इस साल नवरात्रि के दौरान देश के कई हिस्सों में गरबा पंडालों में दलितों और गैर-हिंदुओं को जाति और धर्म के आधार पर रोका गया, अपमानित किया गया और हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं।
भारत में नवरात्रि केवल धार्मिक त्योहार नहीं है बल्कि अब यह सार्वजनिक जीवन का हिस्सा बन चुका है जिसमें गरबा‑पंडाल, भव्य आयोजन और सामाजिक मेलजोल देखने को मिलता है। लेकिन इस साल की नवरात्रि में एक कड़वी सच्चाई भी उजागर हुई है। कुछ पंडालों ने दलित और छोटे समुदायों के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी है। इसी के साथ उनकी उपेक्षा और अपमान की घटनाएं सामने भी आईं हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में हुए गुजरात के महिसागर जिले के भरोड़ी गांव में इंजीनियरिंग की एक दलित छात्रा को कहा गया कि “तुम हमारे बराबर नहीं हो” और उसे गरबा कार्यक्रम से बाहर धक्का‑मुक्की कर बाल पकड़कर घसीटा गया। इस घटना के बाद स्थानीय महिलाओं के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई।
यह घटना अकेली नहीं है। इस लेख में हम ऐसे कई उदाहरणों को सामने लाएंगे जहां नवरात्रि के दौरान सामाजिक भेदभाव खुलकर दिखा। पंडालों में एंट्री से वंचित करना, अपमानित करना, अलग व्यवहार करना। हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि ये घटनाएं कहां हुईं, किस तरह की शिकायतें आईं, और इस पर क्या प्रतिक्रिया मिली।
गुजरात महिसागर में बाल नोचकर गरबा पंडाल से निकाला
गुजरात के महिसागर जिले के एक 25 वर्षीय छात्रा अपने गांव के दुर्गा पंडाल में गरबा के कार्यक्रम में शामिल होने गई थी। छात्रा दलित समुदाय से हैं। गरबा खेलने के दौरान छात्रा के साथ कथित तौर पर कुछ महिलाओं द्वारा मारपीट की गई। उन्हें अपमानित किया गया। आरोप है कि छात्रा को गरबा पंडाल से बाल घसीट कर बाहर निकाला गया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक गांधीनगर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज (जीईसी) की चौंथे वर्ष की छात्रा द्वारा वीरपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई गई एफआईआर में कहा गया है कि यह घटना तब हुई जब वह अपनी सहेली के साथ गरबा में शामिल होने गई थीं। अपनी शिकायत में बताया कि गरबा में शामिल होने पर लोमा पटेल, रोशनी पटेल और वृष्टि पटेल ने पहले उन्हें टोका और फिर उनके साथ गाली-गलौज और अपमानजनक व्यवहार करना शुरू कर दिया। एफ़आईआर के अनुसार “तीनों महिलाओं के साथ बहस के बाद उन्होंने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया और कहा ‘ये लोग हमारे बराबर नहीं हैं और हमारे साथ गरबा नहीं खेल सकते’।” शिकायत में यह भी कहा गया है कि महिलाओं ने उन्हें बालों से पकड़कर गरबा स्थल से बाहर घसीटा, जबकि अन्य लोगों ने उन्हें पकड़ लिया ताकि वह इस घटना का वीडियो न बना सकें। पीड़िता ने आरोप लगाया “उन्होंने न केवल मेरे खिलाफ जातिसूचक गालियां दीं बल्कि दोबारा उसी गरबा में आने पर बुरा अंजाम भुगतने की धमकी भी दी।” पुलिस में दर्ज कराई गई प्राथमिकी (FIR) के अनुसार, 25 वर्षीय रिंकू वंकर ने यह शिकायत दर्ज कराई है।
महीसागर के पुलिस अधीक्षक (SP) सफिन हसन ने क्या कहा
इस मामले पर महीसागर के पुलिस अधीक्षक (SP) सफिन हसन ने जानकारी दी कि SC/ST सेल के पुलिस उपाधीक्षक ने मामले की जाँच शुरू कर दी है। पीड़िता और आरोपी महिलाओं के बयान दर्ज किए जा रहे हैं। एसपी ने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले और दिशानिर्देशों के अनुसार, SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के उन मामलों में आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक है, जिनमें सात साल से कम की सजा का प्रावधान है। जाँच अभी जारी है। हमने प्रक्रिया के अनुसार निवारक कार्रवाई के लिए आरोपियों को नोटिस जारी कर दिए हैं और उनके बयान लिए जा रहे हैं।”
महाराष्ट्र में गरबा पंडालों में एंट्री के लिए नियम
महाराष्ट्र में विश्व हिंदू परिषद ने गरबा आयोजनों को लेकर एक सूचना जारी किया गया था। विधर्व महासचिव विहिप प्रसाद ने कहा कि “गरबा आयोजनओं में सिर्फ हिंदुओं को एंट्री मिलने चाहिए। गैर हिंदू भाग न लें। इसके लिए लोगों को अंदर जाने से पहले तिलक लगाना होगा, हाथों पर रक्षा सूत्र बांधना होगा और किसी हिंदू देवता की पूजा करनी होगी। कार्यक्रमों में लोगों के ऊपर गौ मूत्र भी छिड़का जाएगा।” इतना ही नहीं परिजकों द्वारा आयोजकों को यह सलाह भी दी गई थी कि पहचान के लिए एंट्री करने वालों का आधार कार्ड की भी जांच कर ली जाए। अब सवाल ये उठता है कि भला इतना तामझाम किस लिए? बता दें विश्व हिंदू परिषद के अनुसार ये सब इस लिए जरुरी है कि इससे ये पता चल सकेगा कि आयोजनों में सिर्फ हिंदू ही शामिल हो। लव जिहाद का कोई मामला न हो और मुस्लिम पुरुष हिंदू धर्म के लड़कियों को धर्म बदलने के लिए न फंसा पाएं। पर क्या धर्म के नाम पर गरबा जैसे सांस्कृतिक त्योहार को बांटना सही है? और क्या ऐसे नियम समाज में मेल जोल भाईचारा बढ़ाएंगे या और ज़्यादा दूरियां पैदा करेंगे?
इस पर शिवसेना नेता और राज्य सभा सांसद संजय रावत कहा है कि जिस तरह से यह फैसला फैलाया जा रहा है वह महाराष्ट्र या देश को शोभा नहीं देता। वहीं बीजेपी नेता चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि इस तरह के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना आयोजन समिति के अधिकार में है।
राजस्थान के भीलवाड़ा में भी कुछ ऐसा ही नियम
टाइम्स ऑफ इंडिया के खबर के अनुसार भीलवाड़ा में नवरात्रि शुरू होने से पहले विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल ने आदेश दियाथा कि भीलवाड़ा में गरबा पंडालों में केवल हिंदुओं को ही प्रवेश की अनुमति होगी। यह निर्देश दोनों संगठनों के अधिकारियों द्वारा स्थानीय गरबा आयोजन समितियों के साथ आयोजित बैठक के बाद आया जिसमें उन्होंने गैर-हिंदुओं की भागीदारी को प्रतिबंधित करने के लिए आधार कार्ड के सत्यापन की आवश्यकता पर बल दिया। आयोजकों को अब गरबा पंडालों के प्रवेश द्वार पर आधार कार्ड की जाँच करने, प्रतिभागियों को तिलक लगाने और गैर-हिंदुओं को प्रवेश न देने के लिए पहचान की पुष्टि करने का काम सौंपा गया है। इसके अतिरिक्त, आयोजकों को अश्लील या अश्लील माने जाने वाले गाने बजाने से बचने और महिलाओं को हिंदू सांस्कृतिक मूल्यों को दर्शाने वाले परिधान पहनने के लिए प्रोत्साहित करने का निर्देश दिया गया है। यह आदेश नवरात्रि शुरू होने से पहले 19 सितंबर 2025 को दिया गया था।
इंदौर में गरबा पंडाल में गैर हिंदुओं का प्रवेश बैन
इंदौर शहर में भी गरबा पंडालों में प्रवेश के लिए कई नियम बनाए गए। जो नियम महाराष्ट्र और राजस्थान में बनाया गया ठीक वही नियम इंदौर में भी लागू किया गया था। इसी के साथ मध्य प्रदेश के छतरपुर में गैर हिंदुओं की प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। पंडाल में जाने वालों के हाथों पर कलावां जरुरी कर दिया गया। सिर पर तिलक जरुरी कर दिया गया। इसके साथ गंगाजल का आचमन भी कराया गया। मध्य प्रदेश के TV9 भारतवर्ष के अनुसार हिंदू उत्सव समिति के आयोजक पवन मिश्रा ने कहा कि “सनातनी भाई हैं उनके ही प्रवेश को यहां अनुमति प्रदान की है और जो भी व्यक्ति हमारे यहां प्रवेश कर रहे हैं उसके ऊपर गंगाजल का छिड़काव कर, तिलक कर कार्यक्रम परिसर में उनका स्वागत कर रहे हैं।”
इसी के साथ मध्य प्रदेश के रतलाम शहर के कालिका माता परिसर में बने गरबा पंडालों पर लगे बैनर चर्चा का विषय बन गया था। इन बैनरों में साफ शब्दों में लिखा गया था कि “गरबा प्रांगण में गैर-हिन्दुओं का प्रवेश सख्त मना था। मूर्तिपूजा को न मानने वाले मूर्तिपूजा से दूर रहें।” एनडीटीवी के खबर के अनुसार, गरबा आयोजकों के अनुसार यह निर्णय सुरक्षा और सामाजिक कारणों से लिया गया है। आयोजकों ने बताया कि पंडाल में प्रवेश केवल पास और आईडी चेक करने के बाद ही दिया जा रहा है साथ ही तिलक लगाने की शर्त भी रखी गई है। उनका कहना है कि यह व्यवस्था महिला और बालिकाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखकर की गई है। कई श्रद्धालुओं ने भी इस पहल की सराहना की है। प्रदेश के अन्य शहरों की तरह रतलाम में भी गरबा पंडालों में गैर-हिन्दुओं की नो-एंट्री के पोस्टर और बैनर लगाए गए हैं। गरबा समितियों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में हुई विवादित घटनाओं को देखते हुए यह कदम एहतियात के तौर पर उठाया गया है। इसी बीच, रतलाम शहर काजी अहमद अली ने मुस्लिम समाज के लोगों से अपील की थी कि वे गरबा आयोजनों में शामिल न हों। उन्होंने अपने पत्र में लिखा था कि नवरात्रि हिंदू भाइयों का अहम पर्व है और कई बार मुस्लिम युवाओं के गरबा आयोजनों में जाने से आयोजकों को आपत्ति होती है जिससे दो समाजों में विवाद की स्थिति बनती है। उन्होंने कहा कि यह दीनी लिहाज़ से भी उचित नहीं है इसलिए घर के बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों को गरबा आयोजनों में जाने से रोकें।
गुजरात अहमदाबाद में भी गैर हिंदुओं का गरबा पंडाल में प्रवेश पर रोक
(BS) बिज़नेस स्टैंडर्ड के खबर अनुसार, बजरंग दल ने गुजरात में गरबा आयोजकों से अपने आयोजन स्थलों पर गैर-हिंदुओं के प्रवेश को रोकने को कहा है। उनका दावा है कि नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि उत्सव हिंदू महिलाओं को लुभाने का मंच बन गया है।
दक्षिणपंथी समूह ने गरबा स्थलों के बाहर लगातार गश्त के लिए टीमें गठित की हैं और लोगों को ‘लव जिहाद’ के बारे में सचेत करने वाले पोस्टर भी लगाए हैं। बजरंग दल के अहमदाबाद जोन समन्वयक ज्वलित मेहता ने सोमवार को बताया कि अहमदाबाद में सभी प्रमुख गरबा आयोजन स्थलों, विशेषकर मुस्लिम बहुल इलाकों के निकट ऐसे पोस्टर लगाए गए हैं। उन्होंने दावा किया, “इन पोस्टरों के माध्यम से हम जनता को उस साजिश के बारे में सचेत कर रहे हैं, जिसमें नवरात्रि के दौरान गैर-हिंदुओं द्वारा हिंदू लड़कियों और महिलाओं को निशाना बनाया जाता है। हर साल तीन लाख से अधिक हिंदू लड़कियां/महिलाएं इस लव जिहाद का शिकार होती हैं।”मेहता ने कहा, “हमने पहले ही गरबा आयोजकों से गरबा स्थल में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाने को कहा है।”समूह ने शहर के प्रमुख स्थलों पर नजर रखने के लिए टीमें भी गठित की हैं। मेहता ने कहा “यदि हम किसी विधर्मी को किसी लड़की/महिला के साथ पकड़ते हैं, तो हम सबसे पहले उसके माता-पिता को सूचित करेंगे और फिर उस गैर-हिंदू व्यक्ति के बारे में सारी जानकारी निकालेंगे, ताकि पता लगाया जा सके कि उसका कोई छिपा हुआ मकसद तो नहीं है।” समूह ने स्थानीय पुलिस और विभिन्न जिलों के प्रशासन से हिंदू धर्म की “पवित्रता” बनाए रखने और लड़कियों को ‘लव जिहाद’ से बचाने का भी आग्रह किया है।
नवरात्रि जैसे त्योहार भारत की सांझी संस्कृति, मेलजोल और एकता का प्रतीक माने जाते हैं। लेकिन जब गरबा जैसे सांस्कृतिक आयोजन में जाति और धर्म की दीवारें खड़ी की जाती हैं तो सवाल उठता है क्या हम सच में आगे बढ़ रहे हैं या पीछे लौट रहे हैं?
जब किसी छात्रा को सिर्फ उसकी जाति के कारण गरबा पंडाल से बाल पकड़कर खींचकर बाहर निकाला जाता है तो यह सिर्फ एक समुदाय की बेइज्जती नहीं बल्कि पूरे समाज के ताने-बाने को चोट पहुंचाने जैसा है।
धर्म से जुड़े मुद्दे आजकल किसी न किसी बहाने से समाज में तनाव पैदा कर रहे हैं। और यह तनाव तब और खतरनाक हो जाता है जब वो आस्था और परंपरा की आड़ में फैलाया जाता है। गरबा, दुर्गा पूजा, होली, ईद या क्रिसमस ये सब त्योहार जोड़ने के लिए हैं बांटने के लिए नहीं।
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