रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 5000 पंजीकृत ट्रांसजेंडर हैं। समर्थकों का मानना है कि सामाजिक प्रताड़ना की वजह से अपनी पहचान छुपाने वालों की संख्या 2000 से अधिक होगी। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में ट्रांसजेंडर की संख्या लगभग 49 लाख है जबकि सरकारी दस्तावेजों में रजिस्टर्ड ट्रांसजेंडर पांच लाख के करीब हैं।
देश के हर घर को शौचालय नहीं मिल पाया है लेकिन सरकार देश को ओडीएफ घोषित कर चुकी है। चलिए मान ही लेते हैं कि हो गया होगा देश ओडीएफ लेकिन अभी भी ट्रांसजेंडर के नाम शौचालय नाममात्र के लिए बनाए गए हैं। जहां इक्का-दुक्का बने भी उनका ऐसे ढोल पीटा गया जैसे सरकार ने बहुत बड़ा एहसान कर दिया हो। जबकि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रांसजेंडरों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिए। अब अपने लिए अलग शौचालय की मांग उठाना ट्रांसजेंडर समुदाय ने शुरू कर दिया है। इस आर्टीकल के माध्यम से हम बात करेंगे छत्तीसगढ़ राज्य की।
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शौचालय के इस्तेमाल पर ट्रांसजेंडर्स के अनुभव
छत्तीसगढ़ राज्य में ट्रांसजेंडर की इतनी आबादी के लिए शौचालय तक नहीं। देश में सरकार ने जिस तरह से पुल्लिंग,स्त्रीलिंग व विकलांग लोगों के लिए शौचालय की व्यवस्था की है उसी में सम्मान और अधिकार के साथ ट्रांसजेंडर को शौचालय की व्यवस्था क्यों नहीं? कुछ ट्रांसजेंडर्स ने खबर लहरिया को बताया….
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के कोंडा गांव की निवासी मैक्सी अपनी पहचान ट्रांसवीमेन के रूप में करती हैं। वह कहती हैं -“सामुदायिक शौचालय में जाने पर कई तरह की दिक्कत होती है। महिलाओं और पुरुषों के शौचालय में जाने पर लोग घूर कर देखते हैं जैसे खा जाएंगे। माने डर के शौच के लिए जाऊं तो अच्छे से संतुष्ट नहीं हो पाती हूं। न ही महिला और न ही पुरुष शौचालय में कंफर्टेबल हो पाते हैं। थर्ड जेंडर के लिए अलग से शौचालय होना चाहिए। पुरुष या महिला शौचालय में जब भी मैं अंदर जाती हूं तो सबसे चोरी-चुपके देखती रहती हूं कि मुझे कोई देख तो नहीं रहा।”
दुर्ग जिले में रहने वाली कंचन शिंद्रे भी एक ट्रांसवीमेन हैं। वह कहती हैं, छत्तीसगढ़ सरकार ने पुरूष, महिला और विकलांगो के साथ में ट्रांसजेंडर के लिए भी शौचालय बनाना शुरू किया है। महिलाओं के शौचालय में थर्ड जेंडर का शौचालय जोड़ दिया है। वह अपने को महिला मानती हैं तो इस शौचालय को इस्तेमाल कर रही हैं लेकिन अगर कहीं अगर सार्वजनिक शौचालय में जाना पड़े तो उन्हें अन कंफर्टेबल यानी असहज लगता है।
वह आगे कहती हैं “एक बार सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने गई थी तो महिलाएं मेरी आवाज सुनकर शौचालय के ओनर से शिकायत करने लगीं और कहने लगीं कि महिला शौचालय में कोई पुरूष घुसा है। उसको जल्दी बाहर निकालो। जब ओनर ने कहा वह ट्रांसजेंडर हैं महिला व पुरुष किसी भी शौचालय में जा सकते हैं। महिलाएं ओनर पर टूट पड़ी कि ट्रांसजेंडर्स को कैसे घुसा सकते हो हमारे शौचालय में। वह पुरुष ही तो है न। यह सब देखकर मैं बहुत हताश और अपमानित हो गई कि शौचालय जैसी सुविधा के लिए भी हमें अपनी लड़ाई लड़नी पड़ रही है।”
जिला प्रशासन से हमने दरख्वास्त कि उनके लिए भी शौचालय होना चाहिए। प्रशासन ने शौचालय बनवाना तो शुरू किया लेकिन उसे महिला शौचालय में ही सेट कर दिया। इनकी संख्या शहर में ही है गांवों में बिल्कुल भी नहीं है। लोगों में जागरूकता ही नहीं है कि ट्रांसजेंडर होते कौन हैं वह उनको पुरुष के रूप में ही देखते हैं। महिलाएं अपने शौचालय में उनको स्वीकार नहीं कर पाती हैं। ट्रांसजेंडर समुदाय गांव की पंचायत के साथ मिलकर जागरूकता अभियान करते रहते हैं।
छत्तीसगढ़ के राजानंदागांव की ट्रांसवीमेन शेख साहिबा का कहना है कि, “सरकार वाह वाही बटोर रही है। शौचालय की बात करती है जबकि ऐसा है नहीं। बड़े कस्बे या जिला स्तर पर अगर दस सामुदायिक शौचालय हैं तो उनमें एक बना दिया। कुछ सामुदायिक शौचालय में विकलांग और ट्रांसजेंडर का एक ही शौचालय कर दिया। वह सरकार और प्रशासन से पूछना चाहती हैं कि क्या ट्रांसजेंडर विकलांग हैं? वह विकलांग नहीं हैं जबकि वह भी आप की तरह हैं। उनके भी दो हाथ और दो पैर हैं। शरीर का हर अंग एक सामान है। वह तीसरे लिंग से पहचाने जाते हैं ये उनकी विकलांगता तो नहीं है। वह भी सबकी तरह सुरक्षा, सम्मान और समानता चाहते हैं। सरकार और प्रशासन सिर्फ नाम कमा रही है और कुछ नहीं है। उनके लिए सोच नहीं बदली और न ही जल्दी बदलेगी।”
छत्तीसगढ़ में ट्रांसजेंडर समुदाय की जनसंख्या
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 5000 पंजीकृत ट्रांसजेंडर हैं। समर्थकों का मानना है कि सामाजिक प्रताड़ना की वजह से अपनी पहचान छुपाने वालों की संख्या 2000 से अधिक होगी। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में ट्रांसजेंडर की संख्या लगभग 49 लाख है जबकि सरकारी दस्तावेजों में रजिस्टर्ड ट्रांसजेंडर पांच लाख के करीब हैं।
ट्रांसजेंडर समुदाय को छोड़ देश हुआ ओडीएफ
केंद्र सरकार ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन का आरंभ किया था। इस मिशन के तहत, भारत में सभी गांवों, ग्राम पंचायतों, जिलों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने ग्रामीण भारत में 100 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण करके 2 अक्टूबर 2019, महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती तक स्वयं को “खुले में शौच से मुक्त” (ओडीएफ) घोषित किया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि खुले में शौच न करने की प्रथा स्थायी रहे, कोई भी वंचित न रह जाए और ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन की सुविधाएं सुलभ हों, मिशन अब अगले चरण अर्थात् ओडीएफ-प्लस की ओर अग्रसर है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे चरण के तहत ओडीएफ प्लस गतिविधियां ओडीएफ व्यवहार को सुदृढ़ करेंगी और गांवों में ठोस एवं तरल कचरे के सुरक्षित प्रबंधन के लिए मध्यवर्तन करने पर ध्यान केंद्रित करेंगी।
अतः,ओडीएफ का फैलाव प्रशासन के लिए मूलतः तौर पर सिर्फ स्त्री-पुरुष हेतु शौचालय या सावर्जनिक सुविधा मुहैया कराने का एहसास दिलाता है। सरकार द्वारा यह कहे जाने के बावजूद भी कि ट्रांसजेंडर समुदाय हेतु अलग से शौचालय बनाये जाए, इस बात को बस रखने भर के लिए महिलाओं के शौचालय से उन्हें जोड़ दिया गया यह कहते हुए कि यही है ट्रांसजेडर्स के लिए शौचालय। यह सरकार द्वारा उनकी सुरक्षा, उनकी मानसिक स्थिति व पहचान को लेकर संवेदनशीलता में कमी को प्रदर्शित करता है। सुविधाएं चाहें वह सार्वजनिक हो या फिर मौलिक सभी के लिए होनी चाहिए।
इस लेख को मीरा देवी द्वारा लिखा व संपादन संध्या द्वारा किया गया है।
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