शुक्रवार, 2 जून को ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों में हुई भयानक टक्कर भारत में इस सदी की सबसे भीषण घटना बताई जा रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह घटना मानवीय गलती का परिणाम है। बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस, शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी में टक्कर हुई। इस भयानक घटना में अब तक 288 लोगों की मौत व हज़ारों लोगों के घायल होने की खबर है। इतने बड़े हादसे के बाद भारत में रेलों की दुर्दशा और ट्रेन घटनाओं को लेकर राजनीति चरम सीमा नज़र आ रही है। कोई रेल मंत्रालय पर आरोप लगा रहा है तो कोई तकनीक पर।
हर साल देश में ट्रेनों में हुई टक्कर के मामले सामने आते रहे हैं। कभी तकनीकी समस्या, कभी पटरी में दिक्कत तो कभी कुछ और।
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है। इसके साथ ही घटना के कारणों और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की भी पहचान की है। आगे कहा कि तीन ट्रेनों में भिड़ंत की वजह इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव है। जैसा कि हमने पहले भी बताया था कि हर बार जब भी कोई ऐसा हादसा होता है तो उसका कोई तकनीकी कारण बता दिया जाता है लेकिन उन ट्रेनों की तकनीक को उन्नत नहीं किया जाता है, बढ़ाया नहीं जाता।
क्या सिर्फ कुछ ट्रेनों को आधुनिक तकनीक से भर देने से पूरे भारत के ट्रेनों की जो दुर्दशा है वह ठीक हो जाएगी?
रिपोर्ट्स के अनुसार, शुक्रवार की घटना उस समय हुई जब चेन्नई की ओर जा रही शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस बहनागा बाजार स्टेशन से 300 मीटर की दूरी पर पटरी से उतर गई। इसके बाद वह बगल के ट्रैक पर एक मालगाड़ी से टकरा गई, जिससे कोरोमंडल एक्सप्रेस का पिछला डिब्बा तीसरे ट्रैक से टकरा गया। तीसरे ट्रैक पर उलटी दिशा से तेज गति से आ रही बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस पटरी से उतरे डिब्बों में जा घुसी।
हादसे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी घटनास्थल पर पहुंचे और घायलों से मुलाक़ात की। साथ ही ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने बहनागा ट्रेन हादसे में हुए मृतकों के परिवारों को 5 लाख रूपये व घायलों को एक लाख रूपये देने की घोषणा की। बता दें, ये राशि मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जाएगी।
ओडिशा के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, 1,175 मरीजों को निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया था, जिनमें से 793 मरीजों को अब तक छुट्टी दे दी गई है, जबकि 382 मरीज अभी भी अस्पताल में हैं, जिनमें से दो की हालत गंभीर है, बाकी सभी की हालत स्थिर है।
सवाल अभी भी वही है, क्या सिर्फ कुछ ट्रेनों को आधुनिक बना देने से, उन्हें कवच पहना देने से भारत में होती रेल घटनाओं की स्थिति सुधर जायेगी, जिसका सरकार दावा करती है? यह हादसा एक बार फिर सरकार के खोखले कामों को चुनौती देता है जिसमें हर साल न जाने कितने ही लोग अपनी जान गंवा देते हैं और आखिर में बस घटना की वजह तकनीक को दे दी जाती है पर उस तकनीक में सुधार के लिए कोई काम नहीं किया जाता।
बता दें, ओडिशा के बालासोर में हुए तीन ट्रेन हादसे की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है लेकिन यह जांच कितनी सफल होती है, यह कहा नहीं जा सकता।
आर्टिकल 19इंडिया की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, कई पत्रकारों से इस हादसे की सकारात्मक कहानियों को लाने को कहा जा रहा है जो यह बात साफ़ करने के लिए काफी है कि किस तरह से सरकार को मीडिया द्वारा भी बचाने का कार्य ज़ारी है। जब घटना के तथ्य की रिपोर्ट्स ही नहीं आयेगी तो अंत में जाँच में यही सुनने में आएगा कि कार्यवाही के लिए सबूत काफी नहीं थे।
जब सत्ता का इतना दबदबा है तो यह भी देखना होगा कि आखिर कार्यवाही किस पर होती है या फिर किस एक पर दोष डालकर सरकार खुद को यहां से हमेशा की तरह बचा लेगी।
विपक्ष रेल मंत्री को बर्खास्त करने की मांग कर रहा है, जनता जाँच के तथ्य और सच की मांग कर रही है लेकिन सब सिर्फ यहां आकर ठहर गया है कि घटना तकनीकि कारणों से हुई है। ऐसे में अदालत की जांच क्या निकलकर आती है, इस दौरान मीडिया मामले को किस तरह से दिखाती है और मामले को लेकर कितने तथ्य सामने आते हैं या आएंगे भी या नहीं, कुछ भी साफ़ नहीं है। कौन बचकर निकल जाएगा और कौन फंसेगा, यह राजनीति तो सिर्फ सरकार जानती है।
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