खबर लहरिया Hindi Madhya Pradesh, Simhastha 2028 : उज्जैन में भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों का विरोध प्रदर्शन

Madhya Pradesh, Simhastha 2028 : उज्जैन में भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों का विरोध प्रदर्शन

मध्यप्रदेश के उज्जैन में कई हज़ार किसान ट्रैक्टरों पर सवार होकर सिंहस्थ-2028 के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन कल मंगलवार 16 सितम्बर 2025 को भारतीय किसान संघ (बीकेएस) द्वारा आयोजित किया गया है। यह रैली आगर रोड स्थित सामाजिक न्याय परिसर से शुरू हुई थी।

फोटो साभार : सोशल मीडिया

 

देश में भूमि अधिग्रहण का मुद्दा काफी गंभीर है। कई बार अपने भूमि अधिकार के लिए किसान सड़कों पर उतरे हैं और इसके खिलाफ आवाज उठाई है।

उज्जैन में सिंहस्थ-2028 के लिए भूमि अधिग्रहण

मध्यप्रदेश में किसानों ने सिंहस्थ-2028 के लिए प्रस्तावित भूमि पूलिंग योजना के विरोध में प्रदर्शन रैली की। उज्जैन के आसपास के लगभग 20 गाँवों के किसानों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। 5,000 से अधिक किसान सैकड़ों ट्रैक्टरों पर सवार होकर इकट्ठा हुए। प्रदर्शन में शामिल किसानों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगे पूरी नहीं की गई तो वे दूध और सब्जियों की आपूर्ति बंद कर देंगे

आपको बता दें कि किसान भारतीय जनता पार्टी की राज्य सरकार की उस योजना का विरोध कर रहे हैं, जिसमें सिंहस्थ के लिए स्थायी कंक्रीट कुंभ शहर के निर्माण के लिए लगभग 2,400 हेक्टेयर भूमि ली जा रही है। इसमें अधिकतर कृषि भूमि है जिसे स्थायी रूप से अधिग्रहित किया जाना है।

सिंहस्थ-2028 क्या है?

सिंहस्थ 2028 एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक मेला (कुंभ मेला) है, जो वर्ष 2028 में उज्जैन (मध्य प्रदेश) में आयोजित होगा। यह हर 12 साल में एक बार उज्जैन में होता है। इसे “सिंहस्थ कुंभ मेला” इसलिए कहते हैं क्योंकि जब बृहस्पति (गुरु ग्रह) सिंह राशि में आता है, तब उज्जैन में यह मेला लगता है।

अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार रैली में आए किसानों का कहना है कि सिंहस्थ के लिए किसानों से जमीन लेकर स्थायी निर्माण किया जा रहा है। सरकार के पास विकल्प है जिसके लिए अस्थायी व्यवस्थाएं की जा सकती हैं। किसानों की मांग है कि वे अपनी जमीन का 11 साल तक उपयोग करें और केवल सिंहस्थ के लिए एक साल के लिए जमीन उपलब्ध करा दें। किसान संघ के राष्ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा कि सिंहस्थ के लिए सुविधाएं बनाई जाएं, लेकिन वे स्थाई ना हों। हम लैंड पुलिंग सहित 16 सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

फोटो साभार : सोशल मीडिया

प्रदर्शन को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने स्थिति को देखते हुए कहा कि वे किसानों के साथ बातचीत के लिए तैयार है। उन्होंने यह सपष्ट किया सिंहस्थ के लिए प्रस्तावित विकास कार्य आगे बढ़ाएंगे।

मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा, ‘‘राज्य सरकार का किसानों को नाराज करने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन हम यह भी सुनिश्चित करेंगे कि सिंहस्थ के लिए विकास कार्य प्रभावित न हो।’’

यह मामला सिर्फ भारत में एक हिस्से का नहीं है बल्कि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ राज्यों में भी किसान और आदिवासी लोगों की जमीन विकास के नाम पर सरकार उनसे छीन रही हैं। दशकों से रह रहे लोग और किसान उस जमीन के मालिक होते हैं लेकिन अचानक सरकार योजनाओं, परियोजनाओं, एक्सप्रेस वे, पावर प्लांट के नाम पर उन जमीनों को मुआवजे के तर्ज पर ले लेती है। इसके पीछे की सच्चाई यही है कि भूमि अधिग्रहण में गई उनकी जमीन का मुआवजा उन्हें कभी मिलता नहीं और यदि मिला भी हो तो कम मिलता है। भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दों पर खबर लहरिया ने जमीनी रिपोर्टिंग की और उन लोगों से बातचीत की जिनकी जमीनें विकास में चली गई।

वाराणसी में किसानों का भूमि अधिग्रहण

हाल ही में 1 सितम्बर 2025 को वाराणसी जिले के शास्त्री घाट पर सैकड़ों किसानों और मजदूरों ने विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन संयुक्त किसान मजदूर मोर्चा उत्तर प्रदेश पिंडरा काशी द्वारा आयोजित किया गया। इसमें प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगें भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता, मुआवज़ा और बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण को लेकर थीं।

वाराणसी: किसानों का भूमि अधिग्रहण और महंगाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

वाराणसी जिला के पिंडरा तहसील क्षेत्र के परगना कोलअसला में कशीद्वार भूमि विकास गृह स्थान एवं बाजार योजना के नाम स्थल बाजार योजना और लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा विस्तार परियोजना के लिए किसानों की ज़मीनें बिना मुआवज़ा दिए ली जा रही हैं।

स्थानीय किसानों का आरोप है कि प्रशासन द्वारा जबरन भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है, जिससे उनके जीवन पर सीधा असर पड़ रहा है।

बुंदेलखंड में बाँदा- एक्सप्रेस-वे लिए भूमि अधिग्रहण

खबर लहरिया की अक्टूबर 2020 में गई रिपोर्ट में सामने आया कि सरकार ने बुंदेलखंड को बड़े शहरों से जोड़ने और विकसित बनाने के लिए बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे की शुरुआत की। आपको लग रहा होगा यह तो अच्छी बात है, लेकिन बडोखर खुर्द ब्लाक गांव हथौड़ा के अशरफ बताते हैं कि वह एक किसान हैं और कृषि पर ही निर्भर थे। जब से यह बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे बनने लगा और इसमें उनकी 6 बीघे जमीन चली गई, तब से उनका तो काम ही खत्म हो गया। अभी तक एक रुपए मुआवजा नहीं मिला लेखपाल द्वारा यह कह दिया गया था कि आप की जमीन अधिग्रहण मैं चली गई है।

छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों के लिए भूमि अधिग्रहण

छत्तीसगढ़ के कोरबा में कोयल खदानों के लिए कई लोगों की और किसानों की जमीन का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन इसके बदले में उन्हें सरकार द्वारा किसी तरह का मुआवजा तक नहीं दिया जाता। खबर लहरिया की मार्च 2025 में की गई जमीनी रिपोर्टिंग में इसकी सच्चाई सामने आई। इस वीडियो में आप देख सकते हैं, सुन सकते हैं और महसूस कर सकते हैं उस दर्द को जिनकी जमीन छीन ली जाती है। आइए देखें कि 2008 से अब तक क्या हो रहा है, जो आज भी जारी है।

खनन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण अक्सर खनन शुरू होने से 10-20 साल पहले किया जाता है, जिससे स्थानीय समुदायों, खासकर किसानों और आदिवासी जनजातियों के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

मध्यप्रदेश और छतरपुर में भूमि अधिग्रहण

मध्यप्रदेश के पन्ना और छतरपुर जिले के कई गांव के किसानों की खेती केन बेतवा गठजोड़ परियोजना के डूब क्षेत्र में जा रही है। इस बात से किसान बहुत ज्यादा चिंतित है। किसानों के चेहरे की मायूसी बता रही है कि उनकी जो खेती है जिसमें वह फसल उगाते हैं वह कितनी ज्यादा अच्छी पैदावार देने वाली है और जब डूब जाएगी तो उनकी क्या स्थिति होगी।

कोयला खनन (Coal Mining) की भेंट चढ़ती आदिवासी ज़मीनें

2023 में भारत सरकार द्वारा कोयला खनन के लिए पिछले पांच वर्षों 2017-22 के दौरान जारी किया गया अधिग्रहित भूमि डाटा के अनुसार लगभग 8835 किसानों से 2990.850 ha जमीन खनन के लिए ली गई। जिंदल और अडानी जैसी बड़ी कंपनियों के आने के बाद इस क्षेत्र में उन्होंने लाखों हेक्टेयर जल,जंगल और जमीन पर कब्जा जमा लिया है। तब से लेकर आज तक यहां के सैकड़ों गांव और लाखों ग्रामीण आदिवासी विस्थापन, पुनर्वास, मुआवजा बेरोजगारी, संस्कृति की लूट और प्रदूषण की समस्या झेल रहे हैं।

खबर लहरिया की सितम्बर 2024 की रिपोर्ट में सामने आया कि रायगढ़ जिले के तमनार तहसील के अन्तर्गत आने वाला नगरा मुंडा, जहां जिंदल कंपनी की एक बहुत ही बड़ी कोयला खदान है। इस जगह पर कोल माइनिंग का काम होता है | जिंदल कंपनी ने इस गांव को विकास और पानी के नाम पर गोद लिया था, लेकिन अब इस गांव के विस्थापन की बात चल रही है।

किसानों के लिए उनकी जमीन ही सबसे बड़ी सम्पति होती है। यह वो जमीन होती है जो उनके पूर्वजों की निशानी होती हैं या फिर वो जमीन जो उन्होंने खुद मेहनत मजदूरी कर के जमीन को ख़रीदा था, जहां वह दशकों से खेती करते आ रहे थे और उनके घर थे। यही जमीन उनके परिवार चलाने, रोजगार और यहां तक की शादी ब्याह में गिरवी रखने के काम आती है, लेकिन जब ये उनके अधिकार से चली जाती है तब वे खुद को असुरक्षित और टूटा हुआ महसूस करते हैं। इस दर्द पीड़ा को वही समझ सकते हैं सरकार इस दर्द का अंदाजा नहीं लगा सकती।

ये लड़ाई देश में भूमि अधिकार और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आज तक चलती आ रही है। कई सामाजिक संगठन इस लड़ाई को सफल बनाने में मजबूती से लगे हुए हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक ये लोग जमीन के लिए सड़कों पर उतरते रहेंगे और उनकी जमीन इसी तरह विकास के नाम पर छीनी जाती रहेगी?

 

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