चुनाव की तारीख क्या नजदीक आने लगी, नए नए नेताजी नजर आने लगे हैं। जैसे लग रहा है कि अभी तक वह सांप के बिल में छिपे हुए थे और अब अचानक निकलने लगे हैं। पांच सालों तक वे कहां रहे थे, यह पता ही नहीं चला लेकिन अब पंचायत चुनाव के अंतिम दिनों में उनकी सक्रियता देखने लायक है। अब न केवल वह अखबार के दफ्तरों के चक्कर लगाने लगे हैं बल्कि पार्टी में अपनी सक्रियता दिखाने के लिए लगातार सार्वजनिक कार्यक्रम भी कर रहे हैं। छोटा कार्यक्रम भी हो तो उसके प्रचार–प्रसार में पूरी शिद्दत से जुट जाते हैं।
इलाके में जगह–जगह उनके पोस्टर नजर आने लगे हैं
लोग नए नेताजी के नाम व चेहरे से वाकिफ हो जाएं इसके लिए जगह जगह पोस्टर लग गए हैं। शोसल मीडिया में खूब प्रचार चल रहा है। एक नेता जी कहते हैं कि अंतिम समय की सक्रियता ही मायने रखती है। पांच सालों में इलाके में क्या किया इसे कोई याद नहीं रखता। लेकिन चुनाव से पहले के अंतिम महीनों में क्या–क्या हो रहा है और क्या दिख रहा है इसे लोग याद रखते हैं। इस वजह से जगह–जगह पोस्टर लगाने के साथ ही अखबारों में नाम आना बहुत जरूरी है। इसी कारण वह दिन रात एक करके न केवल कार्यक्रम करते हैं बल्कि अपनी पकड़ व क्षेत्र के लोगों के बीच पैठ दिखाने के लिए भीड़ भी इकट्ठी करते हैं और सारे क्रिया कलाप को ऊपर के नेताओं तक पहुंचाते भी हैं। वह कहते हैं कि यह अंतिम दिनों की सक्रियता ही टिकट दिलवाने में अहम भूमिका अदा करेगी। कई तो ऐसे भी हवाई नेता हैं जो सिर्फ पोस्टबाजी व सोशल मीडिया में सक्रियता दिखाकर ही बड़े नेताओं को खुश करने में जुटे हुए हैं। एक नेता कहते हैं कि नए–नए लोग चाहे जितनी कवायद कर लें टिकट तो उसी को मिलेगी जिसके ऊपर आका का वरदहस्त होगा।
टिकट से ज्यादा सीट की चिंता
इन दिनों नेताओं को टिकट से ज्यादा चिंता सीट को लेकर है। उनका वार्ड सुरक्षित किया जाएगा या नहीं इसे लेकर वह दिन रात परेशान हैं। कभी चुनाव आयोग में अपने संपर्कों से हालात की जानकारी लेते हैं तो कभी पत्रकारों से और कभी बड़े नेताओं से लेकिन अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं हो रहा है। इसी बीच व्हाट्सएप पर भी यह मैसेज भी वायरल हो रहा है कि इन–इन सीटों को आरक्षित घोषित कर दिया गया है। जिससे गलतफहमी और भी ज्यादा बढ़ जा रही है। इसी वजह से वह रोजाना इस खबर का पता लगाने में जुटे रहते हैं कि कौन सी सीट आरक्षित हो रही है।
क्या कहते हैं नेता जी
एक नेता जी कहते हैं कि जिस इलाके में पांच साल सेवा की वहां की जनता उन्हें जानती है। उनके द्वारा किए गए कार्यो से लोग लाभान्वित भी हुए हैं लेकिन अगर उनकी सीट आरक्षित हो गई तो मुसीबत होगी। कई नेताओ ने इसकी भी व्यवस्था कर ली है। वह कहते हैं कि कोई गम नहीं कि उनकी सीट आरक्षित हो , महिला हो या पुरूष। उन्होंने तो बगल वाली सीट पर भी हमेशा नजर बनाये रखें है उस सीट के लोगों के भी काम आते रहें। कई नेताओ का तो कहना है कि उनके वार्ड के हिस्से दो वार्डों में चले गए हैं। अगर उनकी वर्तमान सीट महिला या आरक्षित हो जाती है तो वे बगल के दो वार्डों पर दावेदारी जता सकते हैं इस वजह से ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। लेकिन जिन नेताओ की बगल वाली सीट पर पहले से ही मजबूत दावेदार हैं उन नेताओ की चिंता जरूर बढ़ गई है। हालांकि यह चिंता कुछ नेताओं को नहीं है क्योंकि सीट कैसी भी हो उनकी दावेदारी दोनों ही स्थिति में होगी।
जब नेता कहने लगे कि यह उसका ‘आखिरी चुनाव’ है
साथ ही कुछ नेता जब कहने लगे कि यह उसका ‘आखिरी चुनाव’ है, तो समझ लीजिए कि राजनीतिक हसरतों की नाव में कहीं गहरा छेद हो चुका है। किसी कारण के चलते चुनाव में ‘यह कहना कि ‘ये मेरा आखिरी चुनाव है’, तो समझ लीजिएगा वोटर की सहानुभूति अर्जित करने का आखिरी ब्रह्मास्त्र है जिससे प्रभावित होकर जनता जनार्दन किसी और उपलब्धि पर दे न दे। कम से कम बालों की सफेदी देखकर तो वोट दे ही दे। नहीं तो हर बार की तरह पांच साल तक हाथ मलते रह जाने के अलावा कोई चारा न मिले।
*यह तसवीरें सोशल मीडिया और व्हाट्सप्प ग्रूपों में खूब वायरल हो रही है.