फरवरी महीने में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जिलाध्यक्ष का चयन किया जिसमें राजनीतिक पार्टी के बांदा जिले से रामकेश निषाद को चुना गया।
इसी तरह अक्टूबर 2019 में कांग्रेस पार्टी में भी जिलाध्यक्ष का चुनाव किया गया। अब जिलाध्यक्ष राजेश दीक्षित हैं। दोनों ही पार्टियों ने महिलाओं को मौका नहीं दिया। मैंने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष चयन की कबरेज की।
दोनों जिलाध्यक्षो का इंटरव्यू किया। अपनी रिपार्टिंग के दौरान मैं यह जानना चाह रही थी कि महिलाओं को क्या कभी यह पद दिया गया है। दोनों राजनीतिक पार्टी के कार्यालयों में जिलाध्यक्ष के नाम की लिस्ट लगी थी। कांग्रेस पार्टी में जिलाध्यक्ष का चयन 1919 से शुरू हुआ और अब नए जिलाध्यक्ष का नाम 18वे नम्बर पर है।
भारतीय जनता पार्टी के नए जिलाध्यक्ष का नाम 21वे नम्बर पर हैं। इन लिस्टों में एक भी महिलाओं के नाम नहीं थे। इस सम्बंध में दोनों ही जिलाध्यक्षो ने कहा कि महिला प्रकोष्ठ अलग होता है। उस प्रकोष्ठ के अंदर भी पदाधिकारी जिला स्तर के होते हैं। मैंने इस सवाल को बार बार किया हर बार गोलमोल जवाब मिला। आखिकार इस सवाल का सही जवाब वह नहीं दे पाए।राजनीति और भृष्टाचार की शिकार गायें और अपंग गौशालाएं देखिए राजनीती, रस, राय में
उनको लगा शायद ये बात मुझे समझ नहीं आती। खैर मैं समझ रही थी कि जानबूझकर ऐसा बोला जा रहा है। मुझे मेरा सवाल भुलाया जा रहा है। पर सच तो ये है कि उनके पास इसका कोई जवाब ही नहीं था। दोनों पार्टियां का अपना अपना दावा है कि सबसे ज्यादा महिलाएं उनकी पार्टी में हैं क्योंकि महिलाओं को बराबरी का हक और सम्मान उनकी पार्टी के अंदर ही मिलता है।
उनकी कोशिश होती है कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं पार्टी के अंदर हों। अगर इस बात की सच्चाई जानना हो तो ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की लिस्ट देख लीजिए। खुद पता चल जाएगा कि कितनी महिलाओं को टिकट दिया गया। मेरा ये कहने का बिल्कुल मतलब नहीं कि पार्टी के अंदर महिलाएं नहीं हैं। पार्टी के शीर्ष स्तर में देखा जाए तो महिलाएं पार्टी की मुखिया हैं लेकिन ये स्तर जितना नीचे को आता है महिलाओं की संख्या घटकर नाम मात्र की रह जाती है।
पार्टी में महिलाएं जरूर हैं लेकिन एक बने बनाये ढांचे के अंदर। पार्टियां पार्टी के अंदर महिलाओं के नाम संगठन बनाती हैं जैसे महिला मोर्चा, दुर्गावाहिनी या और भी। सवाल ये है कि आखिरकार पार्टियों के अंदर भी महिला पुरुष के बीच इतना बड़ा भेदभाव, क्यों? महिलाओं को एक सीमा रेखा तक बांध दिया जाता है ताकि महिलाएं इस पर अपनी दावेदारी की बात ही न करें।
और महिलाएं भी ये मानकर बैठ जाती हैं कि उनको उस सीमा रेखा पर एक बात भी नहीं करनी। जितना उनके लिए किया और कहा जा रहा है उतने में ही संतुष्ट रहना है। यही उनके लिए सही है। इन्हीं सवालों और विचारों के साथ मैं लेती हूँ विदा, अगली बारी फिर आउंगी एक नयें मुद्दे के साथ। तब तक देखते रहिए हमारे चैनल की ढेर सारी खबरें। और हां अब आप हमारे चैनल से बुंदेलखंड छपी टीशर्ट और मोबाइल कवर भी खरीद सकते हैं। सबको नमस्कार!