शुक्रवार शाम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर, लद्दाख सहित सभी अन्य भारतीयों को अपनी सरकार के सोमवार को धारा 370 हटाने के ‘ऐतिहासिक निर्णय’ पर बधाई दी। संवैधानिक प्रावधान द्वारा जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष राज्य का दर्जा हटा कर अब इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है। प्रधानमंत्री के भाषण में एक महत्वपूर्ण बात यह रही कि अनगिनत लोगों के विशेषाधिकार हटाने को इस तरह कहा गया जैसे उन्हें सशक्त बनाया गया हैं। सन् 1947 में महाराजा हरी सिंह ने जब हस्ताक्षर कर जम्मू-कश्मीर रियासत को विशेष राज्य का दर्जा दिलवाया था, उसी समय विधेयक 370 की जड़ें वहां के स्थानीय संविधान में गहरी पड़ गई थीं।
इससे राज्य को अपना कानून और संविधान बनाने का हक़ मिल गया था। इसके बाद केन्द्र के पास राज्य से जुड़े तीन वैधानिक अधिकार थे जो सुरक्षा, विदेश नीति संबंधी तथा संचार से जुड़े हुए थे। इससे राज्य विधानसभा को यह अधिकार था कि वह निर्णय ले सकें कि जम्मू-कश्मीर के लिए कौनसे कानून बनाए जाएं। विधेयक 35A भी इसी सप्ताह समाप्त किया गया है वह जम्मू-कश्मीर की स्थायी नागरिकता को सही-सही परिभाषित करता था जो वहां के नागरिकों को विशेष रियायतें और उन्हें मिलने वाले अधिकारों तथा वहां ज़मीन ख़रीदने के अधिकार को भी सुरक्षित करता था।
विधेयक 370 के हटाने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग भी पूरे देश के नागरिकों के समान अब सभी अधिकारों का आनंद ले सकेंगे। महिलाएं, मजदूर, कामगार लोग तथा अन्य सभी अब सशक्त हो जाएंगे, यह प्रधानमंत्री मोदी ने कहा। जो प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में नहीं कहा वह यह है कि पहले से ही केंद्र सरकार ने पिछले कुछ दशकों में बहुत से कानूनों को बदल दिया है। विधेयक 370 हटाने से जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लिया गया है जो राज्य सरकार के लिए अपर्याप्त स्थिती है।
भाषण में जानबूझकर या अनजाने में, इस बात की अनदेखी की गई कि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों द्वारा राज्य विधानसभा द्वारा दिए गए अधिकारों का स्थानीय नागरिक पहले भी आनंद ले रहे थे। विधेयक 35A हटाने का कारण बताते हुए कहा गया कि इससे महिलाओं को ज़मीन-जायदाद में समानता का अधिकार नहीं मिल रहा था। यदि वे राज्य के बाहर शादी करती हैं तब वे जम्मू-कश्मीर में सभी तरह के ज़मीन से जुड़े अधिकार खो देती हैं। यह कानून जम्मू-कश्मीर की हाई कोर्ट ने बनाया था। प्रधानमंत्री ने नेशनल कांफ्रेंस के लीड़र शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1950 में कट्टरपंथी सुधारों की की शुरुआत कर दी थी, जिसके तहत ज़मीन की ख़रीद-फरोख़्त पर मालिकाना हक़ से संबंधित सुधार किए गए थे, इसकी भी अनदेखी कर दी।
सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह रहा कि मोदी ने इस बात की पूरी तरह अनदेखी कर दी कि जब राज्य सरकार इंडियन यूनियन में शामिल होने के लिए तैयार थे जिसके बारे में राजनीतिक एजेंसी ने आश्वासन दिया उसके बावजूद केंद्र सरकार ने अपनी नीतियां उन पर थोप दीं।
मोदी इसे स्वर्णिम अवसर के तौर पर दिखाना चाहते हैं। ऐसा होने पर कश्मीरियों का जीवन जनसांख्यकीय परिवर्तन से प्रभावित होगा, वहां ज़मीन पर अधिकार करके विनाश की ओर जाते हुए हालात नाजुक परिस्थिति में पहुंच जाएंगे।
जो उन्होंने नहीं बताया वह यह है, जैसा उन्होंने कहा जम्मू और लद्दाख दबाव में रहने की याद दिलाते हैं जबकि कश्मीर घाटी एक तरह के प्रतिबंध में है। घाटी के अधिकतर राजनीतिज्ञ यहां तक कि वे भी जिन्होंने आतंकवाद के दौरान देश की सरकार को कई दशकों तक समर्थन दिया, वे भी गिरफ्तार कर लिए गए। यदि जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह निर्णय इतना अच्छा था तो उनके नेताओं से इस बारे में बात क्यों नहीं की गई।
मोदी ने जेल में बंद नेताओं को अस्पष्ठ संदेश दिया क्योंकि उन्होंने केंद्र के निर्णय का विरोध करने की कसम उठा ली थी। मोदी ने कहा, राष्ट्र के लिए अच्छाई की ओर बढ़ना चाहिए और देशभक्ति की भावना का आदर करना ज़रूरी है। यह विनम्र शब्दों में आदेश है: यह मौन स्वीकृति देने जैसा है जिसमें बहुसंख्या को स्वीकार लिया जाता है। वहां अल्पसंख्यकों की भावनाओं का सम्मान किया जाता हो, इसके संकेत नहीं मिलते।
जैसा कि प्रधानमंत्री ने ‘विकास’ लागू किया हुआ है, उन्होंने कहा कि वह कश्मीर के फल और यहां के शॉल, लद्दाख की ख़ास किस्म की जड़ी-बूटियां के लिए वह ‘विकास’ जारी रखेंगे। यह निरूत्साह सा था जिसे में कोई जोश नहीं था। यह किसी संसदीय सरकार की अपने नागरिकों के लिए कही बात नहीं थी।
Translated from : https://scroll.in/article/933278/the-daily-fix-modis-speech-ignores-vital-rights-deleted-by-the-scrapping-of-j-ks-special-status