उत्तरप्रदेश के जिला बांदा में 72 वें गणतंत्र दिवस या 26 जनवरी के शुभ अवसर पर बुंदेलखंड इंसाफ सेना के दर्जनों पदाधिकारियों ने देश के किसानों के समर्थन में देश के प्रधानमंत्री को अपने खून से पत्र लिखा। इसके जरिए वह केंद्र की सोई हुई सरकार को जगाने का प्रयास कर रहे हैं।
कानून रद्द कराने की मांग हेतु लिखा पत्र
बुंदेलखंड इंसाफ सेना के आंदोलनकारी पदाधिकारियों कि केंद्र सरकार से मांग की है कि तीन कृषि काले क़ानूनों को जल्द ही रद्द किया जाए। जिससे देश का किसान अपने खूनी आंदोलन को वापस ले सकें।
बुंदेलखंड इंसाफ सेना के अध्यक्ष एसएस नोमानी ने बताया कि सरकार के कृषि काले कानून के विरोध में किसान कई महीनों से दिल्ली के सिंघु और पलवल बॉर्डर पर आंदोलन में बैठें है। जनवरी के कड़ाके की ठंड में आंदोलन के चलते 72 से 75 किसानों की जाने भी जा चुकी है। लेकिन सरकार ने अभी तक मामले में किसी तरह का कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया है। जिसकी वजह से किसान बहुत परेशान है।
इसलिए उन्होंने 26 जनवरी के दिन अपने खून से पत्र लिखा है क्योंकि इस दिन ही देश को अपना संविधान मिला था। जिसमें आजादी के दौरान यह कहा गया था कि देश का किसान मेहनत की कमाई से खाएगा और खुशहाल रहेगा। उसको खाना, कपड़ा, मकान स्वतंत्र रूप से मिलेगा। वह कहते हैं कि आजादी को दिलाने में बहुत से लोग शहीद हुए थे। इसलिए वह चाहते हैं कि सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानून बिल को जल्द से जल्द खत्म किया जाए और जिससे की देश का किसान मजदूर जो अन्नदाता है वह खुशहाल रह सके।
आंदोलन में शामिल लोग
आंदोलन में मुख्य आंदोलनकारी पदाधिकारी जुगल किशोर, अमित भाई पटेल, राम सिंह, ओम प्रकाश यादव, धर्मेंद्र कुमार, संतोष कुमार, बछराज प्रजापति, सद्दाम शाह, सलमान खान, दिनेश कुमार निषाद, राकेश पाल, धर्मेंद्र कुमार, राम सिंह, राम नरेश पाल, भरत भाई पटेल आदि थे। जिनके द्वारा आंदोलन को पूर्ण स्वरूप दिया गया।
खून से लिखा पत्र, सरकार को जगाता है या नहीं। यह तो कहा नहीं जा सकता। लेकिन इससे यह ज़रूर समझ आता है कि कृषि बिल ने लोगों को खून से पत्र लिखने तक को मजबूर कर दिया। जो यह दिखाता है कि किसान तीन कृषि बिलों को वापस करवाने के लिए अपने खून का हर एक कतरा लगा देने को तैयार है।