ज़िला बांदा। नौतपा के 9 दिन आग के लपेटे के समान होते थे। इतनी ज़्यादा गर्मी पड़ती थी कि लोग घर के अंदर और बाहर दोनों जगह चैन की सांस नहीं ले पाते थे। कूलर, पंखे ए.सी भी उस गर्मी में फेल हो जाती थी। इस साल नौतपा कब आया और कब चला गया, किसी को पता भी नहीं चला क्योंकि गर्मी ही नहीं पड़ी। नौतपा में पानी बरसता रहा जिसका असर अब देखने को मिल रहा है। मानसून 15 जून से आ जाता है, लेकिन अभी तक बारिश नहीं हो रही जिससे किसान काफी चिंतित हैं।
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बटाईदार किसान रामहित का कहना है कि उन्होंने 9 बीघे खेती बटाई पर ली है, धान की बेड बोने का समय है लेकिन बारिश नहीं हुई तो बेड नहीं बोली गई। अगर समय से बारिश होती है तो फिर बेड तैयार हो जाएगी वरना खेती बिछड़ जाएगी। आस-पास बोरो से महंगे दामों में पानी खरीद कर खेतों में भरेंगे और बेड तैयार करेंगे अगर मिल पाया तो। उन्होंने बताया कि पुराने लोगों ने कहावत गलत नहीं बनाई बिल्कुल सही है कि नौतपा में अगर गर्मी नहीं पड़ी तो बारिश की संभावना कम हो जाती है। पहले लोग नौतपा और अदरा दो चीजें ही बहुत ज़्यादा मानते थे। अदरा के समय नेवता करते थे,लोगों को खिलाते थे और नौतपा के 9 दिन भी काफी मनता वगैरह होती थी और महत्व दिया जाता था। लेकिन इस साल तो पता ही नहीं चला इससे वह लोग चिंतित हैं और मानसून के आने का इंतजार कर रहे हैं।
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बांदा कृषि विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानी प्रोफेसर डॉक्टर दिनेश शाह का कहना है कि नौतपा का होना और ना होना दोनों मायने में कृषि को प्रभावित करता है। नौतपा ही एक ऐसा समय है जब बहुत ज़्यादा गर्मी बढ़ती है और मानसून बनने की संभावना होती है। इसलिए अभी तक मानसून नहीं आया जबकि 15 जून से मानसून आ जाता है। बिहार से मानसून उठता है और फिर यूपी में आता है लेकिन अभी तक बिहार में ही पर्याप्त मानसून नहीं आया। 20 तारीख तक आने की संभावना थी लेकिन वह भी नहीं हो पाया। बादल झूम कर निकल रहा है अभी तक बारिश नहीं हुई। जिससे कृषि पर काफी असर पड़ेगा और जब कृषि पर असर पड़ेगा तो हर वर्ग के लोगों पर भी असर पड़ेगा क्योंकि कृषि से ही हर किसी का जीवन चलता है।
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