टीकमगढ़ जिले के गांव मातौली में बुंदेली कलाकार राजू कुशवाहा रहते हैं। उनका कहना है कि वह 20 सालों से गायकी कर रहे हैं। पहले उनके दादा गाते थे तो वह भी उनसे ही सीखते थे। इसी तरह उन्हें गाने का शौक हुआ।
वह कहते हैं कि वह बुंदेलखंड में सभी जगह गा चुके हैं। जैसे, शिवपुरी,सागर सिहोर, इंदौर,ललितपुर आदि। वह सभी प्रकार के बुंदेली गीत संगीत गाते हैं। धार्मिक, शादी विवाह गीत,भजन, लोक गीत,सोहरे, धार्मिक राई इत्यादि। बुंदेलखंड में बहुत तरह की प्रथा है। जैसा माहौल रहता है उसी तरह से गीत गाते हैं। वह चाहते हैं कि वह अपनी कला के माध्यम से बुंदेली भाषा और गाने को देश-विदेशों तक लेकर जाए।
उनकी एक पार्टी में लगभग 8 से 9 लोग रहते हैं। एक ढोलक वाला, हारमोनियम और झेला वाला, एक गायिका लेडिज और एक कलाकार आदि। वह कहते हैं कि पहले और अब में अंतर आ गया है। पहले हज़ार- दो हज़ार रुपये मिलते थे लेकिन आज की स्थिति में 20- रुपये मिल जाते हैं। जितने पास या दूर का कार्यक्रम मिलता है उसी हिसाब से पैसा लेते हैं। सबसे ज्यादा प्रोग्राम गर्मियों में मिलते हैं। वैसे तो बारह महीने प्रोग्राम मिलते रहते हैं।
वह सभी गीत-संगीत गानों वालों से यही कहना चाहते हैं कि, ‘हमारी बुंदेली जो भाषा है उसको आगे बढ़ाएं। जो बुंदेलखंड में जो परंपरा, प्रथायें हैं उनको साथ लेकर चलें और मर्यादा से गायें ताकि उस गीत-संगीत को हमारे परिवारिक लोग सुन सकें।
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