औरतें और उनके अस्तित्व की अस्मियता को समाज उसके शरीर की बनावट से पहचानता है या ये कहें की उसे पहचानना चाहता है। वो जैसी है, उसे बदलना क्यों है ? क्यूंकि उसकी बनावट समाज के नज़रों के ढल नहीं पाती। क्यों?
एक छोटी-सी बच्ची से बड़े होने तक जब उसके शरीर में बदलाव आते हैं तो वह उसे बड़ी ही नज़दीकी से देखती है। वो देखती है खुद में बदलावों को अपनाते हुए। लेकिन जब बदलाव समाज के अनुरूप ना होकर उससे अलग हो जाते हैं तो वही बदलाव समाज को खटकने लगते हैं। मैं बात कर रही हूँ, औरत और उसकी बनावट की।
आज भी मुझे वो किस्सा बेहद अच्छे से याद है। मेरे किसी सीनियर ने कहा था कि “एक असली औरत वही होती है जिसके शरीर में दिखाने के लिए कुछ होता है।” यानी उनके अनुसार वह यह कहना चाहते थे कि मेरी छाती कुछ और बड़ी होनी चाहिए। जो बाहर से देखने पर उभरी हुई लगे। मेरे शरीर को पतला नहीं बल्कि थोड़ा और नाज़ुक और भरा हुआ और कोमल होना चाहिए। जैसे की विज्ञापनों में लड़कियों को दिखाया जाता है। बिल्कुल उसी तरह।
इस बात को सुनने के बाद मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा। लेकिन मैंने कुछ कहा भी नहीं। क्यों नहीं कहा, ये भी नहीं पता। लेकिन आज जब इन बातों को फिर से दोहरा रही हूँ तो लगता है कि कहना चाहिए था। शायद इसलिए आज इसे खुद को एक बार फिर बता रही हूँ कि “मुझे कहना चाहिए था।”
यह कोई पहली घटना नहीं थी जहां मुझे लगा कि सब मुझे बदलना चाहते हैं। मैं अपने कॉलेज के दिनों में इंटर्नशिप कर रही थी। अकसर मेरे सर द्वारा यह कहा जाता कि “एक लड़की को हमेशा सज कर, तैयार होकर रहना चाहिए। तुम भी तैयार होकर रहा करो।” इस बात से मुझे हमेशा यही ख्याल आता कि मेरी साज-सज्जा से मेरे काम का क्या संबंध है या हो सकता है?
मैंने देखा है ऑफिस और दफ्तरों में साज-सज्जा की हुई लड़कियों को। लेकिन खुद के लिए नहीं, समाज के लिए। पर क्यों? इस क्यों का जवाब भी मुझे पता है। समाज सुंदरता के बाहरीपन को मापता है और उसे ही देखता है। इसलिए वह अपने हिसाब से उन्हें बदलता जाता है।
21वीं सदी जिसे बदलाव का दौर कहा गया। इसमें भी महिलाएं अपने अस्तित्व और खुले विचारों के लिए लड़ती नज़र आती है। आप फ़िल्में तो ज़रूर देखते होंगे? क्यों ? जब समुन्द्र के किनारे से बिकनी पहनी महिला धीरे-धीरे बाहर निकलती है तो दर्शक क्या देखता है? उसका शरीर? क्यों ? वहीं अगर वही बिकनी किसी स्वस्थ महिला ने पहनी हो, जिसकी कमर पतली न हो, चहरे पर कोई अलग-सा निखार न हो तो क्या दर्शक उन्हें देखेंगे? ये तो सवाल है क्यूंकि समाज और उसके द्वारा महिलाओं को बस उनके अनुसार चित्रित किया गया है। जिसका शरीर मखमल की तरह है। जिसके बाल काले,लम्बे और सुंदर हैं। जिसकी पतली कमर पर ओस की बूंदे आकर ठहर जाती है। वही महिला समाज की नज़रों में आज भी सुंदर कहलाती है। सिर्फ उस महिला का ही शरीर समाज में “एक महिला के शरीर के रूप में माना जाता है।”
दशक बदलें, लेकिन ख्यालात वही रहें। हाल ही में, मैंने इंस्ट्राग्राम पर महिला के “आदर्श शरीर” के बारे में पढ़ा कि समाज किस तरह से उसे परिभाषित करता है और दिखाता है। इंस्टाग्राम की डिजिटल क्रिएटर अलेक्स लाइट लिखती हैं कि जब उन्होंने आदर्श बॉडी को परिभाषित करने का सोचा तो वह उनके लिए काफी मुश्किल था। वह लिखती हैं:
“मैंने सोचा कि मैं सभी को बार्बी डॉल के ज़रिये दिखाउंगी। मैंने फ़ोटोशॉप का इस्तेमाल करके पिछले चार दशकों के हिसाब से एक “आदर्श शरीर” को बनाया। मुझे आज भी यह सोच पागलपन लगती है कि किस तरह से आकर्षक शरीर की बनावट होना फैशन और सुंदरता के प्रचलन में शामिल हो गया। नए जैकेट या लिपस्टिक खरीदने की बजाय हम अपने शरीर को बदलने की सोचते हैं। जी हाँ। बिल्कुल सही। ”
“हम अपना बहुत सारा पैसा, ताकत और समय अपने शरीर की बनावट में खर्च करते हैं। हम लिप फिलर्स (होठ भरने वाला, जिससे आपके होंठ और बड़े और आकर्षक नज़र आते हैं।) का इस्तेमाल करते हैं, हम कमर को पतला करने वाले ट्रेनर्स का इस्तेमाल करते हैं। जो हमारे अंगों को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। अपना बहुत-सा समय जिम में लगाते हैं और बहुत कम खाना खाते हैं यानी डाइटिंग करते हैं।”
अब वो समय दूर नहीं है जब पतली/ छोटी कमर और बड़े बम (पिछवाड़ा) फैशन का हिस्सा नहीं रहेंगे। अभी-भी कुछ लड़कियां स्थायी रूप से इन प्रक्रियाओं को अपना रही है। मैं उस दिन का इंतज़ार नहीं कर सकती जिस दिन आदर्श शरीर की बनावट सिर्फ….हमारी अपनी होगी।”
खुद के शरीर की बनावट को अपना लेने का इंतज़ार करना अजीब नहीं लगता? जहां हमें उस दिन का इंतज़ार करना पड़ रहा है, जब किसी को एक आदर्श शरीर की बनावट होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। शायद, हम खुद को अब भी पूरी तरह से अपना नहीं पा रहें हैं, जहां हम अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से बदलाव करने दे।
मेरे मन भी ऐसे ख्याल कई बार आये। शरीर क्या है? हमारा हिस्सा, क्यों? पर उसे खुद से ज़्यादा दूसरों के लिए आकर्षण का स्त्रोत बनाना कितना जायज़ लगता है। मुझे तो यहां जायज़ शब्द इस्तेमाल करना ही सही नहीं लगता। जब-जब मुझे मेरे शरीर को लेकर कहा गया कि तुम्हें और ज़्यादा आकर्षक बनने के लिए कुछ करना चाहिए। मैंने उन्हें सामने से कहा कि “मैं मेरे शरीर से खुश हूँ। अगर मुझे लगेगा कि मुझे खुद के लिए अपने शरीर में बदलाव करने है तो ही मैं करुँगी। पर हाँ, मुझे किसी के आकर्षण का स्त्रोत नहीं बनना। मुझे उभरना है तो मैं खुद के लिए उभरना चाहूंगी।”
“मुझे मेरी शरीर की बनावट में बदलाव नहीं चाहिए पर समाज को उसके नज़रिये की बनावट को बदलने की ज़रूरत है। “
(आर्टिकल में इस्तेमाल की हुई तस्वीरों को शटर स्टॉक से लिया गया है।)