न बिजली, न पानी। यूपी के ये गाँव अब भी है मूलभूत आवश्यकताओं से दूर ।
इसे गांव का दुर्भाग्य कहें या शासन-प्रशासन की लापरवाही। लेकिन, यह सच है की चित्रकूट के कई ऐसे गांव हैं जहाँ ग्रामीण मूलभूत सुविधा यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल किल्लत से परेशान हैं।
जिला चित्रकूट, ब्लॉक मऊ, गांव खोहर, मजरा कलोनी, पुरवा मैदाना, गेरूहा पुरवा में सरकार के तरफ से कागजों में सौभाग्य योजना के तहत बिजली लग गई है। लेकिन गांव में आज भी अँधेरा छाया हुआ है।
अँधेरे में जीवन व्यतीत कर रहा गांव
स्थानीय निवासी मनटोरिया, सुमन जिनकी आवाज में प्रशासन के खिलाफ काफी गुस्सा था उन्होंने हमें बताया कि हर गांव में बिजली लगी है लेकिन एक यही गांव है जो अँधेरे में जीवन व्यतीत कर रहा है। जंगली इलाका है सांप बिच्छू निकलते रहते हैं। हमारी सरकार डिजिटल भारत का सपना तो दिखा रही लेकिन हमारे सपने तो आज भी मोमबत्ती के उजाले में कहीं गुम से हैं।
रामदीन बताते हैं की मिट्टी का तेल यह कहकर नहीं दिया जाता की गाँव में बिजली आ गई है। पर कहाँ आई है बिजली इसका कोई सर्वे नहीं हुआ आज तक। कई बार इस बात की शिकायत की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई है। कोरोना के इस समय में फोन चार्ज होना बहुत जरुरी है पता नहीं कब कौन सी दैवीय आपदा आ जाये तो लोगों से संपर्क किया जा सके पर जब बिजली ही नहीं है तो फोन कैसे चार्ज होगा?
पैसे देकर चार्ज करते हैं फोन- ग्रामीण
रामदीन और फूला का कहना है की फोन तो बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक के हाथों में हैं लेकिन चार्ज करने के लिए बिजली नहीं है। फोन चार्ज करने के लिए गोइया गांव जो काफी दूर पड़ता है वहां जाना पड़ता है ऊपर से फोन चार्ज करने के 10 रूपये भी लगते हैं। सूरजकली बताती हैं की शादी का सीजन है सबको आस होती है की उजाला हो लेकिन इस गांव में अभी भी लोग शादी में जनरेटर की व्यवस्था करते हैं। शादियां टी ख़ैर हर दिन नहीं होती लेकिन गर्मी से कैसे निजात पाए?
ये तो हर दिन की समस्या है। वैसे भी तरह-तरह की बीमारियां फैली हुइ हैं, ऊपर से मच्छर के काटने से एक और बीमारी फ़ैल सकती है। लोग काफी गुस्से में थे की गांव के मुद्दे उठाकर वोट बैंक बनाना आसान है लेकिन बाद में सब भूल जाते हैं। गांव में कौन मर रहा कौन जी रहा कोई फर्क नहीं पड़ता। बस ऐसा लगता है की हम लोग बस वोट बैंक बनकर रह गए हैं। पूर्व प्रधान कुनकू के साथ ग्रामीणों ने शिकायत की थी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
मऊ बिजली विभाग के जेई अर्जुन सिंह का कहना है कि यदि मऊ बरगढ़ क्षेत्र में इस तरह से गांव छूटे हैं तो सर्वे करवाया जाएगा। फिर जाँच में जो भी निकलकर आता है फिर बिजली पहुंचाई जायेगी।
पाठा का नाम सुनते ही मन में डाकुओं की छवि उभरने लगती है की वहां डाकुओं का आतंक है। लेकिन आजकल वहां एक और चीज का अकाल है वह है पानी की कमी। पाठा क्षेत्र की आदिवासी बस्ती के लिए आज भी कुछ नहीं बदला वह कल भी पानी के जुगाड़ के लिए मीलो दूर कुआँ और तालाब ढूंढ़ते थे और आज भी। तो क्या यहाँ के लोगों को इन मुलभुत सुविधाओं से निजात नहीं मिलनी चाहिए?
सुनने में अजीब लग रहा होगा की आज के समय में लोग पानी के लिए कैसे तरस रहे हैं? लेकिन आपके लिए ये छोटी बात होगी, पूछिए उन लोगों से जो आधी रात में भी खाली बर्तन लेकर पानी की तलाश में भटकते हैं।
चोहड़े का पानी पी रहे ग्रामीण
ग्राम पंचायत खिचरी विकासखंड के कई मजरे खिचरी बेलहा, पिपरिहा टोला जैसे कई मजरे में कुल 52 हैण्डपम्प हैं जिनमे 70 प्रतिशत हैंड पम्प बिगड़े पड़े हैं। गांव के राजकुमार और लालजी ने बताया की हर साल इसी तरह की समस्या होती है, हैडपंप काम नहीं करते, तालाब कुआँ सूख जाते हैं। पानी की तलाश में जंगल- जंगल भटकना पड़ता है। राजरानी और कलावती ने बताया कि आम आदमी का जन जीवन पेय जल विना प्रभावित है। इतना ही नही ग्राम पंचायत में बनी चरही भी विल्कुल सूखी पड़ी है। गांव में ग्राम पंचायत का टैंकर भी है लेकिन उसका भी कोई पता नहीं है। रामबहोरी, राजा और लल्लू के अनुसार जानवर प्यास से व्याकुल हो पानी की तलाश में इधर उधर भटकते हुए मरने के कगार में है। गांव के लोग चोहड़े का पानी पीते हैं, तो जानवरों के लिए कहाँ से लाएं।
ये सिर्फ इन्हीं गांव की समस्या नहीं है बल्कि मानिकपुर ब्लॉक के ज्यादातर गांव की यही समस्या है। कुबरी गांव के लोग लगभग दो किलोमीटर बैलगाड़ी, साईकिल से रानीपुर पानी भरने जाते हैं जहाँ पानी दिखा वहां लम्बी लाइन लग जाती है किसी को मिला किसी को नहीं।
सोचने की बात है एक तरफ इतनी गर्मी में मौसम शरीर से पानी निचोड़ रहा है। उमस व लू के थपेड़ों ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। और इस कोरोना काल में लोग घरों में लोग कैद हैं वहीं दूसरी तरफ ये ग्रामीण घर में कैसे बैठे? कहतें हैं न जल ही जीवन है तो जीवन जीने के लिए तो घर से बाहर निकलना ही पड़ेगा। क्या यहाँ के जिम्मेदार लोग या प्रशासन को ये बात नहीं पता है या ये ग्रामीण उनके लिए सिर्फ एक वोट बैंक हैं?
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