कौशांबी के महेवाघाट इलाके में 10 किलोमीटर के दायरे में मौजूद ऐतिहासिक अलवारा झील हमेशा से ही पर्यटन का केंद्र रही है। इस झील में ठंड के मौसम में साइबेरियन समेत तमाम विदेशी पक्षी आते हैं, और 4-5 महीने बाद वापस चले जाते हैं। आसपास रह रहे लोगों ने बताया कि जब यहाँ पक्षी आते हैं तो पर्यटकों की भी यहाँ भीड़ लग जाती है। दूर-दराज़ से लोग इस झील की खूबसूरती देखने आते हैं।
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लेकिन झील दुरुपयोग और अनदेखी के कारण अपना अस्तित्व खोती जा रही है, इसकी देख रेख के लिए प्रशासन की तरफ से भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। लोग बताते हैं कि पक्षियों के लिए किसी भी तरह के कोई इंतज़ाम नहीं हैं। झील के सुंदरीकरण का बजट तो कई बार आया है लेकिन उसपर काम नहीं हुआ है। अगर झील का सुंदरीकरण हो जाए तो इस झील की सुंदरता में चार चांद लग जाएंगे और पर्यावरण सुधारने में भी मदद मिलेगी। और आसपास रह रहे लोगों को भी आराम मिलेगा। झील का पानी कोई बाँध न होने के चलते लोगों के खेतों में घुंस जाता है जिससे फसलें खराब हो जाती हैं लेकिन अगर बाँध बन जाता है तो लोगों को राहत हो जाएगी।
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तो चलिए इस विश्व पर्यावरण दिवस, हम संकल्प लेते हैं कि प्रकृति की रक्षा करने में हम पीछे नहीं हटेंगे और अपने आसपास मौजूद प्राकृतिक धरोहरों को बचाएंगे।