जब लड़कियों को अक़ल आती है तो दुनिया उसे पगलैट समझने लगते है |
लक्ष्मी – जब लड़की को अक़ल आती है तो लोग उसे पगलैट समझने लगते हैं.
फ़ैज़ा -ऐसा आपको लगता है या दुनियां को ?
लक्ष्मी – ऐसा संध्या को लगता है हमारे पड़ोस वाली नहीं सान्या मल्होत्रा जिसने इस फिल्म यानी पगलैट के मुख्य भूमिका में है.
फ़ैज़ा – अच्छा तो आप 26 मार्च को ott प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई फिल्म पगलैट की बात कर रही हैं ?
लक्ष्मी – सही कहा फ़ैज़ा आज हम बात करने वाले है फिल्म पगलैट पर तो चलो थोड़ा फ़िल्मी हो जाते हैं !
लक्ष्मी – फ़ैज़ा तुमने ये फिल्म देखि है ?
फ़ैज़ा – जी बिलकुल
लक्ष्मी – ओह सॉरी दोस्तों हम तो आपको फिल्म के बारे में बताना ही भूल गए. तो आपको बता दूँ कि पगलैट की कहानी संध्या गिरी यानी सान्या मल्होत्रा के इर्द-गिर्द घूमती है। लखनऊ में बसे गिरी परिवार की बहू संध्या गिरी के पति आस्तिक की अचानक मौत हो जाती है। संध्या और आस्तिक की शादी को अभी सिर्फ पांच महीने ही हुए थे। परिवार में मातम का माहौल है, रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ है और सब रो रहे हैं। ऐसे में पति के गुजर जाने के बाद तो संध्या का रो-रो कर बुरा हाल हो जाना चाहिए था। लेकिन इधर संध्या फेसबुक पर सबके कमेंट पढ़ रही है। वह अपनी सहेली नाज़िया से कहती है कि उसे रोना नहीं आ रहा है और भूख भी दबा कर लग रही है। संध्या की हालत देखकर सबको लगता है कि वह “पगलैट” हो चुकी है।
फ़ैज़ा – एक विधवा औरत, जिसका पति अभी-अभी मरा हो, उसे कैसा बर्ताव करना चाहिए इसके लिए भी हमारे समाज में एक ‘सेट पैटर्न’ है। वहीं, संध्या को यह भी पता चलता है कि आस्तिक का किसी दूसरी लड़की के साथ एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर था। यह सब जानने के बाद संध्या को आस्तिक से नाराजगी है और वह नाजिया से कहती है कि वह आस्तिक को माफ नहीं करेगी। लेकिन फिर संध्या की मुलाकात होती है आकांक्षा से, जो आस्तिक की गर्लफ्रेंड थी। आकांक्षा से मिलने के बाद संध्या को समझ आता है कि आस्तिक धोखेबाज़ नहीं था। जिसके बाद संध्या उसे माफ़ कर देती है और उसे रोना आ जाता है।
लक्ष्मी – इसी बीच घर में इंश्योरेंस वाले आते हैं। घरवालों को पता चलता है कि आस्तिक ने संध्या को नॉमिनी बनाया है और उसके नाम 50 लाख का इंश्योरेंस करवाया है। यह सुनते ही रिश्तेदार संध्या के सास-ससुर के कान भरने लगते हैं। संध्या के ससुराल वाले उसकी शादी आस्तिक के चाचा के बेटे से करवाना चाहते हैं। यह सब लोग खुद ही संध्या की ज़िंदगी का फैसला ले रहे हैं।
फ़ैज़ा – अंत में संध्या दूसरी शादी करेगी या नहीं यह आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
लक्ष्मी – वैसे इस फिल्म को देख कर तुम्हे क्या लगा ?
फ़ैज़ा – एक सिंपल कहानी में एक पवार फुल महिला किरदार को दर्शाया गया है जो अपनी भावनाओ को खुल कर जाहिर करती है. जैसे उसे अपने पति के मौत पर रोना नहीं आता वो बोलती है. इतना ही नहीं इस फिल्म में ये भी दर्शाया गया है कि एक लड़की के बारे में सब सोचते जरूर है लेकिन एक लड़की क्या सोचती है इसमें किसी का कोई इंट्रेस्ट नहीं होता है.
लक्ष्मी – बिलकुल और ये फिल्म के किरदार और कहानी ऐसी है जैसे हमारे रिश्तेदार हो हर छोटी मोटी चर्चा झगडे और नसीहतें। मुझे आशुतोष राणा का किरदार भी काफी पवार फुल लगा कैसे एक पिता अपने जवान बेटे की मौत से टुटा हुआ है लेकिन फिर भी अपने परिवार को टूटने से बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है हर एक संवाद दिल को छूते है.
फ़ैज़ा – बातों बातों में समय का पता ही नहीं लगा
लक्ष्मी – हाँ फ़ैज़ा हम तो भूल ही गए हमें जाना भी है तो जल्दी से हम इस फिल्म की रेटिंग देते है
फ़ैज़ा – बिलकुल तो हम इस फिल्म को 5 से 4 स्टार वैसे आपको ये फिल्म कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताइयेगा।
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लक्ष्मी – तो मिलते है अगले एपिसोड में कुछ और फ़िल्मी गपशप के साथ तब तक के लिए नमस्कार।