देखा जाए तो हर घर, हर मोहल्ले में महिलाएं घरेलु हिंसा का शिकार होती हैं लेकिन महिलाएं अपने ऊपर हो रही हिंसा के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती। अगर किसी महिला ने आवाज़ उठाई तो उसे न्याय के लिए भी दर-दर भटकना पड़ता है फिर आशंका रहती है कि न्याय मिलेगा की नहीं।
ऐसे ही मध्य प्रदेश की निवाड़ी जिले की रहने वाली सुमन अहिरवार का मामला है जहां पर उन्होंने बताया कि उनकी शादी 5 मई 2011 में झांसी जिले के गांव ग्वालटेज हसाई के रहने वाले श्रीलाल अहिरवार के पुत्र रवि अहिरवार के साथ हुई थी। सुमन का आरोप है कि उसके पति रवि ने शादी के चार-पांच महीने तक तो अच्छे से रखा फिर ससुराल वालों द्वारा ताने मारना शुरू कर दिया कि तुम्हारे बाप ने अच्छी शादी नहीं की है, ना कोई दान-दहेज दिया है, ना ही पैसे दिए। ‘हमने सोचा कि ऐसे तो हमेशा घर में होता ही रहता है और हम घर में चार पांच साल रहते रहें।’ आरोप है कि उसके पति की 2019 में लीवर खराब होने के कारण मौत हो गई थी तभी से ससुराल वाले उसे घर में रहने नहीं देते और घर से निकाल दिया है। उसकी 4 बेटी है। ससुराल वालों द्वारा कहा जाता है, ‘तू कहीं भी जा, मेरे लड़के की मौत हो चुकी है और तेरी बेटी तू ही लेके जा। अगर बेटा होता तो हम घर में रख लेते अब बताइए हम कहां जाये।’
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जैसी सरकार कहती है ना कि “बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ”, “बेटा-बेटी एक समान” लेकिन हमारे साथ इस तरह से हो रहा है। हम कैसे बेटी को बचाएंगे और कैसे बेटी को पढ़ाएंगे ? हम कैसे मानेंगे कि बेटी-बेटा एक समान है क्योंकि चार बेटियों की मां दर-दर ठोकर खा रही है तो कैसे बेटी बचेगी और कैसे बेटियां बढ़ पाएंगी?
सुमन कहती हैं कि मेरी ऐसी स्थिति है और मैं 4 साल से बराबर मायके में रह रही हूं। मेरा मुकदमा भी चल रहा है। अभी कोर्ट के कहने पर 7 मार्च को अपने ससुराल गई थी बेटियों को लेकर लेकिन मेरी सास ननंद द्वारा अंदर से गाली दी जा रही थी और गेट नहीं खोला गया। फिर मैं अपनी मायके आ गई।
सुमन बताती हैं कि हमारे माता-पिता बूढ़े हो चुके हैं। हमारी बेटियों का भरण-पोषण कैसे हो पाएगा? जबकि हमारे ससुराल में हमारा पति इकलौता बेटा था। भाभी-भैया कोई किसी का नहीं है इसलिए अपने घर में रहना चाहते हैं और अपनी बेटियों को शिक्षा देना चाहते हैं।
वो कहती है कि हमारे ससुर आईपीसी में दरोगा के पद पर हैं। उन्हें ₹100000 लाख का महीना मिलता है। अगर वह सोचते तो अपनी पोतियों को कहीं भी शिक्षा दे सकते थे लेकिन उन्होंने तो घर से ही निकाल दिया।
अगर मैं अकेली होती तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी 4 बेटियां हैं। मैं उनके लिए यह लड़ाई बराबर लड़ूंगी। मुझे उम्मीद है कि न्याय मिलेगा और मैं उसी घर में रहूंगी।
अब देखना यह है कि सुमन को न्याय मिलता है या इसी तरह से दर-दर की ठोकर खाने के लिए मजबूर रहेंगी।
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