जल संरक्षण के नाम पर बांदा का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हो चुका है, फिर भी बुंदेलखंड की प्यास नहीं बुझ रही। बरसात के मौसम का आधा समय निकल गया। ढंग की बारिश नहीं हुई। बारिश को छोडिये प्यास बुझाने के लिए पानी का जुगाड़ करना बताने के लिए काफी है। जो समस्या पानी को लेकर सालों साल से चली आ रही हैं वहीं आज भी हैं। लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड न लोगों की प्यास बुझा पाई और न ही खेतों की। हां रिकार्ड लेने वालों की भूख सम्मान लेने के लिए जरूर बढ़ती जा रही है।
फिर से मिला जल के लिए सम्मान
27 जुलाई 2020 को बांदा जिले के पूर्व डीएम व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर निदेशक हीरालाल और जखनी गांव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय को फिर से सम्मानित किया गया। ‘रजत की बूंदे’ राष्ट्रीय जल पुरस्कार लखनऊ में प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक सिन्हा ने कार्यालय कक्ष सभागार में उन्हें यह सम्मान सौंपा। कृषि उत्पादन आयुक्त ने बताया कि नीर फाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला यह पुरस्कार जल एवं पर्यावरण क्षेत्र में अहम योगदान करने वालों को हर वर्ष दिया जाता है। बांदा जिले में डीएम रहते हुए हीरालाल ने पारंपरिक जल स्रोतों के उन्नयन और जल संचय के प्रति लोगों को काफी जागरुकता पैदा करने के प्रयास किए।
रिकार्ड बनाने की जरूरत क्यों होती है?
जब सम्मान की भूख समस्या के समाधान से ऊपर हो जाती है तब वहां पर सिर्फ रिकार्ड बनते हैं, टूटते है और बिखरते हैं लेकिन समस्या का समाधान नहीं होता। रिकार्ड बनते हैं और दर्ज हो जाते हैं आगे आने वाले समय के लिए एक और रिकार्ड बनाने के लिए ‘मील का पत्थर’ बनते हैं लेकिन जमीनी हकीकत तो वहीं की वहीं रह जाती है, क्या इन रिकार्डों से समाज का हित होगा? जैसे बांदा जिले का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हो गया। इससे क्या बुंदेलखंड में पानी की समस्या का हल हो गया? नहीं न, क्योंकि जल संरक्षण के नाम पर रिकार्ड बनाने की होड़ थी।
क्या है लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड
विकिपीडिया से मिली जानकारी के अनुसार लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स भारत में प्रकाशित हर साल छपने या प्रकाशित की जाने वाली वह भारतीय किताब है जो मानव और प्राकृतिक विश्व रिकॉर्डों का दस्तावेजीकरण करती है। मनुष्यों द्वारा हासिल किए गए विश्व रिकॉर्ड को शिक्षा, साहित्य, कृषि, चिकित्सा विज्ञान, व्यवसाय, खेल, प्रकृति, साहसिक, रेडियो और सिनेमा में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के नियमों के साथ वर्गीकृत किया गया है। इसके संपादक वत्सला कौल बनर्जी और प्रकाशक कोका कोला इंडिया है।
लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड बनाने के लिए किए गए ये काम
बांदा जिले में डीएम रहे हीरालाल के कार्यकाल के समय 26 फरवरी से लेकर 25 मार्च 2019 तक चलाए गए कई अभियान में जिले में 2183 हैंड पंपों के आसपास 2605 (समोच्च खाइयों वाले ढांचे ) घेरों का निर्माण किया गया। समोच्च खाइयों का निर्माण किया। इस दौरान 470 ग्राम पंचायतों में 260 कुओं का भी निर्माण किया गया। लोगों में भूजल संरक्षण को लेकर जागरूकता पैदा करने के लिए इस दौरान गांवो में 469 जल चौपाल कार्यक्रम (ग्राम जल संसद) का भी आयोजन किया गया।
रिकार्ड बनवाने की दौड़ में फिल्मी दुनिया के लोग भी रहे शामिल
जल संरक्षण अभियान में सभी अधिकारियों, कर्मचारियों, आम जनता के साथ सामाजिक संस्था वाटर एड, अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान, प्यूपिल इंस्टीट्यूट और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल रहे। इतना ही नहीं हास्य व्यंग्य कलाकार राजू श्रीवास्तव भी इस रिकार्ड में पुरजोर रोल निभाया।
*पानी बचाने के नाम पर ये अभियान*
कुआं-तालाब बचाओ अभियान, केन व यमुना जल आरती, कुआं पूजन, नदी के किनारे गांवों में खिचड़ी भोज भी करवाया।
कालिंजर किले के ऊपर बने तालाब से सीख ले ले लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड
अगर सच में पानी बचाने की चिंता है तो चंदेल कालीन राजाओं के बनाये जल स्त्रोत जैसे कुआं, तालाब, बावली से सीख ले लें। ज्यादा दूर जाने की भी जरूरत नहीं है कालिंजर किले के ऊपर बने तालाब को देख लीजिए, आज कोई इंजीनियर भी वैसा तालाब नहीं बना सकता। तब लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड शब्द पैदा भी नहीं हुआ था। चन्देल राजाओं ने यह सब चमत्कार कैसे किया क्योंकि उनको बुंदेलखंड की भौगोलिक स्थिति पता थी। उनको पैसे और रिकार्ड बनाने का लालच भी नहीं थी, चिन्ता थी तो बस पानी बचाने की।
क्या इस साल भी बुंदेलखंड होगा सूखाग्रस्त
बारिश के डेढ़ महीना से ज्यादा समय बीत चुका है। अभी तक में उतनी बारिश नहीं हुई जिससे कि खेतों की प्यास बुझाई जा सके और खरीफ की फसल तैयार हो सके। क्या कर रहा है यह लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड? बुंदेलखंड के खेतों और लोगों की प्यास एक बार फिर से राजनीतिक खेल में दफन हो गई। क्या कभी बुंदेलखंड भी होगा पानीदार? ठीक वैसे जैसे यहां के लोग खुद को बताते हैं पानीदार।