प्रकृति में मौजूद नायाब चीज़े मनुष्य को हमेशा से ही उसकी तरह खींचती आईं है। हर बार प्रकृति अपने रूप से मानव को चौकाने में पीछे नहीं रहती। हज़ारो-लाखों बार बनती और बिगड़ती है। साथ में वह कई ऐसी चीज़ों का भी निर्माण करती है, जो हमने कभी सोचा भी न हो। आज हम आपको प्रकृति की एक ऐसी ही रचना के बारे में बताने जा रहे हैं, जो की मध्यप्रदेश में बसा हुआ है। यह जगह आपको मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी है।
पातालकोट
पातालकोट नाम की तरह यह जगह भी गहराई में बसी हुई है। मध्यप्रदेश के जिला छिंदवाड़ा से 78 किमी. दूर सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच आपको यह जगह प्रकृति की गोद में दिखाई देगी। उत्तर-पूर्व दिशा में जिला छिंदवाड़ा तहसील तामीया से यह सिर्फ 20 किमी की दूरी पर स्थित है। ज़मीन से लगभग 1700 फ़ीट नीचे यह जगह बसी हुई है। यह जगह 79 वर्ग किमी. में फैली हुई है। यह जगह घोड़ा-जूता आकार की घाटी और पहाड़ियों से घिरी हुई है।
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पातालकोट में हैं 12 गाँव
पहले पातालकोट में 20 गाँव थे। लेकिन प्राकृतिक आपदा की वजह से अब सिर्फ 12 गाँव ही रह गए हैं। जिसमें सिर्फ आदिवासी लोग ही रहते हैं। वह बारह गाँव है – गैलडुब्बा, करेआम,रातेड़, घटलिंगा-गुढीछत्री, घाना-कोडिया, चिमटीपुर, जड़-मांदल, घर्राकछार , खमारपुर, शेरपंचगेल,सुखाभंड- हरमुहुभंजलाम और मालती-डोमिनी। यहां पर अधिकतर लोग भारिया और गोंड आदिवासी समुदाय के हैं, जो अभी भी अपने आप को पूरी तरह से प्रकृति से जोड़े हुए हैं। कहा जाता है कि इस जनजाति के लोग इस जगह पर तकरीबन 500 सालों से रह रहे हैं। एक समय पर इन गाँवो में जाना मुश्किल होता है , लेकिन अब ऐसा नहीं है।
जगह की खासीयत
यह जगह अपनी संस्कृति, इतिहास और भोगौलिक पर्यावरण की वजह से जाना जाता है। जहां तक नज़रे घुमाओं, सिर्फ हरियाली और शांति ही दिखाई पड़ती है। जगह इतनी गहराई में बसी हुई है कि यहां तक सूरज की रोशनी भी नहीं पहुँच पाती। दिन भी रात की काली चादर की तरह दिखाई पड़ता है। जैसे ही रात होती है, उसके साथ-साथ जंगल और भी घना और भी ज़्यादा डरावना हो जाता है। जानवरों की आवाज़ आने लगती है।
यहां पर कई प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी पाई जाती हैं। यहां रहने वाले लोग इन्हीं जड़ी-बूटियाँ से अपना इलाज करते हैं। बारिश के मौसम में यहां बादल ऐसे दिखाई देते हैं, मानों तैर रहे हो। अब इस जगह का पहले से काफी ज़्यादा विकास भी हो गया। 2007 में यहां विकास की नींव रखते हुए पहला आंगनवाड़ी केंद्र खोला गया था। साथ ही अब यहां और दूसरे लोगों के आने-जाने के लिए भी रास्ते बन गए हैं। इसलिए आपको यहां आने में कोई तकलीफ नहीं होगी।
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कई सालों पुरानी है चट्टानें
यहां की चट्टानें ज्यादातर आर्कियन युग यानी लगभग 2500 मिलियन वर्ष पुरानी हैं। इसमें ग्रेनाइट, ग्रीन स्किस्ट, मूल चट्टान, गोंडवाना तलछट के साथ क्वार्ट्ज समेकित बलुआ पत्थर, शैलियां और कार्बोनेशियास शैलियां शामिल पायी जाती हैं। इस घाटी से दूधिया नदी भी बहती है।
जगह से जुड़ी पौराणिक कथाएं
पातालकोट में कटोरानुमा विशाल चट्टान के नीचे 100 फुट लंबी और 25 फुट चौड़ी गुफा है, जिसे राजाखोह कहा जाता है। बताया जाता है कि नागपुर के राजा रघुजी ने अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ विद्रोह किया था, लेकिन जब अंग्रेज उनके लिए खतरा बन गए तो उन्होंने इसी गुफा में शरण ली थी। तब से इस जगह का नाम राजाखोह पड़ गया। राजाखोह में बड़े-बड़े पेड़ और जंगली बेल हैं।
जगह के बारे में एक और मान्यता यह है कि भगवान शिव की पूजा कर रावण का पुत्र मेघनाद इस स्थान से ही पाताल लोक गया था। जिसकी वजह से इस जगह के बारे में यह कहा जाता है कि यह पाताल लोक जाने का दरवाजा है।
यह जगह साहसी लोगों, इतिहासकारों और खोजकर्ताओं जैसे लोगों के लिए कई रहस्य छुपाई हुई है। यहां आने पर आपको ऐसा अनुभव होगा जैसे कि आप किसी अलग ही दुनिया में आ गए हो। आप किसी भी रास्ते में आइये, आपको गहरी घाटी में पांच किलोमीटर का सफ़र पैदल तय करना होगा। तब जाकर आप पातालकोट पहुंचेंगे और आपको स्वर्ग जैसा अनुभव होगा। पातालकोट में रातेड़, कारेआम, नचमटीपुर, दूधी व गायनी नदी का उद्गम स्थल और राजाखोह जैसे प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहां हमेशा धुंध छाई रहती है। यह जगह आपको डराएगी भी और दूसरी दुनिया की सैर पर भी लेकर जाएगी। अगर आप यहां आने की तैयारी कर रहे हैं तो मानसून का मौसम यहां आने के लिए सबसे अच्छा समय है। साथ ही हर साल अक्टूबर के महीने में यहां सतपुड़ा एडवेंचर स्पोर्ट्स फेस्टिवल नामक त्यौहार भीआयोजित किया जाता है। जिसका आप मज़ा उठा सकते हैं।
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ऐसे पहुंचे
हवाईजहाज से – सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा नागपुर है। छिंदवाड़ा से इसकी दूरी 107 किमी. है। यहां भोपाल/ जबलपुर से भी पहुंचा जा सकता है। पहुँचने के बाद आप किसी टैक्सी या यातायात के साधन से पातालकोट पहुँच सकते हैं।
रेलवे स्टेशन – सबसे नज़दीकी छिंदवाड़ा जंक्शन है। अगर आप दिल्ली से यहां आ रहे हैं तो पातालकोट एक्सप्रेस ट्रेन रोज़ दिल्ली से यहां आने के लिए चलती है।
सड़क से – छिंदवाड़ा से नागपुर की दूरी 125 किलोमीटर, जबलपुर से 215 किलोमीटर और भोपाल से 286 किलोमीटर है। छिंदवाड़ा शहर को जोड़ने वाले इन शहरों से टैक्सियाँ और बसें भी आसानी से मिल जाती हैं।