गैर सरकारी संस्था ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ और ‘निर्वाचन आयोग’ के आंकड़ों के अनुसार 2018 के विधानसभा चुनावों में विजय 678 विधायकों में से केवल 62 महिलाएं हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश (एमपी), छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में कुल 93 मिलियन महिलाओं का घर हैं। इन राज्यों में मतदान के बाद चुने गए विधायकों में से केवल 9 फीसदी महिलाएं हैं। मिजोरम की राज्य विधानसभा में शून्य महिला प्रतिनिधित्व है।
देखा जाये तो महिला प्रतिनिधियों की ज्यादा जरूरत है, जो महिलाओं की जरूरतों पर विचार कर पाए। वोट देने के लिए महिलाएं बड़ी संख्या में आगे आ रही हैं, लेकिन लोकतंत्र में प्रतिनिधि होने के लिए अधिक महिला विधायकों और सांसदों को आगे आने की जरुरत है।
पंचायत और नगर पालिका स्तर पर देखा है कि महिलाएं न केवल चुनाव जीतने में सक्षम हैं बल्कि फिर से निर्वाचित भी हो रही हैं।
मध्यप्रदेश में हुए चुनाव में सबसे ज्यादा महिला उम्मीदवार ( कुल 2,716 उम्मीदवारों में से 235 ) देखी गई। हालांकि सफल महिला उम्मीदवारों की संख्या केवल 22 सबसे कम है। राजस्थान में 2018 में 2,291 में से 188 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा है। लेकिन विजय 23 हो पाई। छत्तीसगढ़ केवल एकमात्र राज्य है जहां पिछले वर्षों की तुलना में अधिक महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा और जीता है – यहां 90 उपलब्ध सीटों में से 13 महिला उम्मीदवारों ने जीता है, जो 2013 में 10 और 2008 में 11 से ज्यादा है। मिजोरम ने एक भी महिला का चुनाव नहीं किया, हालांकि महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है।
चुनावी सुधारों और शासन में सुधार के लिए काम कर रही संस्था, नेशनल इलेक्शन वॉच के अनुसार, कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने 12 फीसदी से अधिक महिला उम्मीदवारों को मैदान में नहीं रखा है। बीजेपी ने अधिक, 80 महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा जो सभी पार्टियों की तुलना में सबसे ज्यादा है जबकि कांग्रेस ने 70 महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। करीब 79 महिला उम्मीदवारों ने किसी स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के तहत 40 और विभिन्न क्षेत्रीय दलों के तहत 303 महिलाएं चुनावी मैदान थी। तेलंगाना में विजेता दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने महिला उम्मीदवारों के सबसे कम अनुपात, 3 फीसदी को टिकट दिए थे।