द कविता शो एपीसोड 72
15 जनवरी को मेरी अपनी सहेली जो बांदा जिला के भवानी पुर गांव में रहती है उसकी लड़की उमा को बच्चा होना था। पेट में दर्द उठा तो आशा के पास गए। आशा ने एएनम के पास भेजा। एएनएम ने कहा की उसके उपकेन्द्र में सरकारी सुविधाओं की कमी है कोई जांच नहीं हो पायेगी। तब उसने उमा को बांदा लाने को बोला उमा को ट्रामा सेन्टर में इमरजेंसी वार्ड में दिखाया। वहां के डाक्टर ने भर्ती न करके पर्चा में अल्ट्रा साउंड के लिए बाहर से लिखा। बजरंगा की क्लीनिक में अल्ट्रा साउंड हुआ जहां पर डाक्टर ने बताया कि बच्चा पेट में ही खत्म हो गया है। इतना सुनते ही हमारे पैरों तले धरती खिसक गई।
उमा को लेकर रिपोर्टर दिखाने भर्ती करने के उद्देश्य से हम दुबारा सरकारी अस्पताल गये। लेकिन रिपोर्टर देखते ही डाक्टर ने भर्ती करने से मना कर दिया। उसने कहा कि महिला अस्पताल ले जाओ। तड़पती उमा को लेकर इस अस्पताल से उस अस्पताल इस डाक्टर से उस डाक्टर के यहां लेकर भागते रहे। लेकिन किसी ने हाथ तक नहीं लगाया है। फिर हम डाक्टर रफीक की क्लीनिक ले गये जहां पर उमा को तुरंत ही भर्ती किया गया और इलाज शुरु हुआ। दो बाटल खून लगा और बड़े ही मुश्किल से 16 तारीख को नार्मल डिलीवरी हुई और नौ माह का मरा बच्चा पेट से निकाला गया। अगर सरकारी अस्पताल में उमा को तुरंत भर्ती कर लिया जाता तो शायद उसके बच्चे की जान बच जाती।
अगर सर्कार सही में गरीब जनता के लाभ के बारे में सोचते, तो इतना पैसा नए स्वास्थ योजनाओं के प्रचार करने में नहीं लगाते, और बुनयादी ग्रामीण स्वास्थ सुविधाएँ सुधारने में ध्यान देते हाल ही मैंने एक ऐसा केस अपनी आँखों से देखा, जहाँ एक 20 साल की लड़की का पहला बच्चा 9 महीनो में पेट में ख़तम हो गया। सरकारी स्वास्थ व्यवस्था ने हर स्तर पर इस गरीब, दलित लड़की की मदद करने से इंकार किया।
इस टूटे पड़े स्वास्थ्य ढाँचे में करोड़ों रुपयों के आयुष्मान योजना का क्या फायदा होगा? ग्रामीण गरीब इन बड़े वादों पर विशवास क्यों करें, जब उनकी ज़िन्दगी का कोई मूल्य नहीं ?