बिहार : जिला मुजफ्फरपुर, प्रखंड मुरौल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत आने वाले स्वास्थ्य उपकेंद्र बखरी के करीब सौ मीटर की दूरी पर लाखों की एक बिल्डिंग खस्ताहाल पड़ी है। लोगों से पता चला कि वह सरकारी अस्पताल की बिल्डिंग है जो 2010 में बनी थी। उसका उद्घाटन भी नहीं हुआ और वह टूट गई। लोगों को इलाज चाहिए तो चाहें जितना दूर और कितना भी पैसा न लगाना पड़े वह करेंगे। इस समस्या पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी कोई बात करना ज़रूरी नहीं समझे, ऊपर से हम पर झल्लाए वह अलग।
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यहां के कृष्णा पांडेय बताते हैं कि 25 बेड का अस्पताल की सरकारी इमारत खस्ताहाल में पड़ी है। दरबाजे खिड़कियां टूटी पड़ी हुई हैं। लाइट की वायरिंग कराई गई लेकिन वह भी सब टूटा हुआ पड़ा है। फर्स और टाइल्स टूटे पड़े हैं। उन्होने इस अस्पताल को चालू करने के लिए कई बार जिला प्रशासन को लिखित शिकायत करी लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई।
कपिलेश्वर सिंह का कहना है कि सरकार ने इस बिल्डिंग को बनाने के लिए बेकार में करोड़ों रुपए खर्च किये गए हैं, यह पैसा जनता की जेब का ही तो है। कोई संस्था भी इसमें काम करती तो कम से कम लोगों को फायदा होता। गांव के लोग करीब दस किलोमीटर की दूरी में पड़ने वाले अस्पतालों में दवा कराने जाते हैं।
गीता देवी और शांति देवी कहती हैं कि महिलाओं को डिलेवरी के लिए खुद का साधन करके जाना पड़ता है। पैसा खर्च होता है किसी के पास हिता है किसी के पास नहीं होता है। अगर यह अस्पताल चालू होता तो सुविधाएं और अच्छे से मिल पाती।
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आशा कार्यकत्री अनीता रानी बताती हैं कि कोई दिक्कत वैसे नहीं है लेकिन गांव में हो जाता अस्पताल तो और अच्छा होता। उनको भी काम करने में आसानी होती। वैसे तो एम्बुलेंस गांव तक आ जाती है लेकिन अगर नहीं आई तो पेसेंट के परिजन गाड़ी बुक करते हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मुरौल के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ज्योति प्रसाद सिन्हा से इस मुद्दे पर बात की गई। वह झल्लाते हुए कहते हैं कि इसका जवाब उनके पास नहीं है और न ही इसकी जिम्मेदारी। अगर उनके सीनियर जब तक इसमें एक्शन नहीं लेंगे या उनको आदेशित नहीं करेंगे तब तक वह कोई भी कार्यवाही नहीं कर सकते। उस अस्पताल को चलाने के लिए उनके पास स्टॉफ भी नहीं है।
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