है स्कूल

खबर लहरिया की रिपोर्टर जब गांव के स्कूल का रास्ता पूछते हुए एक पान की दुकान पर बैठे व्यक्ति से बात की तो उन्होंने बताया, “जिस गांव और स्कूल (सीतजैनचक गांव के प्राथमिक विद्यालय) के बारे में आप पूछ रही हैं, वो हर साल बरसात में डूब जाता है। हर साल बच्चों को स्कूल के बाहर बैठकर पढ़ना पड़ता है।”

जब रिपोर्टर ने उनसे पूछीं कि स्कूल कहां है, तो उन्होंने बताया, “स्कूल तो अंदर ही है, लेकिन बंद पड़ा है। बच्चे वहां पढ़ाई नहीं करते। इस समय तो शिव मंदिर में पढ़ाई चल रही है।”

उन्होंने आगे कहा, “स्कूल तक जाने का रास्ता नहीं है, क्योंकि रास्ते में इतना पानी है कि अगर आपने देखा तो आप खुद नहीं जा पाएंगी। हां, एक दूसरा रास्ता है, थोड़ा लंबा जरूर है, लेकिन उसी से जाएं तो दूर से ही सही, स्कूल आपको दिख जाएगा।”

लोगों की इन बातों से यह साफ़ हो गया कि इस स्कूल में पहली बार और अचानक पानी भर गया हो ऐसा नहीं है, बल्कि हर साल की यही कहानी है। लेकिन सवाल यह है कि जब यह स्थिति हर साल की है तो अब तक इसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया है? यह न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई स्थायी समाधान अब तक नहीं निकाला गया है।

पूरे विद्यालय को पढ़ाने की जिम्मेदारी 4 शिक्षकों पर

प्रमोद कुमार, सिद्धचेचक प्राथमिक विद्यालय के एक शिक्षक हैं। वे पिछले 22 वर्षों से इस विद्यालय में कार्यरत हैं। शुरुआत उन्होंने शिक्षा मित्र के रूप में की थी, और अब वे बतौर नियमित शिक्षक कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को पढ़ाते हैं। प्रमोद कुमार के अनुसार, स्कूल में कुल 5 शिक्षक कार्यरत हैं, जिनमें से चित्रा भारद्वाज मातृत्व अवकाश पर हैं। इस समय शिक्षकों में प्रमोद कुमार के अलावा श्वेता कुमारी और एकता कुमारी शामिल हैं। चारों शिक्षक मिलकर विद्यालय की जिम्मेदारी निभाते हैं।

प्रमोद सिद्धचेचक कुमार बताते हैं कि 8 या 10 अगस्त से विद्यालय में जलजमाव शुरू हो गया था। शुरुआत में जब तक स्थिति काबू में थी, बच्चों को पानी में होकर भी स्कूल बुलाया गया और पढ़ाई जारी रही। लेकिन जब पानी का स्तर बढ़ने लगा, तो उन्होंने विद्यालय के पास स्थित मंदिर के खाली मैदान में पढ़ाई शिफ्ट कर दी।

पानी का घटना हुआ कम

प्रमोद सिद्धचेचक गांव से हैं उन्होंने कहा कि पिछले तीन-चार दिनों से बारिश कम हुई है, जिससे अब पानी घट रहा है। अगर स्थिति सामान्य रही, तो अगले 5-6 दिनों में स्कूल में दोबारा पढ़ाई शुरू की जा सकती है। फिलहाल, एक सप्ताह और बच्चों को मंदिर परिसर में पढ़ाई करनी होगी।

आगे उन्होंने बताया यह स्थिति नई नहीं है। पिछले दो सालों से हर बरसात में यही होता है। दो-चार दिन से लेकर 15 दिन तक हमें बच्चों को बाहर पढ़ाना पड़ता है। हम अधिकारियों पर ज्यादा दबाव नहीं डालते क्योंकि पानी भरने की स्थिति स्कूल की लोकेशन ऐसी है जहां पानी भरना स्वाभाविक है।

उन्होंने कहा “हमारा स्कूल अच्छा बना है – पेंटिंग, सफाई, सारी व्यवस्था दुरुस्त है, लेकिन सबसे बड़ी कमी है कि स्कूल तक कोई पक्का रास्ता नहीं है। स्कूल के चारों ओर खाली मैदान और कुछ लोगों के खाली प्लॉट हैं, जहां बारिश का पानी भर जाता है और महीनों तक निकल नहीं पाता। इस कारण रास्ते में भी जलजमाव बना रहता है।

विद्यालय में कुल 162 बच्चे पंजीकृत हैं, और वे कक्षा 1 से 5 तक पढ़ते हैं। बारिश और अस्थायी पढ़ाई व्यवस्था के कारण कुछ बच्चों की उपस्थिति कम दिख रही है, लेकिन ऐसा हर जगह होता है। बच्चे छोटे हैं, कभी बीमार हो जाते हैं, कभी नहीं आ पाते, लेकिन पढ़ाई को लेकर उनका उत्साह बना हुआ है।

उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में एकता कुमारी अभी इस स्कूल में नहीं पढ़ा रही हैं क्योकि वह मसौढ़ी में पांच दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण पर हैं। श्वेता कुमारी ब्लॉक स्तर के शैक्षणिक कार्यों में व्यस्त हैं। वे स्वयं (प्रमोद कुमार) मंदिर परिसर में बच्चों को नियमित रूप से पढ़ा रहे हैं।

कठिनाइयों के बीच भी बच्चों में पढ़ाई का जज़्बा कायम

अंशु, रागिनी, संजना, सृष्टि कुमारी, जिया रानी, सलोनी कुमारी और अमन राज, ये वे बच्चे हैं जो कठिन परिस्थितियों के बावजूद भी पढ़ाई के प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। इन बच्चों की आंखों में पढ़ने की ललक साफ दिखाई देती है।

बरसात के कारण विद्यालय में जलजमाव हो जाने के बाद भी ये बच्चे मंदिर के पास खुले स्थान पर, एक विश्रामगृह की चौखट पर बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। वैसे तो अक्सर यह जगह भजन-कीर्तन और धार्मिक कार्यक्रमों के लिए होते हैं लेकिन आज वही जगह इन बच्चों की अस्थायी पाठशाला बनी हुई है।

इस तरह के भजन कीर्तन वाली जगह में बच्चों को पढ़ाई में ध्यान लगाना कितना मुश्किल होता होगा। आखिर कब तक स्कूल में पानी भरने पर ऐसी जगह पर बच्चों को पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा?

अमन राज, जो पांचवीं कक्षा का छात्र है, मुस्कराते हुए कहता है, “मैं रोज स्कूल आता हूं। पढ़ाई अच्छी लगती है। हां, स्कूल में पानी भर गया है ये दुख की बात है, लेकिन हम हर साल ऐसा ही झेलते हैं। अब सर ने कहा मंदिर में पढ़ो, तो हम यहीं पढ़ते हैं। जब पानी कम होगा तो फिर स्कूल में पढ़ेंगे।”

वहीं पास में बैठी छोटी उम्र की छात्रों ने भी पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कही “ये पानी, ये धूप, ये ठंडी हमें पढ़ाई से नहीं रोक सकती। दीदी, हमारा काम है पढ़ना। सर जहां पढ़ाएंगे, हम वहीं आ जाएंगे। जब पानी निकल जाएगा, तब स्कूल चले जाएंगे।”

बच्चों की इस तरह की बातें सुनकर तो यही लगा शिक्षा के लिए आसमान छूने की ज़रूरत नहीं, बस मन में जज़्बा होना चाहिए।

समस्या की जानकारी है, समाधान की दिशा में काम जारी

संपतचक प्रखंड के खंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) सुनील कुमार से फोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें सिद्धचेचक प्राथमिक विद्यालय में जलजमाव की समस्या की पूरी जानकारी है। उन्होंने कहा कि
“हमें पता है कि हर साल वहां पानी भर जाता है और स्कूल तक जाने में बच्चों और शिक्षकों को कठिनाई होती है। यह एक गंभीर मुद्दा है। फिलहाल हम इस पर काम कर रहे हैं कि इसका स्थायी समाधान कैसे किया जा सकता है। सबसे जरूरी है कि वहां एक पक्का रास्ता (रोड) बनाया जाए, ताकि आने-जाने में सुविधा हो सके। जैसे ही प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, जल्द ही वहां पर सड़क निर्माण कराया जाएगा।”

पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए तात्कालिक व्यवस्था पर उन्होंने कहा “जब तक पानी की स्थिति बनी रहेगी, हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि बच्चों की पढ़ाई किसी दूसरे स्कूल में शिफ्ट की जा सके, या फिर जैसा अभी मंदिर के पास पढ़ाई चल रही है, वह बनी रहे।”

उन्होंने भरोसा दिलाया कि विभाग इस समस्या को हल्के में नहीं ले रहा और आगे के लिए स्थायी समाधान निकालने की दिशा में प्रयास जारी हैं।

उच्च माध्यमिक विद्यालय बैरिया में भी जलभराव

उच्च माध्यमिक विद्यालय बैरिया के पास एक परचून की दुकान पर कुछ बुजुर्ग लोग बैठे थे। उन्होंने बताया “बच्चे अब स्कूल में नहीं जाते, वे मंदिर के पास एक खाली जगह पर पेड़ की छांव में बैठकर पढ़ाई करते हैं। सामने देखिए यही है आपका स्कूल। वहां एक से डेढ़ फीट तक पानी भरा हुआ है। टीचर लोग जरूर आते हैं और बच्चे भी। लेकिन पढ़ाई अब स्कूल के बजाय मंदिर के पास हो रही है।”

उन्होंने आगे यह भी बताया कि “यहां कोई नदी का पानी नहीं आता। लेकिन पहले ये इलाका खाली पड़ा था, अब धीरे-धीरे बस्ती बस गई है। जिनके घर नहीं बने, वहां अब भी खाली जगहें हैं। बरसात का पानी वहीं रुक जाता है। फिर वो पानी निकलता नहीं, बस जम जाता है और स्कूल तक जाने का रास्ता भी बंद हो जाता है।”

यह समस्या सिर्फ एक स्कूल तक सीमित नहीं है। बिहार में ऐसे न जाने कितने सरकारी स्कूल हैं, जो हर साल बरसात आते ही थम से जाते हैं। कई स्कूलों में जलभराव के कारण बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है और सरकार द्वारा अनौपचारिक रूप से छुट्टी घोषित कर दी जाती है।

हालांकि शिक्षकों को फिर भी खंड शिक्षा पदाधिकारी या ब्लॉक संसाधन केंद्र स्तर पर हाजिरी दर्ज कराने के लिए जाना पड़ता है चाहे स्कूल तक पहुंचना असंभव ही क्यों न हो।

कुछ स्कूल तो ऐसे हैं जहां नदी का पानी बाढ़ बनकर आता है और पूरे भवन को डुबो देता है। इन तस्वीरों और खबरों को आप अक्सर अखबारों और न्यूज चैनलों में देखते और पढ़ते होंगे। लेकिन बिहार के कुछ ऐसे गांव और स्कूल भी हैं जहां नदी नहीं, केवल बरसात का पानी ही तबाही लाता है, और फिर भी इन जगहों की शायद ही कभी कवरेज होती है।

इन इलाकों में समस्या सिर्फ पानी भरने तक सीमित नहीं होती स्कूल भवनों की स्थिति, सड़क व जल निकासी की कमी और प्रशासन की अनदेखी भी उतनी ही गंभीर है। लेकिन जब इन मुद्दों को लेकर अधिकारियों से बात की जाती है, तो अधिकांश समय जवाब औपचारिक और टालने वाले ही होते हैं।

 

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