एक रुपये के पर्चे पर मुफ्त इलाज के दावे की वाराणसी में हवा निकल चुकी है। इससे गरीब मरीज यहां मुफ्त इलाज के लिए दूर-दराज से पहुंचता तो जरूर है, लेकिन लौटता खुद को ठगा हुआ महसूस करके। हम बात कर रहे हैं वाराणसी जिले के चोलापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की, यहाँ मरीजों को बाहर से दवाओं को लेने के लिए लिखा जाता हैं। लोग सरकारी अस्पताल में सस्ते इलाज के लिये आते है लेकिन उन्हे वह सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं।
अस्पताल में दवा करने आई मुरली गांव की रीता का कहना है कि वह दो बार अस्पताल आ चुकी हैं लेकिन दोनों बार उसे अस्पताल में बाहर की दवाई लिखी गई। पांच दिन से पैर मे दर्द और सूजन था और आज डाक्टर को दिखवाने आए थे तो बाहर से दवाई लाने के लिए लिखा था, तो उन्ही दवाइयों को दिखाने के लिए डाक्टर का इंतजार कर रहे है। लोग कहते हैं कि सरकारी अस्पताल गरीबों की सुविधा के लिए होता है, लेकिन यहाँ भी वही लूट है। जैसे प्राइवेट में होती है, नहीं तो दवाई बाहर से क्यों लेना पड़ता ? शासन का सख्त निर्देश है कि मरीजों को बाहर से दवाएं न लिखी जाएँ लेकिन अस्पताल के डॉक्टर खुलेआम बाहर की दवाएं लिख रहे हैं। ऐसा नहीं है की अस्पतालों में दवाएं नहीं होती लेकिन बाहर भी मेडिकल स्टोरों से डॉक्टर की सेटिंग होती है और ज्यादातर डॉक्टर बाहर से दवा लिख देते हैं। अस्पताल में कभी दर्द की दवाई पर्चे के साथ दे दी गई तो कभी बुखार की बाकी दवाओं के नाम पर बोल देते हैं की नहीं है पर्चे में मेडिकल स्टोरी का नाम लिख देंगे और बोल देते हैं की इस मेडिकल स्टोर पर आपको दवा आसानी से मिल जायेगी। और सबसे बड़ी बात मरीज को पर्चे में लिखी दवा समझ नहीं आती लेकिन हर उस मेडिकल स्टोर वाले को पता होता है कि फलाना डॉक्टर ने लिखी है उसे फोन लगाकर पूछ भी लेते हैं ये दवा नहीं है इसके बदले में ये चलेगी और दे दे हैं मरीजों को दवाई का थैला।
ऐसे में मरीज करे तो क्या करे? उसकी तो मजबूरी है दवाओं को लेना लेकिन सस्ती दवाओं के नाम पर मरीजों को ठगना गलत है। सस्ती दवा मिले अच्छा इलाज हो इसलिए तो लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए आते हैं। अगर उनके पैसे ही होने तो प्राइवेट में नहीं चले जायेंगे? क्यों अस्पतालों में कई-कई दिनों तक चक्कर लगायेंगे। सही बात तो ये है की अब सरकारी और प्राइवेट में फर्क कम होता जा रहा इसलिए लोग प्राइवेट में ज्यादा जाने लगे हैं।
ये सिर्फ वाराणसी के चोलापुर की बात नहीं है ये हर जिले की बात है जहाँ बाहर की दवाएं लिखी जाती हैं। अस्पतालों में अव्यवस्थाएं तो बहुत होती हैं कहीं फ़र्स टूटी मिलेगी तो कहीं बिल्डिंग जर्जर तो कहीं मरीजों को चादर ही नही मिलते। अगर हम फैजाबाद जिले की बात करें तो डॉक्टर काउंटर नंबर लिख देते हैं और बोल देते हैं की जाकर दवा मिल जायेगी लेकिन वहां के डॉक्टर भी बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। ऐसे में मरीजों की मज़बूरी हो जाती है की वह बाहर से दवाओं को ले। 11 सितम्बर 2019 को हमारे रिपोर्टर ने महोबा के कबरस्वास्थ्य केंद्र में डिलेवरी से पैसा लिया जाता है इस विषय पर लाइव किया था। जिसमे महिलाएं बहुत खुलकर बोली। शकलिया ने बताया की चार सौ रुपया लिया गया है उन्होंने बोला दो नहीं तो जाओ। और ये हर बार लेती हैं ऐसी मनमानी होती है जबकि ये महिला मजदूर है। महिला ने बोला मुझे ख़ुशी थी जो दे रही उतना लेना चाहिए लेकिन मनमाना मागते हैं। अब हमारा मरीज मेरी बहू सूखी रोटी खाकर पडी है उसमे हम उसके लिए कुछ खाने पीने का सामान ले आते। सिया नाम की महिला जो महेबा से आई थी उसको बेटा हुआ था नर्स ने 600 रुपया लिया। लेकिन हमें नहीं पता चला की किस चीज का ले रही हैं। 500 दिया तो नहीं ली जब 600 दिया तो ले ली। पहली बार बहू को लेकर आये थे, दिक्कत ये है की बिना अस्पताल लाये अब बच्चे ही नहीं होते नहीं तो हमारे ज़माने में घर पर ही बच्चे हो जाते थे। इस तरह की प्रोब्लम से छुटकारा मिला रहता था इस तरह की खिच-खिच नहीं थी। तो इस तरह है अस्पतालों का हाल और ये किसी से छुपा नहीं है। ज्यादातर मरीजों के साथ होता है। चोलापुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अअधीक्षक डॉक्टर आर. बी. यादव का कहना है कि उनके यहाँ हर मर्ज कि दवा उपलब्ध है। अगर कोई दवा बाहर के लिए लिखता है, तो उसके उपर शख्त कार्यवाही होगी। जो भी डॉक्टर बाहर से दवाएं लिख रहे हैं मरीज उनके नाम से शिकायत करें, जाँच की जायेगी।