महोबा: पीएचडी की पढ़ाई का शौक रखने वाले संतोष पटैरिया का सपना क्यों रह गया अधूरा? कहते है सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती ,मगर बहुत से लोग ऐसे भी होते है जो सपने तो देख लेते हैं मगर उनके सपने परिवार की ज़िम्मेदारी के चलते पूरे नहीं हो पाते ऐसे ही एक लोकल हीरो से हमारी रिपोर्टर ने बात की और जाना उनके अधूरे सपने को
नाम संतोष पटैरिया, उम्र लगभग 60 साल, निवासी महोबा शहर। इन्हें बचपन से ही शौक था कि वह पढ़ाई में पीएचडी करें पर घर की परेशानियां थी जिसकी वजह से वो पीएचडी नही कर पाए। पर वह आज दूसरे बच्चों को जरूर करा रहे है। संतोष जी ने कई अलग अलग नौकरियां की प्रोफेसर भी रहे। पीएचडी के साथ साथ उन्हें कविताएं लेख लिखने का भी बड़ा शौक था बचपन से ही। संतोष जी बताते है कि जब वह छोटे थे तो बचपन में वह कही की गाना बजाना होता था तो शामिल जरुर होते थे। उनकी मेहनत और लगन ने आज यहां तक पहुचाया है। उनके कई लेख है जो मीडिया छपे है। उनकी कविताएं साधना चैनल में भी आती है। कई बार उनको रेडियो प्रसारण आकाशवाड़ी में भी बुलाया गया। उनका यह सफर आसान नही था, कही भी अगर कविताएं होती तो यह अपने ऑफिस वालो के साथ जाते, लोगो के रहने बैठने और चाय देने का काम करते थे। लोगो की अटैची बॉक्स लेकर चलते थे।पर उन्हें कभी किसी तरह की बेइज्जती नही महसूस हुई। आज उनको कई अवार्डों के द्वारा सम्मानित किया गया है।
Mahoba: Why did Santhosh Pateriya, who is fond of PhD, remain unfulfilled