अदालत ने हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधानों पर गहराई से विचार करते हुए कहा, “जब तक विवाह उचित समारोहों के साथ और उचित रूप में नहीं किया जाता है, तब तक इसे अधिनियम की धारा 7(1) के अनुसार ‘संपन्न’ नहीं कहा जा सकता है।”
शादी सिर्फ शराब पीने, नाचने-गाने, दहेज़ और लेने-देन की प्रक्रिया नहीं है और न ही शादी का प्रमाण पत्र होने से शादी पूरी मानी जाएगी ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा। शादी एक पवित्र बंधन है जिसका सब को सम्मान और पालन करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कल बुधवार 1 मई को यह फैसला सुनाया।
शादी को लेकर अकसर ऐसे मामले सामने आते हैं जब शादी में दोनों व्यक्तियों में मन-मुटाव से रिश्ते को ख़त्म करने के लिए तलाक ही एक ऐसा विकल्प दिखता है लेकिन जब किसी ने सिर्फ शादी कोर्ट में ही की हो और समाज के बनाए गए रीती-रिवाज, परम्पराओं से हटकर शादी की हो तो ऐसे में शादी हुई है मानी जाएगी?
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले पर फैसला लिया जहां तलाक के लिए एक महिला ने याचिका दी।
ये भी पढ़ें – Gujarat CM: प्रेम-विवाह में माता-पिता की मंज़ूरी ज़रूरी, बंदिशे फिर महिलाओं पर
तलाक सम्बन्धी मामले पर लिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट में आए एक मामले में जहां एक महिला ने तलाक के लिए याचिका दी थी। तलाक की याचिका को बिहार के मुजफ्फरपुर की अदालत से रांची की में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। क्योंकि यह मामला लम्बे समय से चल रहा था। महिला और उसके पूर्व साथी, दोनों योग्य वाणिज्यिक पायलट थे जिन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत संयुक्त रूप से एक आवेदन प्रस्तुत करके असहमति को सुलझाने का फैसला किया।
अदालत में कहा गया कि “हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत अधिनियम की धारा 7 में ‘हिंदू विवाह के समारोहों’ को सूचीबद्ध किया गया है जिसका पालन होना चाहिए। जिसका विवाह की वैधता के लिए पालन किया जाना चाहिए।”
अदालत की पीठ ने आगे कहा शादी एक गंभीर प्रक्रिया है जो एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंध स्थापित करता है और भविष्य में एक नया परिवार बनाता है जिसमें पति और पत्नी का दर्जा प्राप्त होता है जो भारतीय समाज की एक बुनियादी इकाई है।
हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार शादी मान्य
अदालत ने हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधानों पर गहराई से विचार करते हुए कहा, “जब तक विवाह उचित समारोहों के साथ और उचित रूप में नहीं किया जाता है, तब तक इसे अधिनियम की धारा 7(1) के अनुसार ‘संपन्न’ नहीं कहा जा सकता है।”
शादी करने से पहले गहराई से सोचने के लिए युवा पुरुषों और महिलाओं से किया आग्रह
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 19 अप्रैल के एक आदेश में “युवा पुरुषों और महिलाओं से आग्रह किया कि विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले ही उसके बारे में गहराई से सोचना चाहिए और शादी की पवित्रता को समझना चाहिए।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है पीठ ने कहा कि यदि धारा 7 के अनुसार कोई विवाह नहीं हुआ है तो पंजीकरण विवाह को वैधता नहीं देगा।
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’