भारत मे निर्मित भारत बायोटेक कोवाक्सिन ट्रायल अपने तीसरे चरण पर पहुँच गया है। ऐसे में मध्यप्रदेश के भोपाल के रहने वाले लोगों का आरोप है कि पीपल्स कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसीस एंड रिसर्च सेंटर के लोगों ने उन्हें वैक्सीन के ट्रायल के लिए बुलाया। लेकिन उन्हें साफ़ तौर पर ट्रायल के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया।
वैक्सीन ट्रायल को लेकर यह है लोगों का कहना
– भोपाल के रहने वाले मज़दूर जितेंदर नरवरिया बताते हैं कि उन्हें 10 दिसंबर 2020 को कोरोना की वैक्सीन लगी थी। लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया था कि उन्हें कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही है। जितेंदर का कहना है कि उनके मोहल्ले में पीपल्स कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसीस एंड रिसर्च सेंटर की तरफ से गाड़ी आई थी और उसी की मदद से वह अपने दोस्तों के साथ क्लिनिक पहुँच गए। वह कहते हैं कि मोहल्ले में आई गाड़ी से स्पीकर से खांसी, जोड़ों का दर्द, टीका आदि की बात की जा रही थी। यह कहा जा रहा यह कि टीका लगने से किसी भी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि व्यक्ति का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो जाएगा। साथ ही उनसे कहा गया कि उन्हें उनकी मज़दूरी और छुट्टी के लिए 750 रूपये भी दिए जायेंगे। यह सोचकर वह अस्पताल चले गए।
लेकिन जब वह टीका लगाकर घर पहुंचे तो उनकी तबयत खराब हो गयी। उन्हें ठण्ड लगने लगी, उल्टी हुई और बुखार भी हो गया। फिर जब वह अपनी तबीयत की जांच के लिए अस्पताल गए तो उन्हें 450 रुपए का बबिल हाथ में थमा दिया गया।
– भोपाल के शंकर नगर में रहने वाले निवासी विक्की का कहना है कि उन्हें यह कहकर ले जाया गया कि कोरोना वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। अगर पहला टीका लगाने के बाद सब सही रहता है तो उसे दूसरा टीका लगाया जाएगा। जब वह अस्पताल पहुंचा तो उसे पहले एक फाइल में हस्ताक्षर करने को कहा गया लेकिन अस्पताल की तरफ से किसी भी तरह का सहमति पत्र नहीं भरवाया गया। विक्की के अनुसार उसे अस्पताल मे तकरीबन पांच से छह घंटे लगे। अस्पताल द्वारा उसे 750 रूपये दिया गया और फिर उसे 13 जानवरी को दोबारा आने को कहा गया।
– शंकर नगर के रहने वाले मज़दूर छोटा दास बैरागी ने बताया कि उन्होंने 6 दिसंबर 2020 को कोरोना का टीका लगवाया था। अस्पताल की तरफ से उन्हें दो दिन बाद फिर बुलाया गया और कहा गया कि उनमें कोरोना के लक्षण पाए गए हैं। फिर उन्हें अस्पताल द्वारा 3 जनवरी को दोबारा बुलाया गया और उनका एक्सरे किया गया। कहा गया कि उनका एक्सरे और दवाई में मुफ्त दी जाएगी। उससे कहा गया कि अब उसे कोरोना नहीं है और वह बिलकुल ठीक है। उसे दूसरा टीका नहीं लगेगा। यह कहकर उसे वापस भेज दिया गया।
वैक्सीन का टीका लगाने के बाद जितेंद्र, विक्की और छोटा दास, तीनों को वैक्सीन ने प्रभावित किया। फिर भी अस्पताल द्वारा किसी भी सही प्रकार से ना तो जांच की गयी और ना ही कोई रिपोर्ट दी।
गैस प्रभावित क्षेत्रों के लोगों का किया ट्रायल
गैस प्रभावित बचे लोगों के साथ काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नसरीन ने दावा किया कि भोपाल में कोवाक्सिन परीक्षण का हिस्सा बनने वाले 1,000 लोगों में से लगभग 70-80% स्वयंसेवक गैस पीड़ित कॉलोनियों जैसे शंकर नगर, टाइमर बाजार, उदिया बस्ती, गरीब नगर, जेपी नगर और शिव शक्ति नगर से हैं।
1984 में भोपाल में जहां सबसे बड़ी गैस त्रासदी हुई थी, पीप्लस अस्पताल वहां से सिर्फ 4 किमी. की दूरी पर है। साथ ही यह भी कहा गया कि अस्पताल द्वारा जान–बूझकर गैस त्रासदी स्थित क्षेत्र के लोगों को कोरोना वैक्सीन के ट्रायल के लिए चुना गया।
लोगों से नहीं लिया गया सहमति पत्र
भोपाल एक्शन फ़ॉर इनफार्मेशन ग्रुप की रचना ढींगरा दावा करती हैं “कोवाक्सिन मुकदमे के संचालन के लिए नियम पुस्तिका में शामिल हर एक कानून की भोपाल में अनदेखी की गई है। पहले उन्होंने मुफ्त चिकित्सा जांच और 750 रुपये देने की पेशकश करके हाशिए पर जाने वाले वर्ग को लालच दिया। बाद में, परीक्षण के दर्जनों प्रतिभागियों ने शिकायत की है कि न तो उन्हें कोविड -19 टीका परीक्षण के बारे में जानकारी दी गई और ना ही उन्हें सहमति पत्र की हस्ताक्षर की कॉपी दी गई है।
पीपल्स अस्पताल के डीन का यह है कहना
द क्विंट की 7 जनवरी 2021 कि रिपोर्ट में पीपल्स हॉस्पिटल के डीन, एके दीक्षित ने अपनी ओर से कॉलोनियों में वाहन भेजने और मुफ्त स्वास्थ्य जांच के साथ लोगों को लुभाने के किसी भी दावे को झूठा कहा है।
वह कहते हैं “न तो किसी वाहन को भेजा गया और न ही लोगों को लुभाने के लिए की गई घोषणा के लिए कोई पैम्फलेट वितरित किया गया। हमने अस्पताल के 4 किलोमीटर के दायरे में परीक्षण के लिए प्रचार– प्रसार करने के लिए एक टीम बनाई है और सभी प्रोटोकॉल का पालन किया गया है। अब तक हमने समाज के सभी वर्गों के 1,750 लोगों को पंजीकृत किया है और हम उन प्रतिभागियों की देखभाल कर रहे हैं जो कोवाक्सिन टीका लगाने के बाद बीमार महसूस कर रहे हैं। ”
जब प्रतिभागियों से सहमति पत्र देने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया कि “दिशानिर्देशों के अनुसार, हमें प्रतिभागियों से सहमति सौंपने के लिए कहा गया है यदि वे मांग करते हैं, तो हम उन्हें देंगे। लेकिन हम उन लोगों को सहमति फॉर्म दे रहे हैं जो वैक्सीन का दूसरा टीका लगाने के लिए आ रहे हैं। “
लेकिन अभी भी सवाल यही है कि लोगों को कोवाक्सिन के टीके और उससे शरीर पर हो रहे है प्राभावों कि बारे में साफ़ तौर पर क्यों नहीं बताया गया? कोरोना टीके के लिए गैस त्रासदी क्षेत्र के लोगों को ही क्यों चुना गया? क्या इस तरह से ज़मीनी स्तर कोवाक्सिन कामयाब हो पाएगी?