छाप छोड़गाँव में मौजूद दलित बस्ती में रह रहे सभी परिवारों को 2016 में मनरेगा में काम मिला था। इन लोगों ने 40 दिन लगातार इस उम्मीद में काम किया था कि इन्हें समय पर वेतन मिलेगा और परिवार का भरण-पोषण हो सकेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ।
उत्तर प्रदेश के ललितपुर ज़िले के ब्लॉक महरौनी के अंतर्गत आने वाले गाँव छाप छोड़ के मज़दूर वर्ग के लोग मनरेगा में काम करने के पैसे न मिलने से परेशान हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इन लोगों ने कई दिन मनरेगा के अंतर्गत मज़दूरी का काम किया था लेकिन अभी तक इन लोगों को काम के पैसे नहीं मिले हैं। इस गाँव में मौजूद दलित बस्ती में रह रहे सभी परिवारों को 2016 में मनरेगा में काम मिला था।
इन लोगों ने कड़ी धूप में इस उम्मीद में काम किया था कि इन्हें समय पर वेतन मिलेगा और परिवार का भरण-पोषण हो सकेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ। इस गाँव में लगभग 40 मज़दूर ऐसे हैं, जिन्हें अभी तक मज़दूरी के पैसे नहीं मिले हैं। ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें मनरेगा के अंतर्गत 1 दिन की मज़दूरी के 201 रूपए मिलनी चाहिए। मज़दूरों का कहना है कि कुछ लोगों ने 10 दिन मज़दूरी करी थी, तो कुछ लोगों ने 15 दिन जिसके पैसे आजतक नहीं आए हैं।
प्रधान ने खाते में पैसे डालने का किया वादा लेकिन फिर भी कुछ नहीं हुआ-
इसी गाँव के रहने वाले कुछ लोगों ने हमें बताया कि यहाँ लोगों को जल्दी कोई भी रोज़गार नहीं मिलता, कुछ लोग काम की तलाश में दूसरे शहरों की ओर पलायन कर लेते हैं लेकिन ज़्यादातर परिवार गाँव में रहते हैं और मनरेगा में काम मिलने की उम्मीद लगाकर बैठे रहते हैं। इन लोगों ने लगभग 5 साल पहले मज़दूरी का काम किया था, इतने सालों बाद भी वेतन न आने की शिकायत ग्रामीणों ने कई बार प्रधान से की है लेकिन वो भी उनकी शिकायत सुनने को तैयार नहीं हैं। कुछ लोगों की मानें तो प्रधान यह कहकर बात टाल देते हैं कि उन्होंने सभी के खाते में पैसे डलवा दिए हैं परन्तु जब ये लोग बैंक में पासबुक लेकर जाते हैं तो वहां पता चलता है कि अभी तक कोई पैसे नहीं आए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गाँव से बैंक भी लगभग 5 किलोमीटर दूर है और हर बार पैदल जाना पड़ता है लेकिन हाँथ निराशा ही लगती है।
गाँव छाप छोड़ की रहने वाली रमा ने हमें बताया कि जिस साल मनरेगा में काम लगा था तब गाँव से करीब 2 हज़ार लोग मज़दूरी करने जाते थे, इसमें छोटे बच्चे भी शामिल होते थे क्यूंकि माँ-बाप बच्चों को घर पर छोड़ने के बजाय अपने साथ काम पर ले जाया करते थे। गर्मी के मौसम में पूरी लगन से इन लोगों ने काम किया था लेकिन जब इन्हें रूपए मिलने की बारी आयी तब प्रशासन ने इनका साथ छोड़ दिया। रमा का कहना है कि ग्रामीणों ने प्रधान के साथ-साथ कई बार अधिकारियों से भी शिकायत की है, उन लोगों ने ग्रामीणों से जानकारी तो पूरी ली और यह वादा भी किया कि जल्द से जल्द मज़दूरी के पैसे मिल जाएंगे लेकिन अभी तक एक पैसा नहीं मिला।
क्या मज़दूरों की मेहनत का नहीं है कोई मूल्य?
छाप छोड़ निवासी कल्लू का कहना है कि मज़दूरों ने महरौनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गाँवों में रोड बनाने और कुँए की मरम्मत करने का काम किया था। वो बताते हैं कि गर्मी के मौसम में कुँए में मिट्टी भरने का काम करना बहुत मुश्किल होता है लेकिन फिर भी मज़दूरों ने इस उम्मीद में काम किया कि उन्हें इस मेहनत का फल मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गाँव के कुछ लोगों ने यह भी बताया कि मनरेगा के अंतर्गत होने वाले काम में रोज़ाना दोपहर में एक घंटे का ब्रेक या लंच का समय मिलना आवश्यक है लेकिन क्यूंकि काम इतना ज़्यादा होता था कि मज़दूर 10-15 मिनट का ही ब्रेक लेकर दोबारा काम पर लग जाते थे। ग्रामीण अब चाहते हैं कि जल्द से जल्द उन्हें उनके काम के पैसे मिल जाएँ, इसके साथ ही इन लोगों ने यह भी ठानी है कि पैसे को लेकर प्रशासन की इस लापरवाही के चलते वो लोग आगे कभी मनरेगा में काम नहीं करेंगे।
प्रधान और बीडीओ कराएंगे मामले की जांच-
गाँव के प्रधान इमरत अहिरवार का कहना है कि उन्होंने अपनी तरफ से तो सभी मज़दूरों के खाते में पैसे डलवा दिए थे लेकिन जिन लोगों को अभी भी पैसे नहीं मिले हैं, उन लोगों की बैंक के खाते की जानकारी निकलवा कर उनको जल्द से जल्द पैसे दिलवाए जाएंगे। प्रधान का कहना है कि सालों से रूपए न मिलने से ग्रामीणों को आर्थिक परेशानी तो हो ही रही होगी, इसलिए वो अपनी पूरी कोशिश करेंगे कि योग्य लोगों को उनके हक़ की रकम दिलवाई जाए।
विकास खण्ड महरौनी के बी डी ओ आलोक कुमार का कहना है कि उनके संज्ञान में अबतक ऐसी कोई बात नहीं आई थी लेकिन अब वो इस मामले की जांच करवाएंगे और जिन लोगों को मज़दूरी के पैसे नहीं मिले हैं, उनके खातों में पैसे डलवाएंगे।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए राजकुमारी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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