खबर लहरिया जिला सीधी पेशाब काण्ड: कारण बंधुआ मजदूरी भी ?

सीधी पेशाब काण्ड: कारण बंधुआ मजदूरी भी ?

मध्य प्रदेश क्षेत्र में कई आदिवासी परिवार भूमिहीन हैं, जो जिमीदार किसानों के पास हरवाही के रूप में काम करते हैं व जिन्हें तिहैयाक्षरुप में किसानों से फसल का कुछ हिस्सा उन आदिवासी परिवारों को मिलता है, जो उन्हें जमीन पट्टे पर देते हैं। इसके तहत किसानों द्वारा उगाई जाने वाली उपज का दो-तिहाई हिस्सा जमीदारों को देना पड़ता है और उसे तिहैया कहते हैं।

मध्य प्रदेश के सीधी जिले के कुबरी गांव के रहने वाली सुशीला आदिवासी कहती हैं कि वह और उनके पति किसानों के यहां काम करते हैं। उन्हें खेत में दिन-रात मेहनत करके उगाई गई फसल का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा ही मिल पाता है जिससे वह अपना परिवार चलाती हैं। यह काम उनके ससुर बाबा भी करते थे और अब वह भी कर रहे हैं।

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55 वर्षीय आदिवासी राम केदार बताते हैं कि वह भी खेती करते है जमींदार किसान के यहां क्या करें? यही उनकी जिंदगी है। उसी से तिहाड़ हिस्सा मिल गया उससे परिवार चलाते हैं। तिहैया किसान एक गरीब, भूमिहीन किसान हैं जो गांव में ही जमींदारों के खेतों में काम करते हैं। वे जमींदार से जमीन का एक टुकड़ा लेते हैं और वहां फसल उगाते हैं। इसमें से उन्हें केवल एक-तिहाई फसल अपने पास रखने या बेचने की अनुमति होती है। बाकी की फसल उन्हें जमींदार के पास जमा करना पड़ता है।

यह कोई लिखित नहीं ज़ुबानी काम होता है जिसके ज़रिये अक्सर बंधुआ मजदूर मतलब (तिहैया किसानों) को कर्ज के जाल में फंसा दिया जाता है। पीढ़ियों से ये भूमिहीन किसान कर्ज के जाल से बच नहीं पा रहे हैं। उदाहरण के लिए कुबरी करौंदी गांव में लगभग 35% तिहैया किसान हैं, जो जिमीदारों के खेतों में जीवन भर से कड़ी मेहनत करते आ रहे हैं लेकिन वे भी अपनी अगली पीढ़ी के लिए अभी तक कुछ नहीं कर सके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ना तो उनके पास इतना पैसा है और ना ही कोई दूसरा रोजगार इसलिए उनके बच्चे भी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। फिलहाल कुछ लोग थोड़ा बहुत पढ़ाते-लिखाते हैं और अब नई पीढ़ी जो हो रही है वह इन कामों को ना करके आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है पर फिर भी उनमें से 35 में पांच प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे।

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भीम आर्मी के जिला महासचिव कहते हैं कि आदिवासी परिवारो का बंधुआ मजदूरी मतलब तिहैया में काम करने के आड़ में शोषण भी बहुत होता है। सीधी एक पिछड़ा क्षेत्र है, जहां जमींदारों द्वारा कई बंधुआ मजदूरों का जो किसानी करते हैं उनका लगातार शोषण किया जाता है। जमीन पर फसल उगाने के अलावा बंधुआ बने आदिवासी परिवारों को जिमीदारों के बाड़ बनाने और मरम्मत करने, मवेशियों की देखभाल करने का काम भी करना पड़ता है।

कुबरी गांव के सरपंच गंगा प्रसाद साहू ने बताया कि अब उस तरह का बंधुआ मजदूरी का काम नहीं होता है जो काम जिसको पसंद आता है वह लोग करते हैं। हां, कुछ लोग किसानों के यहां काम करते हैं उसमें उनका करार होता है कि कितना लेंगे वह उसी आधार से काम करते हैं। मनरेगा का काम उनके यहां ठीक ठाक चलता है और समूह द्वारा भी लोगों को काम दिलाने की कोशिश की जा रही है।

 

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