दिल्ली के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में लगभग हर तीन में से एक वेंटिलेटर काम नहीं कर रहा है, सिर्फ वेंटिलेटर ही नहीं, बल्कि कई अहम मशीनें भी काम नहीं कर रही हैं। इसका खुलासा हाल ही में जारी की गई RTI रिपोर्ट में हुआ। इस बात को दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री पंकज सिंह ने भी स्वीकारा है। इसकी जानकारी इंडिया टुडे की रिपोर्ट में सामने आई।
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। सरकारी अस्पतालों में भले इलाज मुफ्त में होता है या कम पैसों में होता है, लेकिन लोगों को इसके लिए लम्बी लाइनों और तारीखों का इतंजार करना पड़ता है। अस्पताल में ही इधर से उधर कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। यह हाल सिर्फ दिल्ली का ही नहीं देश के अधिकतर सरकारी अस्पतालों का है। यूपी और बिहार में भी अस्पतालों की यही स्थिति है। इसकी जमीनी सच्चाई खबर लहरिया की रिपोर्ट में सामने आई।
दिल्ली के इन अस्पतालों में मशीनें और RTI वेंटिलेटर ख़राब – RTI की रिपोर्ट
लल्लन टॉप की रिपोर्ट द्वारा इंडिया टुडे की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज (MAMC), लोक नायक अस्पताल (LNJP), दीन दयाल उपाध्याय, लाल बहादुर शास्त्री और सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर की मशीनें ख़राब हैं। इसकी जानकारी RTI के जरिए सामने आई है। रिपोर्ट में यह भी समाने आया कि 297 वेंटिलेटरों में से 92 काम नहीं कर रहे हैं।
सफदरगंज अस्पताल में एक बेड पर दो मरीज, वीडियो वायरल
हाल ही में सोशल मीडिया पर सफदरगंज अस्पताल का वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में एक लड़की ने दिखाया कि अस्पताल में किस तरह मरीज ज़मीन पर बैठे हुए हैं। एक बेड पर दो मरीजों को भर्ती किया गया है। लड़की आरोप लगा रही है कि उसकी माँ को इलाज के लिए अस्पताल में लाया गया पैसे लिए लेकिन बेड नहीं मिला। उनका कहना है कि यदि अस्पताल में भर्ती के लिए जगह नहीं है तो क्यों पैसे लेकर भर्ती किया जाता है?
दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल की बदहाल स्थिति,मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी कृपया संज्ञान लें#truemimansa #safdarganj #delhi #cmrekhagupta pic.twitter.com/4ilX16JSm5
— Mimansa (@TrueMimansa) October 7, 2025
वीडियो बनाने पर बिना इलाज करे ही, माँ को किया डिस्चार्ज
वीडियो तेजी से वायरल होने के बाद लड़की की माँ के साथ अस्पताल के स्टाफ ने बहस की और कथित तौर पर बिना इलाज किए लड़की की माँ अस्पताल से छुट्टी दे दी। आप वीडियो में देख सकते हैं।
एक बेटी को भारी पड़ गया, जिसका भुगतान उसे इस कदर चुकाना पड़ा की उसकी माँ को बिना इलाज किये ही डिस्चार्ज कर दिया गया.#Safdarganj #Delhi
मुख्यमंत्री @gupta_rekha जी संज्ञान मे लें. pic.twitter.com/r0v3EP7LyS#BiharTeachersMatter#BiggBossTamil— AftabAhmed (@aftabahmed06) October 5, 2025
यूपी में भी अस्पताल की हालत ख़राब – ग्राउंड रिपोर्ट
खबर लहरिया की जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग भी कुछ इसी तरह की सच्चाई दिखाती है। जनवरी 2025 में सामने आया था कि बांदा जिले के जिला अस्पताल में सिटी स्कैन मशीन पिछले दो महीने से खराब पड़ी थी जिससे मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। मुफ्त में मिलने वाली इस सुविधा के अभाव में मरीज प्राइवेट सेंटरों पर 2500 रुपये तक खर्च करने को मजबूर हुए थे।
अब आप ही सोचिये गरीब इंसान कहां जाए? उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वो प्राइवेट में इलाज करवा सके इसलिए सरकारी अस्पताल उनके लिए आखिरी उम्मीद होती है। ऐसे में जब सरकारी अस्पताल में ही मशीनें ख़राब हो तो इलाज के लिए कर्जा मांग कर इलाज कराने के लिए प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ता है।
बिहार के अस्पताल में भी अल्ट्रासॉउन्ड के लिए लोग परेशान
खबर लहरिया की नवम्बर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के पटना में स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पटना (एम्स पटना) / AIIMS Patna में सबसे बड़ी समस्या अल्ट्रासाउंड को लेकर थी। यहां हर व्यक्ति को जो अल्ट्रासाउंड के लिए डेट मिलती है वह तीन महीने बाद की होती है। चाहे इंसान कितने ही दर्द में क्यों न हो उसे बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाना पड़ता है क्योंकि अस्पताल के अपने नियम हैं जिनके अनुसार वे नहीं चलते। इससे आम जनता को काफी परेशानी होती है। अंदर अल्ट्रासाउंड 300 रुपये में होता है जबकि बाहर वही अल्ट्रासाउंड 1500 रुपये में। इससे लोगों को लगता है कि जब हर चीज बाहर से ही करवानी है तो क्यों न सीधे प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवा लिया जाए लेकिन जब मामला ज्यादा गंभीर होता है तो लोग AIIMS में ही आते हैं क्योंकि यहाँ का इलाज अच्छा होता है।
AIIMS Patna: पटना के एम्स अस्पताल की सुविधा और लोगों की समस्या
दिल्ली में दूर दूर से लोग इलाज करवाने आते हैं इसी उम्मीद से कि यहां से वे स्वस्थ होकर जायेंगे लेकिन जब इस तरह के आंकड़ें सामने आते हैं तो सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर चिंता और बढ़ जाती है। यूपी और बिहार में भी सरकारी अस्पतालों की कहानी कुछ अलग नहीं है बस फर्क इतना है कि इस तरह के आंकड़ें सामने नहीं आये हैं, लेकिन यदि ज़मीनी स्तर पर इसकी जाँच की जाए तो इसी तरह के आंकड़ें सामने निकल कर आ सकते हैं।
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