साल भर पहले तक जब गैस के दाम 60-700 हुआ करते थे तब इन लोगों को कुछ राहत थी, लेकिन अब जब महोबा में गैस सिलेंडर का दाम 933 रूपए प्रति सिलेंडर पहुँच चुका है तब गाँव का कोई भी परिवार गैस का इस्तेमाल करने में असक्षम है।
महंगाई की मार ने आम जनता की बुरी तरह से कमर तोड़ दी है, जिसका सबसे ज़्यादा प्रभाव देखने को मिल रहा है गरीब परिवारों पर। महोबा ज़िले के अलग-अलग गावों की महिलाएं गैस सिलेंडर के बढ़ते दामों के चलते चूल्हे पर खाना बनाने पर मजबूर हो गई हैं। पेट्रोल-डीज़ल के साथ एल पी जी सिलेंडर के दाम भी फिलहाल आसमान छू रहे हैं, जिससे गरीब तो क्या मध्यम वर्ग के लोग भी अब खाना बनाने के लिए चूल्हे का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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लकड़ी बीन कर बनाना पड़ रहा खाना-
महोबा ज़िले के गाँव बम्होरी खुर्द की रहने वाली कुसुम ने हमें बताया कि उनके घर में कुल 10 लोग रहते हैं और एक गैस सिलेंडर मुश्किल से एक महीना चल पाता है। छोटे-मोटे रोज़गार करने वाले इस परिवार के लिए हर महीने 900-1 हज़ार तक का सिलेंडर भरवा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। और यही कारण है कि ये लोग अब चूल्हे पर ही खाना बना रहे हैं।
कुसुम का कहना है कि परिवार के कुछ लोगों को सुबह जल्दी उठ कर ईंधन इकट्ठा करने के लिए मीलों पैदल चल कर जंगलों तक जाना पड़ता है। सरकार द्वारा चलाई जा रही उज्ज्वला योजना के बावजूद भी इस परिवार को सूखी लकड़ियों के सहारे फिलहाल खाना बनाना पड़ रहा है। कुसुम की मानें तो अगर वो एक हज़ार सिर्फ एक सिलेंडर खरीदने में लगा देंगी तो राशन का बाकी सामान तो आ ही नहीं पाएगा।
चूल्हे पर खाना बनाने में भी आती हैं कठिनाइयां-
लालपुर गाँव की रहने वाली विद्या ने हमें बताया कि उन्होंने पिछले 6 महीने से अपना सिलेंडर नहीं भरवाया है। उन्होंने बताया कि साल भर पहले तक जब गैस के दाम 60-700 हुआ करते थे तब इन लोगों को कुछ राहत थी, लेकिन अब जब महोबा में गैस सिलेंडर का दाम 933 रूपए प्रति सिलेंडर पहुँच चुका है तब गाँव का कोई भी परिवार गैस का इस्तेमाल करने में असक्षम है। उन्होंने बताया कि चूल्हे पर खाना बनाने में समय भी ज़्यादा लगता है और ईंधन भी अधिक खर्च
होता है, लेकिन आर्थिक परिस्थितियों के कारण इनके पास और कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।
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पेट्रोल-डीज़ल, फल-सब्ज़ी के दाम भी छू रहे आसमान-
कबरई ब्लॉक के कई परिवारों से बात करने पर पता चला कि वो लोग भी फिलहाल एल पी जी सिलेंडर खरीद नहीं पा रहे हैं। इन परिवारों को बच्चों की स्कूल की फीस भी भरनी होती है और रोज़गार के लिए मीलों बाइक और अन्य वाहनों से सफर भी तय करना होता है, जिसमें काफी पेट्रोल लग जाता है। इन परिवारों की मानें तो महंगाई के इस दौर में इन्हें कहीं न कहीं तो बचत करनी ही पड़ती है, और इसी कारण ये लोग चूल्हे पर खाना बना रहे हैं। कबरई की ही रहने वाली ममता प्रतिदिन आरा मशीन से 20 रूपए की 5 किलो लकड़ियां ले आती हैं, जिससे उनका तीन-चार दिन का चूल्हे का इंतज़ाम हो जाता है।
सरकार से नाराज़ आम जनता-
गैस सिलेंडर पर महंगाई की इस मार से हताश लोगों ने केंद्र और राज्य सरकार पर भी अपना गुस्सा निकाला है। इन लोगों की मानें तो 2 महीने पहले महोबा में सी एम योगी भी आए थे और उज्जवला योजना 2.0 का उद्घाटन किया था। सी एम ने अपने भाषण में यह तो कहा था कि गाँव-गाँव में महिलाओं को सिलेंडर वितरण करा दिए गए हैं, लेकिन अब जब सिलेंडर दिन पर दिन महंगे होते जा रहे हैं तब इन्हीं ग्रामीण महिलाओं के लिए इसे वापस से सिलेंडर भरवा पाना
नामुमकिन है।
गैस एजेंसी मालिक आलोक अग्रवाल ने हमें बताया कि शहर में अब सिर्फ 50% लोग ही गैस भरा रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ महीनों पहले तक उज्जवला योजना के अंतर्गत जिन महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन मिला था, वो लोग भी हर महीने सिलेंडर भरवा लिया करते थे लेकिन अब गरीब परिवार बिलकुल भी गैस नहीं भरवा रहे हैं। उन्होंने बताया कि फिलहाल शहर में सिलेंडर 933 रूपए 50 पैसे के रेट से भराया जा रहा है। और उनकी एजेंसी में लगभग 10 हज़ार धारक हैं, लेकिन इन 10 हज़ार में से सिर्फ आधे धारक ही अब गैस सिलेंडर भरवा रहे हैं।
इस खबर की रिपोर्टिंग श्यामकली द्वारा की गयी है।
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