खबर लहरिया Blog महिला प्रधान का जीवन में संघर्ष, नहीं मिला किसी से सहयोग

महिला प्रधान का जीवन में संघर्ष, नहीं मिला किसी से सहयोग

गांव में महिलाओं से बातचीत करना लोगों के लिए असहज महसूस होता है इसलिए यदि कोई महिला प्रधान बन भी जाए तो उनसे अपनी समस्या कैसे बताई जाये? एक महिला को प्रधान तो बना दिया जाता है लेकिन सारा काम उनका पति संभालता है। कोई अगर महिला प्रधान से बात भी करना चाहे तो पुरुष ही आगे निकल के आता है और वही बात करता है।

                                                                                                                              निभौर गांव की महिला प्रधान नीलम देवी की तस्वीर

रिपोर्ट – गीता देवी 

समाज में महिलाओं को हमेशा से उपयोग की वस्तु की तरह देखा गया है। महिलाओं की खुद की कोई पहचान है भी की नहीं? इस सवाल के लिए आज भी महिलाएँ संघर्ष कर रही हैं। बात चाहे समाज, शिक्षा, राजनीति और परिवार की हो हमेशा महिलाओं को पीछे और पुरुषों को आगे रखा जाता है। अधिकतर आप ने गांव में देखा होगा कि जब भी राजनीति में महिलाएं आयी हैं उनका नाम कम और उनके पति का नाम ज्यादा होता है। इसी कारण महिला को प्रधान खड़ा किया जाता है ताकि वह जीत सके और उनके पति राजीनीति में उतर सके। महिला के जीतने के बाद सत्ता की बागडोर पति के हाथ में चली जाती है। ग्रामीण अपनी परेशानी लेकर महिला प्रधान के पास नहीं जाते, पति प्रधान के पास जाते हैं। महिला की इज़्ज़त जभी तक की जाती है जब तक उसका पति साथ हो लेकिन जब पति का साथ नहीं रहता या पति की मृत्यु हो जाती है तब जीवन जीना बड़ा मुश्किल हो जाता है। महिला अगर शिक्षित न हो तो महिला को बेवकूफ बनाया जाता है। ऐसे ही संघर्ष और चुनौतियों भरा जीवन है बाँदा जिले के निभौर गांव की महिला प्रधान का।

निभौर गांव की महिला नीलम देवी जो 2021 में हुए पंचायती राज चुनाव में जीती और महिला ग्राम प्रधान बनी। उन्हें ये जीत उनके पति की वजह से मिली क्योंकि उनके पति एक रोजगार सेवक थे लेकिन जीतने के तीन दिन बाद ही अचानक उनके पति की मृत्यु हो गई। नीलम देवी ने बताया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली पर इसके पीछे का कारण आज तक रहस्य बना हुआ है तो हम इसे आत्महत्या नहीं कह सकते। नीलम देवी प्रधान तो बनी लेकिन अशिक्षित होने और लोगों के सहयोग के बिना अपनी प्रधान की जिम्मेदारी सही से न निभा सकीं। जब वो चुनाव के लिए कड़ी हुई जब उनके पति साथ थे और तब लोगों को महिला पर कम और पुरुष पर ज्यादा विश्वास था तभी महिला को भारी मतों से जीतकर प्रधान बना दिया। जब नीलम देवी के पति की मृत्यु हुई उसके बाद से किसी के तरफ से सहयोग नहीं दिखाई दिया जो वो काम कर सके। एक महिला और महिला प्रधान होने के नाते उनके जीवन में संघर्ष के पड़ाव आए।

गांव में महिलाओं से बातचीत करना लोगों के लिए असहज महसूस होता है इसलिए यदि कोई महिला प्रधान बन भी जाए तो उनसे अपनी समस्या कैसे बताई जाये? एक महिला को प्रधान तो बना दिया जाता है लेकिन सारा काम उनका पति संभालता है। कोई अगर महिला प्रधान से बात भी करना चाहे तो पुरुष ही आगे निकल के आता है और वही बात करता है।

नीलम देवी के तीन लड़के और एक लड़की है, पति रोजगार सेवक था। वह बहुत खुश थी। जब वह प्रधान बनी तो घर में बधाइयाँ देने वालों की भीड़ लग गई थी। सब लोग बरामदे में बैठे थे। वह रसोई में काम कर रही थी, पता नहीं कब पति ऊपर छत में चला गया और उसने (पति) खुद को गोली मार ली। गोली की आवाज उन्हें टायर फटने जैसी लगी क्योंकि उनका घर सड़क किनारे था। उन्होंने ध्यान नहीं दिया। काफी देर बाद जब पति नहीं दिखा तो उनके देवर ऊपर छत में गए तो देखा कि वह मृत अवस्था में थे। इसके बाद परिवार ने भी कोई पहल नहीं ली और न ही आज तक पता चला कि किसके दबाव में पति ने इतना बड़ा कदम उठाया।

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महिला प्रधान के साथ की धोखाधड़ी

पति की मृत्यु के बाद महिला अकेली पड़ जाती है। समाज भी उसे सम्म्मान की नज़र से और महिला को आगे बढ़ते नहीं देख सकता। ऐसे में उनके साथ काम करने वाले लोग भी फायदा उठाते हैं। शिक्षा के साथ-साथ अगर गांव के लोगों ने उनके काम में सहयोग किया होता तो वो अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभा पाती। प्रधान अगर एक महिला हो तो कोई भी जानकरी ब्लॉक से महिला होने के नाते उन्हें नहीं दी जाती। जो भी बजट का पैसा आता है वो धोखाधड़ी से निकाल लिया जाता है। महिला प्रधान ने बताया कि जिसे भी वह प्रतिनिधि के रूप में रखती है। वह काम करवाने के बाद आधा अधूरा छोड़कर भाग जाते हैं और पैसे भी खा जाते हैं। प्रधानी का काम नील है और बहुत सारे गरीब लोगों के काम की मजदूरी पड़ी है। सचिव भी सहयोग नहीं करता कि अच्छे से काम हो सके। उन्हें सिर्फ 3000 रुपए वेतन मिलता है। उसी से वह अपने बच्चों को पालती है।

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शिक्षा भी ज़रूरी

शिक्षा व्यक्ति के लिए कितनी जरूरी है ये हम सभी जानते हैं। समाज में शिक्षित न होने पर दुनिया में बहुत लोग हैं जो आपकी अज्ञानता का फायदा उठाते हैं और आपको बेवकूफ बना कर लाभ उठाते हैं। समाज में खासकर महिलाओं का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है तभी वो आत्मनिर्भर बन सकती है। तभी महिलाएं विपरीत स्थिति का सामना खुद कर सकती है। जैसे नीलम प्रधान बनने के बावजूद उनके सहयोगी ने रुपयों की धांधली की। नीलम ने बताया कि उसने प्रधान बनने के लिए कोई डिग्री हासिल नहीं की। वह एक अनपढ़ और सीधी-साधी महिला है। पति की मृत्यु होने पर लोगों ने भरोशा दिया था की वे मदद करेंगे लेकिन 4साल हो गए ऐसा हुआ नहीं।जिसको भी अपना प्रतिनिधि बनाती है वही विश्वासघात करता है।

तंग आकर प्रधान पद से इस्तीफा देने का लिया था निर्णय

जब महिला को कहीं से भी सहयोग नहीं मिलता तो वो आखिरकार हार मान जाती है। ऐसे काम की जिम्मेदारी जो उसने कभी किया ही नहीं और न ही उसे सिखाया गया तो ऐसे में वो काम कैसे करें? ऐसे तो गांव का विकास रुक जाएगा इसलिए नीलम देवी ने प्रधान पद से हटने का फैसला लिया था। नीलम कहती हैं कि 2022 में अनुराग पटेल डीएम थे। वह अपने बच्चों को लेकर डीएम कार्यालय दरखास्त देने पहुंची थी। उन्होंने डीएम से अनुरोध किया था कि उसको प्रधानी के पद से हटा दिया जाए, क्योंकि वह पढ़ी-लिखी नहीं है, कुछ समझ नहीं पाती है, ना दस्तखत कर पाती है। उनके गांव में जो भी काम आता है। उनको पता नहीं चल पाता है। काम के सिलसिले में मटेरियल लेने के नाम पर साइन करवा लेते हैं। कहीं सचिव कहता है पत्रकारों को देना है। उनके के नाम पर साइन कर लिए जाते हैं और पैसा निकाल लिया जाता है इसलिए उसको डर है कि आगे उसके ऊपर कोई दिक्कत ना हो। डीएम ने उन्हें कहा था कि तुम घर जाओ इस्तीफे की कोई जरूरत नहीं है। आप घर जाओ पहले सचिव के हस्ताक्षर होंगे और वही मान्य होगा।

पता नहीं कितना पैसा तो उसके खाते से इस तरह निकल गया? उसके पति का पैसा खाते में जमा था वह भी निकल गया। उनको इसकी जानकारी ही नहीं थी। अशिक्षित होने के कारण उन्हें लोगों से वाउचर भरवाना, एटीएम के जरिए पैसा निकालना नहीं आता था इसलिए अंगुठा लगाती थी। डीएम द्वारा एक कार्यक्रम चलाया गया जिसमें स्कूल में बुलाकर उसको दस्तखत करना सिखाया गया। अब वह नाम लिख लेती है और अब बच्चे भी थोड़ी बड़े हो गए हैं, समझने लगे हैं तो बच्चों को साथ लेकर ही बैंक जाती है।

परिवार से नहीं मिला सहयोग

प्रधान होकर भी परिवार में उनका कोई सम्मान नहीं सिर्फ इसलिए क्योंकि वो एक महिला है और महिला उनका पति नहीं है। नीलम कहती हैं कि जब उनके पति थे तब उन्होंने दो जगह जमीन ली थी और दो मंजिला मकान में वो रहती है। सास ने खेत बेचकर अपने नाम कर लिया था क्योंकि रोड के किनारे था और एक घर में सांस ने कब्जा कर रखा है। अभी तक बांदा में बच्चों के साथ मायके में रहती थी लेकिन अभी कुछ दिनों से घर में आकर रह रही है कि शायद रहने से उनको घर ही मिल जाए।

मजदूरी करके चलाती है परिवार

अकेले जीवन जीने के बिना पैसों के गुजारा नहीं किया जा सकता है। नीलम बताती है कि वह बाँदा में बच्चों के साथ रहती थी। मायके में तो वहां भी ईंटा-गारा का काम और मंडी में दुकानों पर काम करती है तब जाकर उसके बच्चों का खर्च चलता है। मायके में भी भाई भाभी हैं तो कौन किसका होता है। उनके भी परिवार है 3000 रुपए में पूरा भी नहीं पड़ता जो प्रधानी में वेतन मिलता है। तबीयत भी टेंशन के कारण खराब रहती है। वह प्रधान हैं लेकिन लेकिन फिर भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए पैसे नहीं जुटा पा रही हैं। उनके बच्चे स्कूल नहीं जाते यदि वो शिक्षित नहीं है तो उनके बच्चों को भी वो शिक्षित कर पाने में असमर्थ हैं।

बीडीओ, सचिव ने नहीं की बात

खबर लहरिया की रिपोर्टर ने जब इस मामले पर सचिव और बीडीओ से बात करनी चाही तो उन्होंने बात नहीं की। रिपोर्टर ने उनसे कॉल के माध्यम से बातचीत करनी चाही लेकिन उनका कॉल का जवाब नहीं दिया गया। जब वहीँ बैठे एक गांव के प्रधान ने सचिव को कॉल लगाया तो उठा लिया। इससे यह पता चलता है कि कहीं न कहीं गलती सचिव की भी है इसलिए वो जवाब देने से भाग रहे हैं।

महिला को साथ लेकर चलने की बात सरकार करती है लेकिन उन्हीं के अधिकारी महिला प्रधान के प्रति ऐसा व्यवहार रखेंगे तो कैसे देश का विकास होगा? यहां सिर्फ बात सिर्फ महिला प्रधान की नहीं हैं एक महिला की भी है। सचिव, डीएम और बीडीओ ने भी महिला होने के नाते उसका सहयोग नहीं किया सिर्फ उसके पद का फायदा उठाकर महिला के प्रधान के काम में धोखाधड़ी की।

 

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