ललितपुर जिले के महरौनी ब्लाक के जरया गांव में सिर्फ आठवीं तक का ही स्कूल है। आठवीं पास करने के बाद हर साल उनमें से कुछ बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे आगे की पढ़ाई करने ललितपुर जाते हैं।
हमारे देश में जहां आबादी का बड़ा प्रतिशत गांवों में निवास करता है वहां लड़कियों की स्थिति अभी भी प्रश्नीय है। शहरी लड़कियों की तुलना में गांव की लड़कियों को पढ़ाई के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करना मतलब बहुत बड़ी चुनौती को पार करना है। ‘बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ’ के नारे हर गली-मोहल्लों में दीवार पर लिखे हुए दिख जायेंगे। सरकार का उद्देश्य भी यही है की पढ़ें-बेटियां बढ़े बेटियां, लेकिन आज भी बहुत से गांवो के लड़कियों की पढ़ाई आठवीं के बाद रुक जाती है। वजह यह होती है की आगे पढ़ने के लिए स्कूल दूर होता है या आठवीं की पढ़ाई के बाद लड़कियों की शादी कर दी जाती है।
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शिक्षा हासिल करना लड़कियों के लिए है दोहरी चुनौती
ललितपुर जिले के महरौनी ब्लाक के जरया गांव में सिर्फ आठवीं तक का ही स्कूल है। आठवीं पास करने के बाद हर साल उनमें से कुछ बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। कुछ बच्चे आगे की पढ़ाई करने ललितपुर जाते हैं। जो जरया से लगभग 32 किलोमीटर दूर है। कुछ बच्चे महरौनी जाते हैं जो जरया से लगभग 12 किलोमीटर है।
17 वर्षीय खुशी बताती हैं की वह 11वीं की पढ़ाई कर रही हैं। आठवीं पास करने के बाद वह और उनके चाचा की लड़की मुस्कान दोने महरौनी रहने लगे थी। लेकिन रूम का खर्च और पढ़ाई का खर्च सब उठा नहीं पा रहे थे इसलिए अब अब हम गांव से ही स्कूल आते जाते हैं। घर से 5 किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है। जब तक घर न आ जाओ माँ बाप चिंता में रहते हैं। हमें खुद में भी डर लगता है की कहीं कुछ हो न जाये। कभी-कभी स्कूल भी नहीं जा पाते तो अटेंडेंस भी नहीं लगती।
घंटो करना पड़ता है साधन का इंतज़ार
खुशी अपनी समस्या बताते हुए आगे कहती हैं कि कई बार तो बस वाले भी नहीं बैठने देते। बस वालों को लगता है पता नहीं यह पैसे देंगे भी की नहीं या फिर इतनी भीड़ होती है कि एक दो लोग तो अर्जेस्ट हो सकते हैं लेकिन इतने सारे बच्चे कहां बैठेंगे। इस कारण से बस वाले हमें बैठ आते भी नहीं है और हम घंटों वहां साधन का इंतजार करना पड़ता है। किसी को मिला किसी को नहीं मिला कई बार लोग वापस भी आ जाते हैं क्योंकि वेट करते-करते घंटों हो जाते हैं। फिर वापस लौट आते हैं क्योंकि तब तक कई पीरियड निकल चुके होते हैं।
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सुबह 4 बजे से करनी पड़ती है स्कूल जाने की तैयारी
मुस्कान कहती हैं की हम वह पांच किलोमीटर दूर जंगल का सूनसान रास्ता तय करती हैं तो उन्हें बहुत डर लगता है। अगर गांव में इंटर कॉलेज होता तो उनकी पढ़ाई अच्छे से हो पाती। अभी सुबह के चार बजे से उठकर तैयारी करनी पड़ती है। सबसे मुश्किल काम है पांच किलोमीटर चलने के लिए खुद को तैयार करना। इतना थकने के बाद फिर पढ़ाई में भी ठीक से मन नहीं लगता है। अटेंडेंस पूरी न होने के चलते पढ़ाई पर काफी असर पड़ता है। पास हो जाना बड़ी बात नहीं है बड़ी बात है जब हम अच्छे से पढ़ पायें, समझ पाएं। एक तो लड़कियों को इतना दूर भेजने के लिए माँ-बाप को भरोसा नहीं होता। लड़को को भले चाहे जितनी दूर भेज दें।
लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से दूर करता लैंगिक भेदभाव
यह सारी समस्याएं लड़कों के ऊपर नहीं लागू होती हैं। जो आजकल का माहौल है वह देखकर के परिवार को चिंता भी होती है। उन्हें यह भी डर होता है की कहीं लड़की-लड़कों के चक्कर में ना पड़ जाए। हर माँ-बाप की सबसे बड़ी चिंता होती है कहीं इसे प्यार न हो जाये। चिंता जायज होती है लेकिन लड़कियों की भी तो अपनी दुनिया है वह अपने फैसले खुद ले सकती हैं। लेकिन माँ-बाप का यह डर लड़कियों को बाहर निकलने नहीं देता।
जरिया रानी ने बताया मेरी नातिन महरौनी में पढ़ रही है। उसे 2000 का रूम दिलाया। महीने का लगभग 8000 रुपए खर्च हो जाता है। हम किसान लोगों के लिए हर महीने ₹8000 खर्च करना एक बहुत बड़ी रकम है। कभी बारिश ज्यादा हुई तो किसानी भी ख़राब और कभी नहीं हुई तो भी हमारे खेती पर असर पड़ता है। फिर ऐसे में हम बच्चों की पढ़ाई के लिए कर्ज लेते हैं। बच्चों को दूर भेजकर पढ़ाना भी एक मजबूरी है। क्या किया है शिक्षित होते हुए भी समाज इतना अनपढ़ो वाला काम करता है, जब शिक्षित नहीं होंगे तो क्या होगा।
समाज में हो रहे हादसे भी पीछे खींचते हैं लड़कियों के कदम
जरया गांव की सुदामा ने बताया की उनकी बेटी महरौनी पढ़ने जाती है। उसके लिए स्कूल वाली मैजिक लगा दी है। जो 300 रूपये महीना लेता है। और 5 किलोमीटर के बाद बस से जाती है। जब तक वह घर वापस नहीं आ जाती चिंता बनी रहती है। आजकल का माहौल भी इतना खराब हो रहा है आए दिन टीवी में समाचारों में देखने को मिलता है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ रेप हो रहे हैं, बूढ़ी औरतों के साथ रेप हो रहे हैं तो ऐसे में हमें भी बहुत डर लगता है।
जयराम सिंह प्रधान ने बताया की उनके गांव की आबादी लगभग 5,000 है। लगभग तीन सौ बच्चे हर रोज बाहर पढ़ने जाते हैं। स्कूल दुरी होने की वजह से हर साल 10 में से 1 लड़की की पढाई रूकती ही है। मैने कहीं मांग नहीं की क्योंकि हमारे गांव के क्रिश्चन परिवार हैं जिनका आठवीं तक का स्कूल चलता है उन्होंने मांग की थी। बच्चों का आठवीं के बाद आगे न पढ़ पाना बहुत बड़ी समस्या है। विभाग को इसपर विचार करना चाहिए।
जांच के बाद भेजा जाएगा प्रस्ताव
जिला विद्यालय निरीक्षक ओ पी सिंह का कहना है जिन गांव में पांच किलोमीटर की दूरी में इंटर कॉलेज नहीं है वहां का प्रस्ताव रखा गया है। सरकार कब उसका बजट पास करेगी यह सरकार के ऊपर है। जरया गांव की ऐसी समस्या है तो वहां की जांच की जाएगी। महरौनी क्षेत्र से कुछ जगह के लिए इन्टर कॉलेज का प्रस्ताव आया भी है। जांच के बाद वहां का प्रस्ताव भी डाला जायेगा।
सरकार शिक्षा को लेकर बहुत बढ़ चढ़कर बातें करती है लेकिन आज भी ऐसी स्थितियां हैं जहाँ चाहते हुए भी बच्चे शिक्षा नहीं ले पा रहे हैं। यहां के प्रशासन को इसपर विचार करना चाहिए।
इस खबर की रिपोर्टिंग नाज़नी द्वारा की गई है।
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