महोबा जिला के रहने वाले राम मनोहर बाबला चार साल से आर्केस्टा कर रहे हैं। उनका कहना है कि काम के साथ-साथ ऐतिहासिक चीज़ों को भी जीवित रखना बेहद ज़रूरी है। वह बचपन से ही गीत गा रहा है। उसके पिताजी भी गाते थे जिसकी वजह से वह भी गाने लगा। वह कहता है कि उसे कुछ ऐसा काम करना था जिससे उसका नाम समाज में भी हो। इसलिए उसने आर्केस्ट्रा का चुनाव किया। वह कहता है कि किसी चीज़ को करने के लिए बस खुद का साथ होना ज़रूरी है। किसी और के साथ की ज़रुरत नहीं पड़ती।
ये भी पढ़ें : ना जादू चले ना टोना, जो फिर आ जाए कोरोना | सुनिए ललितपुर से कोरोना गीत
वह कहता है कि वह बच्चों को भी गाना सिखाता है। आर्केस्ट्रा को चुनने में उसे शुरू में काफी चुनौतियाँ भी आई। लोगों द्वारा उसे शादियों और अन्य कार्यक्रमों में भी बुलाया जाता है। वह कहते है कि जब तक हज़ार-दो हज़ार लोगों की भीड़ इकट्ठी नहीं होती, तब तक उसे मज़ा नहीं आता। आर्केस्ट्रा में वह कई तरह के कार्टूनों का किरदार निभाने के साथ-साथ गाना भी गाता है। जिससे लोग काफ़ी खुश होते हैं। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से उसे पिछले साल एक भी आर्केस्ट्रा करने का कार्यक्रम नहीं मिला। जिसकी वजह से वह काफी परेशान है और अन्य रोज़गार का काम करके किसी तरह से कुछ पैसे कमाता है।
ये भी पढ़ें :छठ की शुरुआत भोजपुरी के टॉप 5 छठ गीतों के साथ सुनिए भोजपुरी काउंट डाउन शो