टीवी चैनलों ने इस हमले को लेकर उग्र बहसें चलाईं लेकिन ज़मीनी पड़ताल कम हुई। जो कैमरा पहलगाम की झीलें और बर्फ दिखाता था वह अब खून और डर से लथपथ इलाका दिखा रहा है। हमें यह सोचना होगा कि मीडिया का काम सिर्फ सरकार की भाषा बोलना है या जनता की चिंता भी उठाए और सरकार से सवाल भी करे।
लेखन – मीरा देवी
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकी हमले में 27 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई। इस हमले ने पुलवामा की यादें ताज़ा कर दीं और पूरे देश को झकझोर दिया। हमले के बाद सरकार ने कई कड़े फैसले लिए लेकिन जनता के मन में सवाल भी कम नहीं हैं। इस लेख में हम सरकार की कार्यवाही, राजनीतिक प्रतिक्रिया, पुलवामा से तुलना और ज़रूरी सवालों को समझने की कोशिश करेंगे।
पहलगाम आतंकी हमला के बाद सरकार की कार्यवाही
हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री ने देश की सुरक्षा को लेकर बड़ी बैठक बुलाई, जिसे कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) कहा जाता है। ये वही ताकतवर समिति है जो जब देश पर खतरा मंडराता है चाहे वो बॉर्डर पर हो या देश के भीतर, सेना की बात हो, विदेश नीति या परमाणु नीति तो सबसे जरूरी फैसले यहीं लिए जाते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, देश की हिफाज़त से जुड़ी हर बड़ी बात का फैसला इसी कमेटी की मुहर से तय होता है। इस बैठक में कई फैसले लिए गए।
हवाई जहाज का किराया न बढ़ाने की सलाह, फिर भी वायरल हुए महंगे टिकट के स्क्रीनशॉट: अफवाह
पहलगाम आतंकी हमले के बाद लोग किसी भी तरह घाटी से निकलना चाहते थे। इसी बीच किराया बढ़ने की आशंका को देखते हुए सरकार ने 23 अप्रैल की सुबह ही एयरलाइंस को निर्देश जारी किया कि फ्लाइट का किराया सामान्य ही रखा जाए। लेकिन शाम तक सोशल मीडिया पर ऐसे कई स्क्रीनशॉट वायरल हुए जिनमें श्रीनगर से कोलकाता का किराया 37 हजार रुपये तक दिख रहा था। इससे जनता में भ्रम और गुस्सा दोनों फैला। सिविल एविएशन मंत्रालय ने सफाई दी कि ये सभी वन-स्टॉप फ्लाइट्स थीं, जिनकी यात्रा अवधि 12-13 घंटे की थी। वहीं स्पाइसजेट ने भी किराया न बढ़ाने और यात्रियों को रीशेड्यूलिंग व कैंसिलेशन में छूट देने की बात कही।
सिंधु जल संधि पर रोक: सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुआ एक ऐतिहासिक समझौता है जो दोनों देशों के बीच सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों के पानी बंटवारे को लेकर हुआ था। इस संधि के अनुसार पहले की तीन नदियां ब्यास, रावी और सतलुज भारत को मिलीं जबकि पश्चिम की तीन नदियां सिंधु, झेलम और चेनाब पाकिस्तान को दी गईं। यह समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था और इसे अब तक एक सफल अंतरराष्ट्रीय जल संधि माना जाता रहा है। हालांकि हाल के वर्षों में भारत ने इसे लेकर अपने रुख में बदलाव लाते हुए पाकिस्तान को मिलने वाले जल धारा पर रोक लगाने का निर्णय लिया है जो कि दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के चलते एक बड़ा कूटनीतिक कदम माना जा रहा है।
अटारी बॉर्डर बंद: भारत और पाकिस्तान के बीच अटारी-वाघा बॉर्डर से लोगों और सामान की आवाजाही अब पूरी तरह से रोक दी गई है। पहले यहां से सीमित मात्रा में व्यापार और यात्राएं होती थीं लेकिन अब दोनों देशों के बीच इस रास्ते से कोई आवागमन नहीं होगा।
पाकिस्तान नागरिकों के वीजा रद्द: जो पाकिस्तानी नागरिक इस समय भारत में रह रहे हैं उनके वीजा रद्द कर दिए गए हैं। उन्हें भारत सरकार ने 48 घंटे (यानि दो दिन) के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया है। इसके साथ ही अब पाकिस्तान के नागरिकों को भारत आने के लिए नए वीजा भी नहीं दिए जाएंगे।
SAARC और SPES वीजा रद्द: भारत ने पाकिस्तान के साथ चल रही विशेष वीजा योजनाएं जैसे SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ) और SPES (विशेष उद्देश्यों के लिए वीजा) को भी समाप्त कर दिया है। इन योजनाओं के तहत पहले दोनों देशों के नागरिकों को सीमित और आसान वीजा सुविधाएं मिलती थीं लेकिन अब ये सभी रियायतें खत्म कर दी गई हैं।
पाकिस्तान उच्चायोग के रक्षा अधिकारियों को निष्कासन: दिल्ली में मौजूद पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात सेना, वायुसेना, नौसेना और रक्षा विभाग से जुड़े अधिकारियों को भारत सरकार ने अवांछित व्यक्ति मतलब रहने की अनुमति रद्द घोषित कर दिया है। इसका मतलब है कि अब वे भारत में नहीं रह सकते और उन्हें तुरंत देश छोड़ना होगा।
इन फैसलों से यह संदेश देने की कोशिश की गई कि भारत अब किसी भी हाल में नरमी नहीं बरतेगा लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कदम आतंक को जड़ से खत्म करेंगे या ये सिर्फ प्रतीकात्मक और दिखावटी हैं?
पहलगाम आतंकी हमला कैसे हुआ और क्यों सवाल खड़े हुए?
धारा 370 के हटाने के बाद से सरकार और खुफिया एजेंसियां हमेशा दावा करती हैं कि घाटी में शांति लौट आई है लेकिन इस हमले ने इस दावे की पोल खोल दी। इतने संवेदनशील इलाके में जहां जगह-जगह सीआरपीएफ और सेना की तैनाती रहती है वहां हमला हो जाना सीधे-सीधे सुरक्षा में भारी चूक की तरफ इशारा करता है। सरकार क्या वही रटी रटाई भाषा फिर बोलेगी जैसे बोलती आ रही है। हर बार हमले के बाद वही घिसी-पिटी भाषा कि हम निंदा करते हैं, देश शहीदों को नहीं भूलेगा, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। पिछले कुछ वर्षों से बार-बार ये दावा किया जा रहा है कि कश्मीर में हालात सुधर गए हैं। अब वहां पर्यटक आते हैं, फिल्में शूट होती हैं, अमरनाथ यात्रा सुरक्षित होती है तो फिर इस हमले को क्या कहा जाए? क्या ये सरकार की उस शांत कश्मीर वाली तस्वीर पर एक गहरा धब्बा नहीं? क्या सच में हालात बदले हैं, या बस कैमरे के आगे कुछ तस्वीरें रखकर देश को तसल्ली दी जा रही है?
इतनी सुरक्षा के बीच हमला कैसे हो गया?
पहलगाम कोई गुमनाम गांव नहीं है। ये इलाका जम्मू-कश्मीर का सबसे चौकस और सुरक्षाकर्मी-भरा इलाका माना जाता है। अमरनाथ यात्रा हो या सैलानियों का जमावड़ा, यहां हर गली, हर मोड़ पर सुरक्षा बल होते हैं। सीआरपीएफ, पुलिस और आर्मी फिर ये हमला कैसे हुआ? क्या आतंकियों को चौकियों के बीच से निकलने में कोई दिक्कत नहीं हुई? क्या ये मुमकिन है कि उन्होंने सुरक्षा की सारी नजरें चकमा देकर गोलीबारी कर दी? या फिर सुरक्षा व्यवस्था सिर्फ दिखावे की थी? अगर इतने सुरक्षा के बीच ये हुआ तो बाकी देश की उम्मीद क्या करें? खुफिया एजेंसियों को भनक तक क्यों नहीं लगी? तो फिर खुफिया विभाग आईबी, एनआईए और लोकल सीआईडी कहां थे?
विपक्ष का हमला: सिर्फ नारों से नहीं चलेगा काम
सरकार के फैसलों पर विपक्ष ने कई तीखे सवाल उठाए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पूछा कि पहले पुलवामा और अब पहलगाम। क्या सरकार सिर्फ गुस्से और भाषण से देश की सुरक्षा करेगी? टीएमसी, आप और आरजेडी जैसे पार्टियों ने भी मांग की कि सरकार एक स्वतंत्र जांच आयोग बनाए जो बताए कि सुरक्षा में चूक कहां हुई। विपक्ष का मानना है कि सिर्फ पाकिस्तान को कोसना काफी नहीं है जब तक भारत अपनी एजेंसियों और व्यवस्था को दुरुस्त नहीं करता।
पुलवामा से क्या कुछ सीखा था?
पुलवामा हमले से सरकार, खुफिया एजेंसियां, सुरक्षा तंत्र ने क्या सीखा था। 2019 में जब आत्मघाती हमलावर ने सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाया और 40 जवानों की शहादत का कारण बना तब पूरे देश में गुस्सा था। हर किसी का सवाल था हमारे जवानों की सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? आत्मघाती हमलावर काफिले तक कैसे पहुंचा? इसके बाद भारत ने बालाकोट एयर स्ट्राइक की लेकिन यह भी सवाल उठे कि क्या इस हमले के पीछे की आतंकवादी साजिश को रोकने के लिए पहले पर्याप्त कदम उठाए गए थे? पुलवामा और पहलगाम दोनों हमलों ने यह स्पष्ट किया कि हम जितना गुस्से में आकर जवाबी कार्यवाही करते हैं उतना ही जरूरी है कि सरकार सुरक्षा और खुफिया तंत्र को मजबूत करें ताकि ऐसी घटनाएं फिर से न हों।
ज़रूरी सवाल, जिसका जवाब हर नागरिक जानना चाहता है :
-जब हर जगह सेना और सुरक्षा एजेंसियों की तैनाती है, तो हमला कैसे हो गया?
-क्या हमले की खुफिया जानकारी पहले से थी और अगर थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
-सुरक्षा में चूक के लिए कौन जिम्मेदार है?
-क्या सिर्फ पाकिस्तान पर दोष डालना काफी है या हमें अपने देश की व्यवस्था भी देखनी चाहिए?
-क्या हम हर आतंकी हमले के बाद सिर्फ “कड़ा जवाब देंगे” कहकर भूल जाएंगे?
मीडिया का रोल: खबरें या शोर?
टीवी चैनलों ने इस हमले को लेकर उग्र बहसें चलाईं लेकिन ज़मीनी पड़ताल कम हुई। जो कैमरा पहलगाम की झीलें और बर्फ दिखाता था वह अब खून और डर से लथपथ इलाका दिखा रहा है। हमें यह सोचना होगा कि मीडिया का काम सिर्फ सरकार की भाषा बोलना है या जनता की चिंता भी उठाए और सरकार से सवाल भी करे.
क्या ये हमले सरकार की नीतियों की विफलता हैं?
सरकार पिछले कुछ वर्षों से दावा करती रही है कि कश्मीर में आतंकवाद लगभग खत्म हो गया है। अगर ऐसा है तो यह हमला क्या साबित करता है? कुछ जानकार मानते हैं कि जब सरकार ज़मीन पर भरोसे के बजाय ताकत के दम पर शांति थोपती है तो अंदरूनी विरोध दब नहीं पाता वो कभी न कभी फूटता है।
जनता की भावनाएं: गुस्सा भी है, डर भी
आम लोगों में गुस्सा है, डर है और दुख भी। देश की जनता यह मानती है कि उनके अपने देश में भी वे सुरक्षित नहीं हैं। जब एक पर्यटन स्थल तक सुरक्षित नहीं रहा तो बाकी जगहों का क्या? जनता यह भी देख रही है कि सरकार हर बार सख्ती की बात तो करती है लेकिन अगली बार फिर चूक हो जाती है। यही वजह है कि लोगों का भरोसा डगमगाने लगा है।
चुनावी असर: क्या इस बार भी पुलवामा जैसी लहर उठेगी?
2019 के लोकसभा चुनावों में पुलवामा और बालाकोट मुद्दा छाया रहा। अब जब 2025 के चुनाव पास हैं तो पहलगाम हमला एक भावनात्मक मुद्दा बन सकता हैलेकिन इस बार जनता पहले से ज्यादा जागरूक है। वे सिर्फ भाषणों से नहीं बल्कि ठोस नतीजों से सरकार को आंकना चाहते हैं।
आगे क्या होना चाहिए?
-खुफिया तंत्र की गहराई से समीक्षा हो।
-सुरक्षा तंत्र में जवाबदेही तय की जाए।
-सिर्फ कूटनीति नहीं ज़मीन पर बदलाव हो।
-आतंकियों के नेटवर्क को जड़ से खत्म करने की रणनीति बनाई जाए जिसमें लोकल युवाओं को भी साथ लिया जाए।
पहलगाम हमला सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, एक बार फिर से। सरकार को चाहिए कि वह सिर्फ नारों से नहीं बल्कि जवाबदेही और बदलाव से जनता का भरोसा कायम करे। वरना जनता यह पूछने लगेगी कि हमारा खून भी अब सिर्फ चुनावी मुद्दा है क्या? हर बार जब कोई हमला होता है तो सरकार कुछ घोषणाएं करती है। चैनल डिबेट करते हैं। नेता श्रद्धांजलि देते हैं फिर सब कुछ भूल जाते हैं पर जिनके घर उजड़ते हैं, वो नहीं भूलते।
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