कुपोषण हमारे देश से कभी मिटेगा? सरकारें कोशिश तो बहुत कर रही हैं। तरह तरह के अभियान चलाकर खूब पैसा भी खर्च कर रही हैं लेकिन सुधार बहुत ही कम देखने को मिल रहा है। हर साल पोषण सप्ताह मनाया जाता है और इस साल 1-7 सितंबर तक यह सप्ताह मनाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के जरिये सरकारों की कोशिश होती है कि वह बच्चों, किशोरियों और महिलाओं को कुपोषण मुक्त करे। हमने उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले से कुपोषण पर कवरेज की। खासकर आदिवासी बस्तियों के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बहुत ही गंभीर देखने को मिली।
ललितपुर: महरौनी ब्लाक के छपरट गांव की आदिवासी बस्ती। यहां के हर घर में बच्चे कुपोषित हैं। एक लड़की उम्र एक साल जो पूर्व प्रधान के घर से है वह अति कुपोषित है। एक बच्चा 15 अगस्त 2021 को खत्म ही हो गया। उसको पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती करने की बात चल रही थी। कोविड-19 महामारी के चलते उनको भर्ती नहीं किया जा सका।
मड़ावरा ब्लॉक के गांव रनगांव और गिदवाहा में भी बच्चे कुपोषित हैं। गिदवाहा की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मुन्नी राजा बुंदेला ने बताया कि उनके गांव में तीन बच्चे अति कुपोषित बच्चे हैं।
कोरोना के कारण वह पोषण पुनर्वास केंद्र नहीं जा पाए। 2018 में महिला एवं बाल पोषाहार विभाग की तरफ से किये गए एक कार्यक्रम में गिदवाहा और रनगांव में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे निकल कर आये थे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का कहना है कि तब से स्थिति में सुधार हो गया है। हमने गिदवाहा की आदिवासी बस्ती में लोगों से बात की तो पता चला कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के द्वारा उनको मिलने वाला पोषाहार जब से कोरोना महामारी है तब से दो तीन बार ही दिया गया। यह बात गर्भवती महिला ममता और धात्री हल्ली ने भी बताई।
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