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मध्य प्रदेश के घने जंगलों में पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर हैं बसे गांवों का है,जहां शौचालय तो बने हैं लेकिन वह शौचालय शौच के लिए ना होकर कबाड़ से भरे हुए हैं।
लेखन-गीता
स्वच्छ भारत का सपना पूरे देश को खुले में शौच से मुक्त करने का था। इस अभियान ने शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक अपनी पहुंच भी बनाई है लेकिन जब बात जंगल के भीतर बसे गांवों की होती है, तो तस्वीर कुछ और ही नज़र आती है। ऐसे ही कुछ मध्य प्रदेश के घने जंगलों में पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर हैं बसे गांवों का है,जहां शौचालय तो बने हैं लेकिन वह शौचालय शौच के लिए ना होकर कबाड़ से भरे हुए हैं। कारण है गांव में पानी की कमी जिसके चलते लोग उनका इस्तेमाल नहीं करते हैं।
जंगल ही है आदिवासियों का जीवन
दोस्तो, आप को बता दूं कि हाल ही में मैं पन्ना जिले के पन्ना टाइगर रिजर्व के अंदर बसे गांव बिलहटा गई थी। जहां लगभग 35 घर हैं और सभी आदिवासी लोग हैं जो घने जंगल में बसे हैं। बुनियादी सुविधाओं के लिए सदियों से संघर्ष कर रहे हैं। यहां ना तो पानी है और ना बिजली तो लोग शौचालय में शौच कैसे करेंगे इसलिए यहां बने शौचालयों में कबाड़ भरा है। हां सरकार के लिए यहां शौचालय बनवाना भले ही आसान हुआ हो लेकिन आदिवासी परिवारों के लिए शौचालय में पानी की आपूर्ति करना बहुत ही मुश्किल है। यही कारण है कि शौचालय कि टूटी दीवारें, जंग लगे दरवाजे और अंदर भरा कबाड़ और इस्तेमाल के नाम पर जीरो सरकार को बड़ी चुनौती दे रहा है।
पानी कोसों दूर, शौचालय में शौच न जाने पर लोग मजबूर
शौचालय केवल एक ईंट-पत्थर की दिवारें नहीं बल्कि स्वच्छता और स्वास्थ्य का प्रतीक हैं लेकिन जब यह योजना जंगल के भीतर पानी के कमी वाले गांव में पहुंचती है तो वह विकास नहीं, विफलता का प्रतीक बन जाती है। ऐसा नहीं है कि मैं पहले इस गांव में गई नहीं हूं लेकिन इस बार गांव में रात रुक कर और घूम कर नजदीक से देखा और मुझे अहसास हुआ कि कैसे वह लोग बुनियादी सुविधाओं के बिना भी ख़ुश हैं क्योंकि जंगल से उसको वो सारी सुविधाएं मिलती हैं,जो उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।
दो किलो मीटर दूर सेहे मतलब (चोहणा) से लाती है पानी
बिलहटा गांव के लोगों का कहना है कि शौचालय बने तो उनके यहां कई साल हो गए, लेकिन उन्होंने इस्तेमाल नहीं किया। क्योंकि लगभग दो किलोमीटर दूर से घाटी उतर कर सेहे मतलब (चोहणा)पानी लाना पड़ता है। घने जंगल के बीच से जहां जान का भी खतरा होता है। घने जंगल के नीचे सेहे मतलब (चोहणा) बना है, जहां से वह पीने का पानी लाती है और वहीं पर नहाती कपड़ा धोती हैं। कई बार पानी भरने जाते समय जंगली जानवर जैसे बाघ,भालू मिल जाते है,तो बर्तन छोड़ कर जान बचा भगाते हैं। पीने का पानी डर और दूर के कारण लाना मुश्किल है,तो शौचालय का इस्तेमाल कैसे करें यही कारण है कि शौचालय में शौच करने नहीं जाते क्योंकि शौचालय में शौच करने जाएंगे तो पर व्यक्ति एक बाल्टी पानी लगेगा और इतना पानी खर्च करने के लिए उनके पास पानी की सुविधा नहीं है।
जंगली जानवरों से भी रहता है खतरा
सेहे मतलब (चोहणा) में पानी भरने आई एक महिला बताती है कि वह लोग हमेशा से जंगल में शौच के लिए गये हैं और आज भी जाते हैं, वहां पर एक लोटा पानी में शौच हो जाता है तो एक बाल्टी पानी का खर्च क्यों करें। गांव से दो किलोमीटर दूर पानी के लिए घाटी उतर कर सेहे से पानी ले जाने में उनकी हालत खराब हो जाती है। गांव में पानी का और कोई स्त्रोत नहीं है। इसलिए बहुत जुगाड़ से पानी को रखना पड़ता है। उनको शौचालय में शौच के लिए पानी बर्बाद करना जरूरी नहीं लगता इसलिए शौचालय में कबाड़ भरा है। शौचालय की उन्हें कोई जरूरत भी नहीं थी पर पहले सरकार ने बनवा दिया है तो पड़े हैं कबाड़ के भाव। सरकार उनके गांव को विस्थापित करने की तैयारी कर चुकी है इसलिए कोई विकास नहीं हो रहा है।
स्वच्छ भारत मिशन हो रहा फेल
सरकार ने खुले में शौच की पुरानी आदतों को बदलने के लिए बड़ी संख्या में शौचालय बनवा करऔर जन-जागरूकता फैलाने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी। देशभर में करोड़ों रुपए खर्च कर लाखों शौचालय बनाए हैं,ताकि ग्रामीण इलाकों में साफ-सफाई की संस्कृति विकसित की जा सके। लेकिन क्या केवल शौचालय बना देना ही पर्याप्त था या जो ज़मीनी सच्चाई है पानी की कमी उसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए था। ये सिर्फ एक गांव की बात नहीं है पन्ना जिले कई ऐसे गांव हैं, जहां पानी की भारी कमी के चलते ये शौचालय दिखावे की चीज़ बनकर रह गए हैं। लोग उनका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं।
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