हर साल ओलिव रिडले कछुए, भारत के तटों पर प्रजनन के लिए आते हैं। मादा कछुए समुद्र के किनारे आकर अपने अंडे देती हैं, वहीं नर कछुए पानी में ही रहते हैं। आमतौर पर, चेन्नई के तटों पर हर साल 100 से 150 कछुए अंडे देते हैं, इसलिए 1,000 से ज़्यादा कछुओं का फंसे होना हैरान करने वाली बात है।
तमिलनाडु राज्य के समुद्री तटों पर जनवरी के महीने में 1,100 अधिक ओलिव रिडले कछुए मृत पाए गए। इनमें से अधिकतर कछुए राज्य की राजधानी चेन्नई के पास पाए गए। पर्यावरणविदों ने ओलिव रिडले कछुओं के इस तरह से समुद्र किनारे पाए जाने को लेकर चिंता जताई है। इसके बाद से तमिलनाडु सरकार ने प्वाइंट कैलिमेरे या कोडियाकरई में एक जुड़ा हुआ जैव विवधता संरक्षण केंद्र (IBCC) स्थापित करने का फ़ैसला किया है। यह केंद्र मुख्यतौर पर ओलिव रिडले कछुओं से जुड़ी जागरुकता फ़ैलाने का काम करेगा।
प्रजनन के लिए तटों पर आते हैं ओलिव रिडले कछुए
वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं, ऐसा दशकों में पहली बार हुआ है जब तमिलनाडु की तटों पैट इस तरह से बड़ी संख्या में ओलिव रिडले कछुओं के मरने की ख़बर आई हो। आखिरी बार ऐसी कोई ख़बर साल 2014 में आई थी, जब प्रजनन के दौरान सिर्फ चेन्नई की तटों पर लगभग 800 कछुए मृत पाए गए थे।
पांडिचेरी विश्विद्यालय के पारिस्थितिकी शास्त्र के प्रोफेसर के.शिवकुमार ने मोंगाबे ( प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर जानकारी देने वाला वेब पोर्टल) को बताया, “मैनें पिछले तीन दशकों में तमिलनाडु के किसी भी तट पर इतनी बड़ी संख्या में कछुओं के फंसे होने के बारे में नहीं सुना।”
आगे कहा, हर साल ओलिव रिडले कछुए (Lepidochelys olivacea) भारत के तटों पर प्रजनन के लिए आते हैं। मादा कछुए समुद्र के किनारे आकर अपने अंडे देती हैं, वहीं नर कछुए पानी में ही रहते हैं। आमतौर पर, चेन्नई के तटों पर हर साल 100 से 150 कछुए अंडे देते हैं, इसलिए 1,000 से ज़्यादा कछुओं का फंसे होना हैरान करने वाली बात है।
ओलिव रिडले कछुओं के मौत की ये हो सकती है वजह
ओलिव रिडले कछुओं की मौत को लेकर संभावित वजह स्क्विड और समुद्रफेनी (cuttlefish) मछलियों को पकड़ने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे बड़े जालों की बताया गया है। ये कई किलोमीटर लंबी जालें, जिनके नीचे भारी वज़न लगे होते हैं, कछुओं को फंसा उन्हें हवा के लिए सतह पर आने से रोक सकती है। इससे उनका दम घुट सकता है। इसके साथ ट्रॉलर जाल भी उतने ही खतरनाक होते हैं, क्योंकि यह अमूमन मौजूदा नियमों का उल्लंघन करते हैं।
ट्रॉलर जाल, ऐसे बड़े जाल होते हैं जिन्हें समुद्र में मछलियों को पकड़ने के लिए ट्रॉलर नावों द्वारा खींचा जाता है। ये जाल समुद्र के तल से मछलियों और अन्य समुद्री जीवों को खींचने के लिए बनाये जाते हैं। ये जाल बहुत बड़े होते हैं और मछलियों को पकड़ने के लिए समुद्र के तल के ऊपर तक फैलाए जाते हैं।
ट्रॉलर जालों की वजह से समुद्री जीव जैसे कछुए, डॉल्फिन और मछलियां फंस सकते हैं, जो समुद्री जीवन के लिए खतरनाक साबित होते हैं।
ट्रॉलर जालों के इस्तेमाल को देखते हुए तमिलनाडु सरलार ने तटीय जलक्षेत्रों में अवैध ट्रॉलिंग को रोकने के लिए कोशिशें तेज़ कर दी हैं। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, मत्स्य विभाग ने एक अभियान शुरू किया है। इसमें पांच समुद्री मील के प्रतिबंधित क्षेत्र में काम कर रहे 24 ट्रॉलर नावों को पकड़ा गया है। साथ ही उल्लंघन करने वाले सभी लोगों के खिलाफ़ मामला भी दर्ज़ किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, संकट के समाधान के लिए एक टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है। इसके अलावा मत्सय विभागों द्वारा ट्रॉल मछुआरों के लिए जागरूकता सत्र भी आयोजित किये गए हैं, जिनमें से एक सत्र कासीमेडु में आयोजित किया गया।
संकटग्रस्त प्रजातियों में सूचीबद्ध हैं ओलिव रिडले कछुए
ओलिव रिडले कछुए, दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुओं में से एक हैं। इनका नाम, उनके कवच के रंग के नाम से पड़ा है। इन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में रेड लिस्ट (लाल सूची अर्थात खतरे की सूची) में सूचीबद्ध किया गया है।
यह कछुए खतरे की सूची में इसलिए हैं क्योंकि यह बेहद कम जगहों पर अपने अंडे देते हैं। अगर समुद्री तट पर किसी भी तरह की परेशानी पैदा होती है तो इसका असर उनकी पूरी प्रजाति पर हो सकता है – वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ की वेबसाइट पर इस बारे में बताया गया है।
ये समुद्री सरीसृप सांस लेने के लिए पानी की सतह पर आते हैं व अपने अद्भुत प्रवासन के लिए जाने जाते हैं। यह अमूमन खाने और प्रजनन स्थानों के बीच हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। ये तमिलनाडु के तट के पास सितंबर या अक्टूबर के महीने के आस-पास प्रजनन के लिए आते हैं। वहीं अंडे देने का समय नवंबर के आखिर से शुरू होकर मार्च के महीने तक रहता है।
समुद्री सरीसृप, वे सरीसृप होते हैं जो समुद्र के जलीय जीवन या अर्ध-जलीय जीवन के लिए अनुकूल हो चुके हैं। इसमें समुद्री सांप व समुद्री कछुआ शामिल है।
सभी समुद्री जीवों के साथ ‘संकट’ की सूची में शामिल जीवों को लेकर अधिक ध्यान केंद्रित कर, उनकी सुरक्षा को लेकर काम करने की ज़रूरत है। साथ ही लोगों में इसे लेकर जागरूकता फैलने की भी ज़रूरत है ताकि इनका संरक्षण किया जा सके, जिसके बारे में पर्यावरणविद (पर्यावरण विशेषज्ञ) हमेशा कहते भी आये हैं।
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