ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार, 2 जून को तीन ट्रेनों बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी में हुई भयानक टक्कर में अब रिपोर्टिंग को लेकर भी राजनीति देखने को मिल रही है। आरोप के अनुसार, कई पत्रकारों पर घटना से सकारात्मक कहानियां लाने को लेकर दबाव बनाया जा रहा है नहीं तो वे पत्रकार अपनी नौकरी भी खो सकते हैं।
आर्टिकल 19 इण्डिया की ग्राउंड रिपोर्ट कहती है,
हादसा कवर कर रहे कई पत्रकारों की नौकरी खतरे में है। असाइनमेंट डेस्क और संपादक अपने रिपोर्टर से हादसे वाली जगह की पॉजिटिव स्टोरीज ढूंढकर लाने को मांग कर रहे हैं।
पत्रकारों पर भारी दबाव है। उनसे #मोरबी ब्रिज कोलेप्स जैसी कवरेज करने को कहा गया है, जिसमे सरकार की नही, जनता की जिम्मेदारी तय हो। रिपोर्टर्स को निर्देश ये है की सिस्टम या सरकार की विफलता सामने लाने वाली रिपोर्ट करने के चक्कर में न पड़ें। उन्ही लोगों के इन्टरव्यू रिकॉर्ड किए जाएं जो कार्यकर्ता उनके लिए उपलब्ध किए गए हों। पीड़ितों में कोई सिर्फ सरकार की कमियां ही बता रहा हो तो उसका इंटरव्यू फाइल न करें।
सब कुछ योजना के अनुसार कवर हो इसके लिए स्टूडियों में फर्राटेदार बोल सकने वाले एंकर्स को भी घटना स्थल पर भेजा गया है। उन्हें भी निर्देश दिए गए हैं की पीड़ितों या उनके परिजनों से लाइव फीड पर बात न किया जाय। लाइन पर पैच किए गए प्रवक्ताओं से बात करें।
रेलवे परिचालन की खामियों, टिकट बुकिंग सिस्टम, बढ़ते किराया, सीट की उपलब्धता, रिजर्वेशन, ट्रेनों में बढ़ती भीड़, नई रेलवे लाइन की मांग जैसी साईड स्टोरीज पर काम न करने के सुझाव दिए गए है। वहां भेजे गए पत्रकारों को सिर्फ वही इवेंट कवर करने हैं जो नोएडा के दफ्तर से तय किया गया हो और संपादक ने अप्रूव किया हो।
ये बताना आवश्यक है कि टीवी पत्रकारिता करने आए ज्यादातर रिपोर्टर्स साधारण परिवारों से हैं जो बेहद संवेदशील हैं। पीड़ितों के हक की बात करना उनके शिक्षा और संस्कार में है, लेकिन बेरोजगारी के इस दौर में कइयों ने नौकरी बचाने को प्राथमिकता दी है, अच्छी और पॉजिटिव बात ये है कि अभी भी कई पत्रकार निष्पक्षता के साथ डटे हुए हैं, धूप में पसीना बहा रहे हैं। उन्हें नौकरी की परवाह नहीं है।
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