28 अगस्त 2025 को अमर उजाला में आई एक रिपोर्ट से यह पता लगा कि दिल्ली-एनसीआर में लोग गर्मियों के दौरान सर्दियों की तुलना में लगभग दोगुना माइक्रोप्लास्टिक कण अपनी सांस के माध्यम से शरीर में ले रहे हैं। दरअसल दिल्ली की हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक अब सेहत के लिए गंभीर संकट बन रहे हैं।
अध्यन किया गया है –
बता दें अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार पुणे स्थित भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि गर्मियों में दिल्ली और एनसीआर के लोग सर्दियों की तुलना में करीब 97 प्रतिशत अधिक माइक्रोप्लास्टिक कण सांस के जरिए शरीर में ले रहे हैं। यह खतरा वयस्कों के साथ बच्चों और यहां तक कि शिशुओं तक पर मंडरा रहा है।
अध्यन में पाया गया है कि अप्रैल से जून के महीनों में दिल्ली की हवा में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बढ़ जाती है। गर्मियों में बारिश कम और धूल ज़्यादा उड़ती है जिससे प्लास्टिक जल्दी टूटकर छोटे टुकड़ों में बदलता है। ये सूक्ष्म कण लंबे समय तक हवा में तैरते रहते हैं और सांस के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। अध्यन में यह भी स्पष्ट किया गया कि आंकड़े प्लस/माइनस के साथ दिए गए हैं, जिसका अर्थ है कि वास्तविक संख्या औसत से थोड़ी ऊपर या नीचे हो सकती है।
एल्युमिनियम जैसे जहरीले धातु तत्व भी
अध्ययन के अनुसार, दिल्ली के वयस्क लोग गर्मियों में सर्दियों की तुलना में लगभग दोगुना माइक्रोप्लास्टिक निगल रहे हैं। सर्दियों में औसतन 10.7 कण प्रतिदिन पाए गए, जबकि गर्मियों में यह बढ़कर 21.1 कण प्रतिदिन हो गया। नमूने में जिंक, एल्युमिनियम जैसे जहरीले धातु तत्व भी पाए गए, जो माइक्रोप्लास्टिक के साथ मिलकर हवा को और ज्यादा खतरनाक बना सकते हैं। 41% पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी)। यह एक प्रकार का थर्मोप्लास्टिक पॉलिमर है जो पेट्रोलियम से बनाया जाता है। पारदर्शी, हल्का और मजबूत होने के कारण इसका इस्तेमाल पैकेजिंग और बोतलों में सबसे ज्यादा किया जाता है। इसके अलावा पॉलीथीन 27, पॉलिएस्टर 18, पॉलिएस्टाइरीन 9 और पीवीसी 5% पाए गए। नमूनों में केवल प्लास्टिक ही नहीं बल्कि जिंक, सिलिकॉन और एल्युमिनियम जैसे जहरीले धातु तत्व भी पाए गए।
एक कारण है कपड़ा उद्योग
अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में हर दिन लगभग 11,335 टन ठोस कचरा पैदा होता है, जिसमें से 1,145 टन प्लास्टिक और करीब 635 टन सिंगल-यूज प्लास्टिक शामिल है। इसके मुख्य स्रोत घरेलू और औद्योगिक प्लास्टिक कचरा, कपड़े धोने और कपड़ा उद्योग से निकलने वाले रेशे हैं। इसके अलावा पैकेजिंग सामग्री से निकलने वाले और हवा के जरिए दूर-दराज इलाकों से आए कण भी शामिल हैं।
माइक्रोप्लास्टिक क्या है?
माइक्रोप्लास्टिक छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण होते हैं जो अक्सर इतना छोटे होते हैं कि उन्हें आँख से देख पाना मुश्किल होता है। ये प्लास्टिक के बड़े टुकड़ों के टूटने या रोज़मर्रा की चीजों जैसे कपड़े, पैकेजिंग,प्लास्टिक की बोतल, ट्यूब आदि से निकलते हैं। हमारे आस-पास की हवा,पानी और खाने-पीने की चीजों में ये कण घुस जाते हैं। जब हम सांस लेते हैं या खाना खाते हैं तो ये कण हमारे शरीर में पहुंच सकते हैं। लंबे समय तक ये शरीर में जमा होने पर स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
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