गाँव के ज़्यादातर लोग मज़दूरी करके अपना घर चलाते हैं, लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते समय से रोज़गार भी नहीं मिलता है, ऐसे में आवास के लिए प्रधान को हज़ारों रूपए की रकम दे पाना इन लोगों के लिए नामुमकिन है।
जिला ललितपुर के गाँव करमई में आज भी कई परिवार ऐसे हैं जिन्हें सरकारी आवास नहीं मिल पाया है। गाँव के लोगों का आरोप है कि केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मुख्यमंत्री आवास योजना के अंतर्गत गरीब परिवारों को मुफ्त आवास मिलना चाहिए, लेकिन गाँव के प्रधान इमरत अहिरवार इन गरीब ग्रामीणों से 20 हज़ार रूपए की मांग कर रहे हैं। इन लोगों ने कई बार विभाग से आवास देने की भी मांग करी है लेकिन वहां से भी उन्हें किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली है।
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झोपड़ियों में कर रहे गुज़ारा-
इसी गाँव के रहने वाले दिलीप कुमार का कहना है कि गाँव के ज़्यादातर लोग मज़दूरी करके अपना घर चलाते हैं, लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते समय से रोज़गार भी नहीं मिलता है, ऐसे में आवास के लिए प्रधान को हज़ारों रूपए की रकम दे पाना इन लोगों के लिए नामुमकिन है। दिलीप ने बताया कि ज़्यादातर ग्रामीण जुग्गी-झोपड़ियों में रहकर गुज़ारा कर रहे हैं और हर परिवार में 4-6 बच्चे भी हैं। ऐसे में एक साथ इन झोपड़ियों में रह पाना बहुत मुश्किल होता है। इन लोगों ने कई बार ब्लॉक स्तर पर आवास की मांग करी है लेकिन अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई है।
हमने तो पन्नी के नीचे जीवन बिता दिया, लेकिन नहीं देना चाहते बच्चों को यही जीवन
करमई गाँव की रहने वाली खम्मा बाई बताती हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन एक झोपड़ी में रहकर बिता दिया था लेकिन 2 साल पहले भारी भारिश के कारण उनकी झोपड़ी पूरी तरह से नष्ट हो गयी जिसके बाद कई दिन तक तो वो और उनका पूरा परिवार गाँव की ही सड़कों पर बैठे रहे लेकिन फिर कुछ समय बाद उन्होंने पन्नी डालकर रहना शुरू किया।
वो पिछले डेढ़ साल से उसी पन्नी के नीचे जीवन व्यापन कर रही हैं। जाड़ा, गर्मी, बरसात हर मौसम में उन्हें दिक्कत झेलनी पड़ती है लेकिन कोई भी उनकी मदद करने नहीं आता। खम्मा बाई का कहना है कि उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वो दूसरी पन्नी डाल सकें या अपनी मढ़ई की मरम्मत कर सकें।
उन्होंने कई बार गाँव के प्रधान से आवास दिलवाने की मांग करी लेकिन प्रधान का कहना है कि 20 हज़ार रूपए देकर ही वो उनको आवास दिलवाने में मदद कर सकते हैं। खम्मा बाई की मानें तो उन्होंने तो अपना पूरा जीवन पन्नी और झोपड़ी में रहकर बिता दिया लेकिन वो नहीं चाहती कि उनके बच्चों को भी ऐसे ही जीवन बिताना पड़े। वो चाहती हैं कि जब सरकार ने गरीबों के लिए योजनाएं बनाई हैं तो फिर गरीबों को उनका लाभ भी मिलना चाहिए।
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बरसात में होती है सबसे ज़्यादा दिक्कत-
ग्रामीणों ने हमें बताया कि गाँव में किसी प्रकार की सुविधा नहीं मौजूद है, न ही गाँव में सड़कें बनी हैं और न ही पानी के निकास के लिए नालियां बनी हैं। लोगों ने बताया कि ज़रा सी बरसात में इन लोगों की झोपड़ियों में पानी भर जाता है और फिर ग्रामीणों को झोपड़ियों में भरे पानी के बीच में ही बैठकर बर्तन धोने पड़ते हैं, खाना बनाना पड़ता है। ग्रामीणों ने हमें यह भी बताया कि थोड़ी सी ही बारिश में लोगों की झोपड़ियां भी टपकने लगती हैं और भीग जाने से कई बार बच्चे बीमार भी पड़ जाते हैं।
ग्रामीणों की मानें तो न ही कभी कोई अधिकारी यहाँ इन लोगों की शिकायतें सुनने आता है और न ही प्रधान इनकी मांगों की कोई सुनवाई करते हैं। लोगों ने बताया कि जब-जब वोट मांगने का समय आता है तब तो विधायक और नेता हर दिन यहाँ आते हैं लेकिन चुनाव ख़तम होते ही सारे वादों पर पानी फिर जाता है। जहाँ एक तरफ गाँव के विकास की पूरी ज़िम्मेदारी प्रधान के हांथों में होती है लेकिन वहीँ दूसरी तरफ जब प्रधान ही ग्रामीणों से घूंस मांगने लग जाए तो फिर गाँव का विकास कैसे हो सकता है?
प्रधान ने झूठे बताए सभी आरोप-
करमई गाँव के प्रधान इमरत अहिरवार ने ग्रामीणों द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को झूठा बताया है। प्रधान की मानें तो उन्होंने आजतक कभी किसी ग्रामीण से पैसे नहीं मांगें हैं। इमरत अहिरवार ने हमें बताया कि उनके गाँव में 500 परिवार ऐसे हैं जिनको आवास की जरूरत है, जिसके लिए जल्द ही सूची तैयार की जाएगी। प्रधान का कहना है कि सूची तैयार करने के बाद और जांच करने के बाद विभाग को नामों की लिस्ट भेजी जाएगी और जैसे ही बजट पास होगा लोगों को आवास बनवाने की क़िस्त दी जाएगी।
महरौनी ब्लॉक के बी डी ओ सौरभ कुमार का कहना है कि उन्होंने एक हफ्ते पहले ही महरौनी ब्लॉक का कार्यभार संभाला है इसलिए उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। जब हमने इस मामले में पूर्व बी डी ओ से जानकारी लेनी चाही, तो उन्होंने किसी भी प्रकार की जवाबदेही देने से मना कर दिया।
जहाँ एक तरफ ग्रामीण हर रोज़ कठिनाइयों का सामना कर जीवन बिता रहे हैं, वहीँ जो अधिकारी इन लोगों की सहायता कर सकते हैं, वो भी अब किसी भी प्रकार की जवाबदेही देने से कतरा रहे हैं। ऐसे में सवाल तो यह है कि ये गरीब लोग किससे अपने हक़ की मांग करें?
इस खबर को खबर लहरिया के लिए राजकुमारी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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