खबर लहरिया Blog आवास नहीं तो छप्पर में रहना मज़बूरी

आवास नहीं तो छप्पर में रहना मज़बूरी

मनुष्य की मुलभुत सुविधाओं में रोटी, कपड़ा और मकान को गिना जाता है। हर व्यक्ति का सपना होता है कि उसका स्वयं का एक सर्व सुविधा युक्त मकान हो, लेकिन विभिन्न परिस्थितियों के कारण बहुत से लोग स्वयं का मकान नहीं बना पाते हैं या बनाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। आज के समय में गरीब आदमी  मेहनत के साथ रोटी और कपडे की व्यवस्था तो कर लेता है पर महान की व्यवस्था कर पाना कठिन होता है ऐसे लोगों को शासन-प्रशासन से सहयोग की उम्मीद होती है।

ललितपुर जिले के ब्लाक महरौनी गांव खिरिया लटकंजू में आज भी कम से कम 50 परसेंट लोग ऐसे हैं जिनको आवास नहीं मिल रहे हैं कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है जैसे घर नहीं है तो टीन डालकर रह रहे हैं जो ठंड में तो दिक्कत है ही गर्मी में भी जलेगा परमानन्द जो बताते हैं कि दो सौ रूपये की कमाई है रोज की उसमे क्या करें बच्चो की पढाई या घर का खर्चा नहीं चल पाता। किस तरह गुजारा करें? खेत बारी है नहीं है की उसमें से ही कुछ खर्चा निकले।

राजाबेटी जो विधवा हैं उनका कहना है कि पन्नी तानकर रहे हैं सरकार भले ही प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत गरीबों को छत मुहैया करा रही लेकिन पात्र होने के बावजूद इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा। हमारे दो बच्चे हैं आदमी है नहीं कहाँ मजदूरी करने जायें? कहीं मजदूरी भी करते हैं तो सौ दो सौ मिलते हैं उसमे फ़ीस जमा करें घर के खाने की व्यवस्था करें या फिर घर बनायें। इन सब समस्याओं को सोचकर आँख होते हुए भी अंधियार लगता है। कुछ सूझता नहीं है क्या होगा मेरे बच्चों का भविष्य।  

प्रधानमंत्री आवास योजना का गुणगान करते जिला प्रशासनिक अधिकारी थकते नहीं हैं। इसके बावजूद लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। विभाग के पास सभी दस्तावेज जमा करवाने के बावजूद गरीब परिवारों को बरसात में टपकती छतों में रहकर परीक्षा देनी पड़ती है। कागजों में ड्यूटी बजाने वाले अधिकारी एक बार गांवों में इन गरीबों के आवास को देखने की जरूरत महसूस नहीं करते हैं। हालात ये हैं कि गरीब की उम्मीद बनकर उभरे प्रधान और विधायक भी मुंह फेर लेते हैं। प्रधान अच्छेलाल कुशवाहा ने भी माना है कि उनके गाँव में डेढ़ सौ ऐसे लाभार्थी हैं जिनको आवास की जरूरत है। लिस्ट तो भेजी है लेकिन जब शासन से मिले तो बनवाया जाए।

यही हाल गांव सैदपुर के सहरिया आदिवासी लोगों का है यहाँ के पप्पू का कहना है कि हम लोग कम से कम 20 साल से आवास की मांग कर रहे हैं पर हम लोगों के आवास नहीं बनाए जा रहे हैं और हम लोगों से बोलते हैं कि हम लोगों की तुम्हारे आवास नहीं बनेंगे क्योंकि तुम आवास के पात्र नहीं होजिन लोगों के तीन-तीन मंजिल के मकान बने हुए हैं और ट्रैक्टर और सारी चीजें हैं जमीन जायदाद है उन्हीं को आवास दिया जा रहा हैं यहीं की रहने वाली जानकी देवी ने बताया कि बरसात के मौसम में जब बारिश होती है तो हम लोगों के घरों में पानी भर जाता है हमारे बच्चे इधर-उधर फिरते हैं कहां जाएं कहां बैठे कहां खाना बनाए ऐसी स्थिति हो जाती है कि कुछ सूझता नहीं है यहाँ के लोगों ने प्रधान पर पैसे मांगने के भी आरोप लगायें हैं। लोगों का कहना है कि प्रधान को जो लोग पैसे दे रहे हैं उन्हीं को आवास दिया जा रहा है हम गरीब के पास खाने के ही नहीं हैं तो कहाँ से देंगे।

गुना देवी


सैदपुर की ही रहने वाली गुना देवी ने भावुक होकर बताया कि हमारे गाँव वाले नहीं बनाने देते हैं हमें कोई योजना नहीं मिलती है बरसात में हम बहुत परेशान होते हैं। हमारे बच्चे पानी में तड़फ-तड़फ रोते हैं। हमारे पास इतनी सुविधा नहीं है की हम अपने घर पर बैठ जायेंगे। गाँव में जो अमीर हैं उनके बन रहे लेकिन आदिवासियों की कोई सुन नहीं रहा प्रधान कहता है सरकार से लड़ों हम कुछ नहीं कर सकते। बरसात में जब उड़ जाती है तो बहुत दिक्कत होती है। गुना देवी की पड़ोसी ने बताया कि ठण्ड में मरे जा रहे हैं रहने का घर नहीं है खाना बना के रख देते हैं जानवर खा जाते हैं। तीन पीढ़ी गुजर गई आवास नहीं बना है

सुनील कुमार खंड विकास अधिकारी का कहना है कि हमारे पास कोई शिकायत नहीं आई है शिकायत आने पर पूरी तरह से कार्रवाई की जाएगी ऐसा नहीं है कि हम लोगों के पास कोई भी शिकायत आए और उस पर कार्रवाई ना की जाए हम इसकी जांच करवाएंगे और कार्रवाई की जाएगी

अब देखना यह है कि सरकार ने गरीबों को 2022 तक आवास देने का जो लक्ष्य रखा है क्या तब तक इनको लाभ मिल पायेगा? या शिकायती पत्र लेकर तहसील और जिला का चक्कर लगाते रहेंगे?