खबर लहरिया Blog ‘अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ पर जानें गांव की पहली महिला प्रधान की स्टोरी 

‘अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस’ पर जानें गांव की पहली महिला प्रधान की स्टोरी 

प्रधान बनने के बाद ज़्यादा कुछ बदलाव नहीं आया। पहले की तरह घर और खेत और अब प्रधानी से जुड़े कार्य करना होता है।

International Day of Rural Woman, story of the first female head of the village

International Day of Rural Woman: 40 वर्षीय सुनीता अपने गांव की पहली महिला प्रधान हैं। सुनीता, अयोध्या जिले के तारुन ब्लॉक की ग्राम पंचायत विजयनपुर शाहजारा से हैं। वह एससी जाति से संबंध रखती हैं। उनका कहना है, “मैं अपने गांव की पहली महिला प्रधान हूँ जो ऑफिस से लेकर घर और खेत का भी काम करती हूँ। मैं आठवीं तक पढ़ाई की है।”

सुनीता की पहचान से कई सामाजिक रिश्ते व ज़िम्मेदारियां जुड़ी हुई हैं। जिसमें उन्हें घर-परिवार,पारिवारिक खेती और अब प्रधानी के कार्य को संभालना होता है। सामाजिक व स्वयं द्वारा किये गए चुनाव को वह हमेशा परिपूर्ण करने की कोशिश करती हैं। कई बार इन सभी ज़िम्मेदारियों और रिश्तों को वह पूरी कर पाती हैं और कई बार नहीं।

वह सुबह 4 बजे उठकर घर के सारे काम जैसे बर्तन, चूल्हा-चौका, बच्चों को तैयार करना, नाश्ता सब बनाना इत्यादि करती हैं। फिर जिस दिन मीटिंग रहती हैं 10 बजे घर से निकल जाती हैं नहीं तो किसी-किसी गांव में जाती हैं। गांव की समयस्याओं को देखती हैं। घर आने के बाद शाम को खेत भी जाती हैं और खेती का भी काम करती हैं।

प्रधान बनने के बाद ज़्यादा कुछ बदलाव नहीं आया। पहले की तरह घर और खेत और अब प्रधानी से जुड़े कार्य भी करती हैं।

गांव-घर के सपोर्ट ने दी राजनीति में राह

खुद को राजनीति से जोड़ते हुए कहती हैं, ‘यह सफर मेरे लिए कठिनाइयों से भरा हुआ था लेकिन परिवार का स्पोर्ट मिला। गांव का स्पोर्ट मिला जिसकी वजह से मैं प्रधान बनी हूँ।’ बतातीं, 2021 में 30 वोटों उन्हें जीत मिली थी। अब वह जीत तो गई थीं लेकिन ज़्यादा पढ़े-लिखे न होने की वजह उनमें यह डर रहता कि वह सारे काम कैसे करेंगी। कभी अधिकारियों से बात नहीं की थी। कभी लोगों के बीच बोलै नहीं था। सब सोचकर ही डर लगता था।

ऐसे में घर वालों ने खूब हिम्मत दी। कहते,’तुम तेज़ तरार हो, समझदार हो। तुम प्रधान बन जाओगी तो अच्छा रहेगा। गांव में विकास नहीं है, विकास भी हो जाएगा।’ आगे कहतीं, अगर गांव के लोग सपोर्ट करते हैं तो चुनाव में लड़ना या राजनीति में आना सही रहता है।

उनसे पहले आज तक उनके गांव में कोई महिला प्रधान नहीं बनी हैं। जितने भी प्रधान बने, सब पुरुष प्रधान थे।

चुनौतियों के साथ प्रधान की ज़िम्मेदारियां

प्रधान के रूप में वह गांव के विकास से जुड़े कार्यों में संलग्न रही हैं। कहती हैं, सरकार द्वारा थोड़ा बजट कम करने की वजह से काम में दिक्कत आती है। उन्होंने अपने दो साल के प्रधानी के दौरान पांच पात्र लोगों को पीएम आवास दिलाये हैं। 15 लोगों का वृद्धा पेंशन, 7 लोगों का विधवा पेंशन व 5 लोगों का विकलांग पेंशन बनवाया है। इसके अलावा उन्होंने अमृत सरोवर प्रस्ताव जो पास हुआ है, उसके लिए भी प्रस्ताव भेजा है।

ब्लॉक द्वारा चलाये गए स्वयं सहायता समूह के ज़रिये महिलाओं को जोड़ा जाता है। उन्हें काम शुरू करने हेतु कम ब्याज़ पर पैसे के रूप में मदद की जाती है।
इसके अलावा जल जीवन मिशन के तहत हर घर जो टोटी लगने का काम शुरू हुआ, उसके लिए उन्होंने दस महिलाओं का चयन किया है। 5 महिलाएं विजयपुर से हैं और 5 महिलाएं नाहरपुर राजस्व से जुड़ी हुई हैं। इन महिलाओं को पानी की जांच का काम सौंपा दिया गया है।

उन्होंने अपने गांव में पेड़ लगाना, सड़क बनवाना व शौचालय बनवाने का भी काम किया। यह सब किसी भी गांव के विकास का मूल आधार है।

अपनी चुनौतियों को लेकर वह बताती हैं, उनके गांव विजयपुर सहजरा में तेरह पुरवा (छोटे-छोटे गांव) हैं। वहां 5 से 6 पुरवे में सड़क का निर्माण होना बेहद ज़रूरी है। बजट सिर्फ दो के लिए आया। ऐसे में उनके सामने यह मुश्किल होती है कि वह कौन से गांव के सड़क का निर्माण करवाए और कौन से गांव का न करवाएं। ऐसे में उन्हें यह भी सुनने को मिलता है कि प्रधान में जानबूझकर नहीं बनवाया। कई बातें भी सुनने को मिलती हैं।

सभी चुनौतियों, पारिवारिक, कार्यकारी व समाज द्वारा महिला के रूप में थोपी गई ज़िम्मेदारियों को लेकर उनका हमेशा यही प्रयास रहता है कि वह अपने काम को बेहतर तौर पर निभा पाएं। यहां सपोर्ट भी उनकी चुनौती है और ज़िम्मेदारियाँ भी।

इस खबर की रिपोर्टिंग कुमकुम यादव द्वारा की गई है। 

 

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