वीर रस की गाथा कहा जाने वाला आल्हा गायन बुंदेलखंड की एक अनोखी परंपराओं में से एक है। बारहवीं सदी से चला आ रहा आल्हा गायन आज भी जब गाया जाता है तो शूर-वीरों की कहानी सुन दर्शकों के मन गद-गद हो जाते हैं।
ये भी देखें – छतरपुर: लड़कियों के लिए मिसाल हैं 3 फुट की साहिबा खातून
खबर लहरिया के Archive से आज हम आल्हा गायकों की एक ऐसी ही कहानी लेकर आए हैं, जहाँ छोटी सी उम्र में दो बहनों ने आल्हा गायन की रीति को देशभर में उजागर करने की मुहिम उठाई है।
प्रतीक्षा और दीक्षा का कहना है कि पिता को शौक था फिर उन्हें भी शौक हो चला। उनको सिखाने का श्रेय भी उनके पिता को ही जाता है। दोनों बहनें अब तक बुंदेलखंड एवं अन्य कई जगहों में आल्हा गायन के शोज़ कर चुकी हैं। उनकी दमदार आवाज़ और दृणसंकल्प देख लोगों की तालियां थमने का नाम नहीं लेती।
ये भी देखें – जब जीत दिलाने में महिलाओं का अहम रोल तो मंत्रिमंडल में उनकी संख्या कम क्यों?
बच्चियों के माता-पिता को भी अपनी बच्चियों पर पूरा गर्व है। उन्हें विशवास है कि आगे चलकर उनकी बेटियां दुनिया भर में उनका नाम रौशन करेंगी।
ये भी देखें – गाँव की मायावती, मीरा भारती : एक दमदार नेता, जिसके बारे में अब गाँव-गाँव में होती है चर्चा
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें